अखंड भारत में सरदार पटेल का योगदान: बंडारू दत्तात्रेय, राज्यपाल, हिमाचल प्रदेश

By: बंडारू दत्तात्रेय, राज्यपाल, हिमाचल प्रदेश Oct 31st, 2020 12:07 am

इसी तरह स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रीय एकता की जब भी बात होती है तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है। यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व कौशल और अदम्य साहस का ही कमाल था कि 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय हो सका। हालांकि अंग्रेज यह अच्छी तरह समझते थे कि यह कार्य जटिल है, इसलिए उन्होंने यह कार्य स्वतंत्रता के बाद सरकार पर छोड़ दिया। लार्ड माउंटबेटन ने कहा था, ‘भारत में निर्णय लेने की क्षमता अगर किसी व्यक्तित्व में है तो वे हैं सरदार पटेल।’…

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हर उन ऐतिहासिक पलों में अपनी दृढ़, यर्थावादी, दूरदर्शिता व बुद्धिमता का परिचय दिया जो देश को कई बार विकट परिस्थितियों से बाहर निकालने में सहायक हुई। उनसे जुड़ी अनेक घटनाएं हैं जिनमें दो का जिक्र करना जरूरी है। पहली घटना जामसाहिब से जुड़ी है। जामसाहिब ने पाकिस्तान की सहायता से काठियावाड़ राज्यों का एक स्वतंत्र संगठन बनाने की योजना बनाई। सरदार पटेल ने इसे रोकने के लिए हस्तक्षेप किया, जबकि अभी सत्ता के हस्तांतरण में दो महीने बाकी थे और उनके पास कोई औपचारिक अधिकार भी नहीं थे। फिर भी उन्होंने दृढ़ तथा निर्णायक ढंग से काम किया। जामसाहिब दिल्ली के रास्ते, केंद्रीय भारत में राजकुमारों से मिलने जा रहा था। पटेल ने समय न गंवाते हुए जामसाहिब के भाई कर्नल हिम्मत सिंह के माध्यम से उसे अपने घर लाने के लिए कहा। पटेल जी ने महारानी और जामसाहिब का दिल घर पर भोजन के दौरान ही जीत लिया। परिणामस्वरूप जामसाहिब ने संगठन बनाने की योजना त्याग दी और संयुक्त काठियावाड़ के सपने को साकार करने में भी सहयोग दिया। दूसरी घटना शेख अब्दुल्लाह से जुड़ी है। विधानसभा में, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 (कश्मीर के भारत से संबंधों से संबंधित) पर चर्चा हो रही थी।

अचानक अशांत अब्दुल्लाह ने उठकर यह कहते हुए सदन को हैरान कर दियाः ‘मैं कश्मीर वापस जा रहा हूं।’ इस व्यवहार से भारत के कश्मीर पर चर्चा करने के अधिकार पर भी सवाल खड़े हो गए। नेहरू जी की अनुपस्थिति में प्रधानमंत्री की जगह स्थानापन्न पटेल जी को उनसे निपटना था। उन्होंने बहस में हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन बाद में अब्दुल्लाह को दृढ़ संदेश भेजा- ‘आज सदन छोड़कर तो जा सकते थे परंतु दिल्ली छोड़कर नहीं जा सकते।’ उनका यह संदेश ही काफी था और अब्दुल्लाह ने कश्मीर जाना रद्द कर दिया। लार्ड माउंटबैटन सरदार पटेल जी के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थे और कहते थे, ‘पटेल जी वर्षों से भारत में एक शक्तिशाली स्तम्भ की भांति विराजमान हैं। मुझे नहीं लगता कि एक बार आपने अपना मन बना लिया तो देश में कोई भी आपके खिलाफ  खड़ा होने की हिम्मत कर सकता है।’ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों व भावनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में आत्मसात करने वाले राजनेताओं में एक थे सरदार पटेल।

देश की एकता और अखंडता के लिए महात्मा गांधी और सरदार पटेल ने कभी समझौता नहीं किया। गांधी जी ने सुराज से स्वराज की बात कही तो सरदार पटेल ने स्वराज और सुशासन को प्रमुखता दी। नवंबर 1917 में सरदार पटेल पहली बार गांधी जी के संपर्क में आए। उस समय उनका पहनावा हैट, सूट, बूट का था, लेकिन असहयोग आंदोलन में सरदार पटेल ने स्वदेशी खादी, धोती, कुर्ता और चप्पल अपनाए तथा विदेशी कपड़ों की होली जलाई। गांधी जी के संपर्क पर आने के बाद उनमें परिवर्तन आया। इसके बाद गांधी जी के विचारों को समझकर आगे चलने वालों में कोई था तो वह थे सरदार पटेल। सरदार पटेल राष्ट्रीय मामलों में फौलाद की तरह सख्त थे और निजी व व्यक्तिगत मामलों में फूल के समान कोमल थे। विख्यात उद्योगपति जमशेदजी टाटा ने कहा था, ‘पटेल के साथ भेंट करने के बाद मेरा मन खुश हो गया। हमारे देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में है।’ गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आईसीएस) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आईएएस) बनाया। आजादी से पूर्व भारत में प्रशासनिक स्तर पर आईसीएस का तंत्र हुआ करता था। इसी प्रशासनिक तंत्र ने अंग्रेजों को भारत में प्रशासनिक मजबूती दी। लार्ड मैकाले का यह वक्तव्य अधिक महत्त्वपूर्ण है। उसने कहा था कि भारत में ब्रिटिश राज के साम्राज्य को स्थापित करने में आईसीएस की भूमिका अधिक है। प्रशासन का चरित्र उनके कंधों पर है। करीब 100 साल पूर्व भी लार्ड मैकाले ने कहा था, ‘भारत को सही तरीके से केवल आईसीएस तंत्र ही चला सकता है।’

स्वतंत्रता प्राप्ति के एक वर्ष पूर्व, जब संवैधानिक सभा का गठन नहीं हुआ था, तब सरदार पटेल के मन में यह बात घर कर गई कि आईसीएस व्यवस्था को भारतीय तंत्र में बदलने की आवश्यकता है। तभी वे सही मायनों में देश सेवा में समर्पित हो पाएंगे और इसी सोच के साथ उन्होंने आईएएस का तंत्र विकसित किया। प्रशासन में यह उनका सबसे बड़ा योगदान था। इसी तरह स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रीय एकता की जब भी बात होती है तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है। यह उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व कौशल और अदम्य साहस का ही कमाल था कि 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय हो सका। हालांकि अंग्रेज यह अच्छी तरह समझते थे कि यह कार्य जटिल है, इसलिए उन्होंने यह कार्य स्वतंत्रता के बाद सरकार पर छोड़ दिया। लार्ड माउंटबेटन ने कहा था, ‘भारत में निर्णय लेने की क्षमता अगर किसी व्यक्तित्व में है तो वे हैं सरदार पटेल।’ देशी रियासतों को भारतीय संघ में विलय करने के निर्णय को जब उन्होंने प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू तक पहुंचाया तो उन्हें भी उनकी दृढ़इच्छा शक्ति पर अचरज होता था।

जूनागढ़ सौराष्ट्र के पास एक छोटी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वहां के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और भारत में विलय चाहती थी। पटेल जी के ठोस निