अजूबा और आज़ादी : अटल टनल 

By: आशीष शर्मा Oct 3rd, 2020 9:05 am

…लो आज आखिर आ ही गया वह वक्त, जब देश-दुनिया की अपनी तरह की पहली नौ किलोमीटर लंबी सुरंग जनता के नाम हो जाएगी। 20 साल में तैयार हुई इस गुफा की हर चीज़ निराली है… सेना के लिए ब्रह्मास्त्र, तो लाहुल वासियों के लिए आजादी से कम नहीं है यह अटल टनल। आखिर रोहतांग टनल है क्या..क्या है इसकी खासियत…किन मायनों में खास है यह। कितने मजदूरों की मेहनत का नतीजा है यह अटल सुरंग…इन सवालों के जवाबों के साथ पेश है यह दखल… आशीष शर्मा

दस हजार फीट की ऊंचाई… और वह भी ट्रैफिक टनल। सचमुच किसी अजूबे से कम नहीं। देश-दुनिया में इतनी ऊंचाई पर बनी यह पहली अटल टनल नौ किलोमीटर लंबी है। टनल की चौड़ाई जहां दस मीटर है, वहीं ऊंचाई छह मीटर है। आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपकरण इसे दुनिया की बाकी सुरंगों से अलग बनाते हैं। बात इसकी विशेषताओं की करें, तो यह दुनिया की पहली दोमंजिला टनल है, जिसकी धरातल मंजिल भी नौ किलोमीटर लंबी है। इसे एस्केव टनल भी कहा जाता है, जिसका इस्तेमाल अपातकालीन समय में किया जा सकता है। टनल में ऐसा वेंटिलेशन सिस्टम दिया गया है, जो किसी भी एमर्जेंसी में लोगों की जान बचाने में कामयाब रहेगा। सबसे बड़ी खासियत घोड़े की नाल का आकार का होना है। टनल के ऊपर धुआं निकालने तक की भी व्यवस्था है। टनल के नीचे आपातकालीन टनल तैयार की गई है, जिसे हर 500 मीटर के बाद मुख्य टनल से जोड़ा गया है। खुदा न खास्ता अगर टनल के अंदर किसी गाड़ी में आग लग जाती है, तो लोगों को आपातकालीन टनल से रेस्क्यू किया जा सकता है। घटना वाली जगह को दोनों ओर से कंट्रोल किया जाएगा और आग के धुएं को सबसे ऊपर वाली टनल से बाहर निकाला जाएगा। सबसे नीचे वाले भाग में पानी के लिए टनल उससे ऊपर आपातकालीन रास्ता फिर यातायात टनल और सबसे ऊपर धुआं बाहर निकालने के लिए व्यवस्था की गई है।

हर चीज़ है खास

 अटल सुरंग बनने से मनाली से लेह जाने में 46 किलोमीटर दूरी होगी कम

 इस तरीके से डिज़ाइन की गई टनल, बर्फ  और हिमस्खलन का नहीं पड़ेगा कोई असर

 किसी भी मौसम में अवरुद्ध नहीं होगा यातायात

 वाहनों की गति और हादसों पर नियंत्रण रखने में मदद करेंगे सीसीटीवी कैमरे

 अधिकतम 80 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गुजर सकेगा कोई भी वाहन

 एक बार में 3000 कार या 1500 ट्रक एक साथ गुजरने की क्षमता

 हर 150 मीटर पर टेलिफोन सुविधा

 60 मीटर पर अग्निरोधी उपकरण

 प्रत्येक 500 मीटर पर आपातकालीन निकास

 प्रत्येक 2.2 किलोमीटर पर गुफानुमा मोड़

 हर किलोमीटर पर हवा की गुणवत्ता बताने वाले मॉनिटर और 250 मीटर की दूरी पर सीसीटीवी कैमरे

 टनल में वापस मुड़ने के लिए 2.2 किलोमीटर बाद टर्निंग प्वाइंट

जब लगने लगा डर, शुरुआती 400 मीटर की खुदाई में लगे चार साल

अधिकारी बताते हैं कि एक समय तो ऐसा आया कि स्ट्रॉबेग और एफ्कॉन कंपनी के इंजीनियर अंदर जाने से डरने लगे। बीआरओ के अधिकारियों की सूझबूझ और हौसले ने कंपनी के इंजीनियर्स की न केवल हिम्मत बढ़ाई, बल्कि स्वयं आगे आकर मोर्चा भी संभाला। अटल टनल के निर्माण कार्य के शुरुआती समय में 400 मीटर की खुदाई के लिए चार साल का समय लग गया था।

आसान नहीं थी यह डगर

1400 से चार हजार करोड़ तक पहुंच गया था खर्च, इंजीनियर्स की सूझबूझ से 3200 करोड़ में हुई तैयार

अटल टनल का जून 2010 में जब निर्माण कार्य शुरू किया गया, तो इसके निर्माण में होने खर्च को 1400 करोड़ बताया गया था, लेकिन जिस स्थल पर सुरंग का निर्माण कार्य शुरू किया गया, वहां की भौगोलिक परिस्थितियां कुछ अलग थी और टनल का निर्माण कार्य चाहकर भी युद्ध स्तर पर शुरू नहीं हो पा रहा था। टनल की खुदाई मनाली व लाहुल की तरफ से शुरू की गई। एक तरफ खुदाई की जाती, तो दूसरी तरफ चुनौतियां पैदा हो जाती थीं। यहां सर्दियों में माइनस 30 डिग्री तापमान में खुदाई के कार्य को अंजाम देना आसान नहीं था। सुरंग के मार्ग पर 46 से अधिक हिमस्खलन स्थल हैं। सुरंग के निर्माण में सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य खुदाई था। सुरंग की खुदाई दोनों छोर से की गई थी। हालांकि सर्दियों के दौरान नॉर्थ पोर्टल बंद हो जाता है और इसलिए सर्दियों में खुदाई केवल साउथ पोर्टल के हिस्से से की जाती थी। टनल के अंदर सेरी नाले का रिसाव बीआरओ के लिए सबसे बड़ी बाधा बना। अटल टनल के दोनों छोर मिलने में लगभग आठ साल का समय लग गया। सेरी नाले के रिसाव के चलते महज 600 मीटर हिस्से को पार करने में साढ़े तीन साल का समय लग गया। टनल के अंदर रिसाव के कारण कई बार फ्लड जैसे हालात बन गए। ऐसे में जहां टनल का निर्माण कार्य पूरा करने का जो लक्ष्य बीआरओ ने 2015 का रखा, तो वह भी निकल गया और प्रोजेक्ट की लागत में भी इजाफा हो गया। 1400 करोड़ से शुरू हुआ प्रोजेक्ट अब चार हजार करोड़ में पूरा किया जाने की बात कही जाने लगी। समय भी जहां लगातार आगे बढ़ रहा था, वहीं बीआरओ पर भी इस बात का दबाव था कि वह जल्द से जल्द इस कार्य को पूरा करवाए। विपरीत परिस्थितियों ने निर्माण की लागत 1400 करोड़ से 4000 करोड़ पहुंचा दी, लेकिन इंजीनियर्स के कुशल रणनीतिक बदलाव के कारण न केवल 800 करोड़ की बचत हुई है, बल्कि टनल की देखरेख और बेहतरी के लिए लिए धन बचा लिया। 3200 करोड़ की यह अटल टनल बनकर तैयार है।

चुनौतियां याद कर आज भी कांप जाती है रूह

टनल को धरातल पर उतारना बीआरओ के लिए आसान नहीं था। बीआरओ की देखरेख में सुरंग का निर्माण कार्य स्ट्रॉबेग और एफकॉन कंपनी कर रही थी। चुनौतियां याद करने पर आएं, तो आज भी इंजीनियर्स का दिल सहम जाता है। टनल में कभी ग्लेशियर से बहने वाले नाले का पानी भर जाना, तो कभी बाढ़ डराती थी। ग्लेशियर का मलबा तक गिरते देखा है और उस मलबे में दबे मजदूरों के लिए चलाए गए रेस्क्यू अभियान को आज याद कर भी रूह कांप जाती है। टनल के अंदर सेरी नाले का रिसाव बीआरओ के लिए सबसे बड़ी बाधा बना। अटल टनल के दोनों छोर मिलने में लगभग आठ साल का समय लग गया। सेरी नाले के रिसाव के चलते महज 600 मीटर हिस्से को पार करने में साढ़े तीन साल का समय लग गया।

150 इंजीनियर्स, 2500 मजदूरों ने दिन-रात किया काम

अटल टनल रोहतांग करीब 2500 मजदूर और 150 इंजीनियर्स दो शिफ्ट में काम करते थे। टनल का निर्माण कार्य पहले ही दिन से 24 घंटे शुरू किया गया था। ऐसे में दिन-रात चलने वाले इस कार्य का आज परिणाम सबके सामने आया है। 150 इंजीनियर्स में भारत, यूरोप के कई देशों के इंजीनियर्स ने अटल टनल में काम किया है। यहां ऑस्ट्रेलिया, टर्की, जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड सहित अन्य देशों के इंजीनियर्स ने काम किया है। टनल का निर्माण कार्य जहां वर्ष 2010 में शुरू हो गया था, वहीं इन दस वर्षों में पांच चीफ इंजीनियर बदले गए। ऐसे में अटल टनल ने जहां पांच चीफ इंजीनियरों की देखरेख में काम किया।

तीन चीफ इंजीनियर हुए रिटायर

अटल अनल के निर्माण कार्य के दौरान तीन चीफ इंजीनियर भी यहां सेवानिवृत्त हुए हैं। बीआरओ के अधिकारियों का कहना है कि टनल के उद्घाटन के अवसर पर इन अधिकारियों को भी विशेष तौर पर बुलाया जाएगा। ये अधिकारी देश के विभिन्न राज्यों से संबंध रखते हैं।

सेना के लिए ब्रह्मास्त्र, हथियार-राशन पहुंचाना आसान

सीमा पर चीन के साथ चल रहे तनाव को ध्यान में रख अटल टनल भारतीय सेना के लिए किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं है। अब लद्दाख में तैनात सैनिकों से बेहतर संपर्क बना रहेगा। उन्हें हथियार और रसद कम समय में पहुंचाई जा सकेगी। आपात परिस्थितियों के लिए इस सुरंग के नीचे एक अन्य सुरंग का भी निर्माण किया गया है। यह किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए बनाई गई है और विशेष परिस्थितियों में आपातकालीन निकास का काम करेगी।

कैद से आजाद होंगे लाहुली

पीर पंजाल की पहाडि़यों को काटकर बनी सुरंग से जहां मनाली से लेह की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी, वहीं लाहुल-स्पीति का संपर्क भी शेष विश्व से साल भर जुड़ा रहेगा। अटल टनल लाहुल-स्पीति की किस्मत भी बदल देगी। यहां सैलानियों की चहलकदमी भी बढ़ जाएगी। यही नहीं, घाटी के युवाओं को रोजगार के अवसर जहां मिलेंगे, वहीं सर्दियों में भी लाहुल के लोग आसानी से जिला से बाहर आ सकेंगे। लाहुल के लोगों को रोहतांग दर्रे की कैद से अब आजादी मिलने जा रही है। मनाली से लाहुल और स्पीति घाटी तक पहुंचने में करीब पांच घंटे का समय लगता है, लेकिन अब मात्र एक से डेढ़ घंटे में मनाली से लाहुल पहुंचा जा सकेगा।

हाइटेक ऑस्टे्रलियन टनलिंग मैथड

अटल टनल के अंदर अत्यधुनिक ऑस्टे्रलियन टनलिंग मैथड का उपयोग किया गया है। इस तकनीक पर बनने वाली यह भारत की पहली सुरंग हैं। सुरंग के निर्माण कार्य को अंजाम देने के लिए बीआरओ ने विदेशी मशीनों के साथ-साथ भारतीय मीशीनों की मदद ली है। सुरंग के निर्माण कार्य को अंजाम देने में स्विट्जरलैंड से 40 करोड़ रुपए की मशीन मंगवाई गई, जिसे रोवा कहा जाता है। इनका कहना है कि इस मशीन का कार्य टनल के भीतर खुदाई के साथ-साथ वहां से निकलने वाली मिट्टी को ठिकाने लागाना था। टनल में ड्रिल एंड ब्लॉस्ट का कम इस्तेमाल किया गया है। यही नहीं टनल का वेंटिलेशन सिस्टम भी ऑस्टेलियाई तकनीक पर आधारित है।

हर मौसम दौड़ेंगी गाडि़या,ं कभी नहीं छाएगा अंधेरा

सुरंगनुमा स्ट्रक्चर के भीतर से वाहन हर मौसम में सुरक्षित गुजर पाएंगे। सुरंग बनने से घाटी का संपर्क देश से नहीं टूटेगा। अब वहां बिजली भी गुल नहीं होगी, क्योंकि बिजली की लाइन भी सुरंग के अंदर से ही जा रही है। सुरंग र्सिदयों में भी खुली रहेगी, लेकिन इसे मनाली और केलांग से जोड़ने वाली सड़क को हिमस्खलन से बचाना बाकी है। इसके लिए स्नो एंड एवलांच स्टडी एस्टेब्लिशमेंट द्वारा डिजाइन किए एवलांच प्रोटेक्शन स्ट्रक्चर तैयार किए गए हैं। सुरंगनुमा स्ट्रक्चर के भीतर से वाहन हर मौसम में सुरक्षित गुजर पाएंगे, जबकि हिमखंड, बाढ़ और पत्थर इसके ऊपर से गुजर जाएंगे। खासियत यह भी है कि सुरंग में कभी भी अंधेरा नहीं छाएगा।

कई चुनौतियां पार कर रिकॉर्ड टाइम में पूरा किया काम

अटल टनल के निर्माण कार्य में अहम भूमिका अदा करने वाले चीफ इंजीनियर ब्रिगेडियर केपी पुरुषोथमन ने जहां टनल का कार्य रिकॉर्ड समय में पूरा करवाकर नया इतिहास रचा है, वहीं रक्षा मंत्रालय के उच्चाधिकारी भी इनकी पीठ थपथपा रहे हैं। ब्रिगेडियर केपी पुरुषोथमन अटल टनल के छठे चीफ इंजीनियर हैं। इससे पहले यह नॉर्थ ईस्ट में सेवाएं दे रहे थे। चीफ इंजीनियर ब्रिगेडियर केपी पुरुषोथमन का कहना है कि अटल टनल का निर्माण कार्य समय पर पूरा करना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। आज टनल बनकर तैयार है इसका श्रेय वह अपनी पूरी टीम को देते हैं। एक मजदूर से लेकर इंजीनियर तक ने अपनी पूरी ताकत यह टनल बनाने में लगाई है। बीआरओ ने अटल टनल के कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। जल्द ही टनल देश को समर्पित कर दी जाएगी। इस टनल को आधुनिक सुख सुविधा से पूरी तरह लैस किया गया है। यह भारत ही नहीं, दुनिया की पहली ऐसी टनल है, जो दोमंजिला है और जिसका मिर्माण ऑस्टे्रलियन टनलिंग मैथड से किया गया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने भी टनल के निर्माण कार्य के दौरान काफी कुछ नया सीखा है, जो अगामी समय में उनके काम आएगा।

इंदिरा गांधी-वाजपेयी जी ने देखा सपना… मोदी करेंगे पूरा

लाहुल-स्पीति के लोगों की किस्मत बदलने वाली अटल टनल जहां बनकर तैयार हो चुकी है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज तीन अक्तूबर को इसे देश को समर्पित करने जा रहे हैं। ऐसे में अटल टनल के इतिहास पर अगर नजर दौड़ाएं, तो कई रोचक तथ्य सामने आते हैं और यह देश की पहली ऐसी परियोजना होगी, जिसका सपना दो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा व अटल ने देखा, लेकिन उसे पूरा नरेंद्र मोदी ने किया है। ऐसे में कांग्रेस व भाजपा दोनों ही राजनीतिक दल अटल टनल के निर्माण में कुछ हद तक इस बात से सहमत दिखाई देते हैं कि दोनों ही राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं ने टनल का सपना देखा था और इसे बनाने का प्रयास किया था। जानकार बाताते हैं कि वर्ष 1972 में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पहली बार लाहुल-स्पीति पहुंचीं थी। उस समय लाहुल-स्पीति की विधायक लता ठाकुर थी और इंदिरा गांधी की वह अच्छी दोस्त भी थीं। ऐसे में लता के निमंत्रण पर ही इंदिरा गांधी लाहुल-स्पीति आई थीं। इस दौरान स्थानीय लोगों की मांग पर लता ठाकुर ने इंदिरा जी से यह मांग की कि रोहतांग दर्रा अकसर सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण बंद रहता है और लाहुल-स्पीति के लोग छह से आठ माह तक शेष विश्व से कटे रहते हैं। अगर संभव हो सके, तो रोहतांग दर्रे के पास कोई ऐसी टनल बनाई जाए, जिससे लाहुल-स्पीति पहुंचना आसान हो जाए, तो लाहुल-स्पीति के लोगों की दिक्कतें ही दूर हो जाएंगी। ऐसे में इंदिरा गांधी ने घोषणा कर दी कि रोहतांग दर्रे के पास एक सुरंग का निर्माण किया जाएगा और वह दिल्ली पहुंचते ही अधिकारियों को इस संदर्भ में निर्देश देंगी। इसके बाद एक टीम भी टनल के निर्माण के लिए 80 के दशक में सर्वे करने के लिए लाहुल पहुंची थी, लेकिन समय के साथ रफ्तार धीमी पड़ गई।

2000 में वाजपेयी जी ने की थी घोषणा

साल 1998 में टनल की मांग को लेकर लाहुल के तीन लोग पहली बार देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी से मिले। इनमें से एक अटल जी के मित्र टशी दावा भी थे, जो टनल की मांग को लेकर उनसे मिलने के लिए दिल्ली पहुंचे थे। ऐसे में अपने पुराने मित्र को देख जहां अटल जी ने उनसे उनका हालचाल पूछा, वहीं दिल्ली आने का कारण भी पूछ डाला। बस फिर क्या था। टशी दावा ने लाहुल-स्पीति के लोगों के लिए रोहतांग टनल के निर्माण को जल्द शुरू करने की मांग अटल जी से की, जिसे अटल जी ने मान लिया और तीन जून, 2000 को लाहुल-स्पीति के जिला मुख्यालय केलांग पहुंच कर इस बात का ऐलान कर दिया कि रोहतांग दर्रे के नीचे रोहतांग टनल का निर्माण किया जाएगा। 2003 में अटल जी ने टनल तक जाने वाली सड़क का शिलान्यास भी किया था। इसके बाद प्रोजेक्ट को 2003 में अंतिम तकनीकी स्वीकृति मिली। जून 2004 में परियोजना को लेकर भूवैज्ञानिक रिपोर्ट पेश की गई। 2005 में सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी की स्वीकृति मिलने के बाद 2007 में निविदा आमंत्रित की गई।

सोनिया गांधी ने रखी आधारशिला

दिसंबर 2006 में परियोजना के डिजाइन और विशेष विवरण की रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया। 28 जून 2010 को कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मनाली के सोलंगनाला में आकर अटल टनल की आधारशिला रखी। उस समय इस टनल के निर्माण की लागत 1400 करोड़ आंकी गई तथा 2015 में इसे तैयार करने का लक्ष्य भी रखा गया। बर्फ  के कारण लाहुल की ओर से छह महीने ही काम हो सका। बीच में सेरी नाले ने भी दिक्कत बढ़ाई।

टशीदावा अटल जी की मित्रता लाहुलियों के बनी वरदान

सामरिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण रोहतांग टनल लाहुल निवासी टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल तथा देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती का प्रतीक बनकर हमारे सामने आई है। वयोवृद्ध इतिहासकार छेरिंग दोरजे व अभय चंद राणा की मेहनत अब रंग लाई है। साल 1998 में टनल की मांग को लेकर तीन लोग पहली बार देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी से मिले थे। टशी दावा तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन छेरिंग दोरजे आज भी अटल बिहारी संग हुई बातचीत को याद रखे हुए हैं।

लता-इंदिरा की दोस्ती के नाम

चार हजार करोड़ रुपए से तैयार की जा रही अटल टनल को जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन अक्तूबर को देश को समर्पित कर देंगे, वहीं लाहुल-स्पीति की पहली महिला विधायक लता ठाकुर व पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का सपना भी टनल के तैयार होने के साथ ही पूरा होने जा रहा है। लाहुल-स्पीति के वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ताओं में शामिल 88 वर्षीय दूनी चंद व रोशन बोध का कहना है कि वर्ष 1972 में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पहली बार लाहुल-स्पीति पहुंची थी। उस समय लाहुल-स्पीति की विधायक लता ठाकुर थी और इंदिरा गांधी की वह अच्छी दोस्त भी थीं। ऐसे में लता के निमंत्रण पर ही इंदिरा गांधी लाहुल-स्पीति आई थीं। 88 वर्षीय दूनी चंद बताते हैं कि उस समय वह लाहुल-स्पीति कांग्रेस के जिला अध्यक्ष थे और इस नाते उन्हें भी पूर्व प्रधानमंत्री से मुलाकात करने का अवसर मिला था।


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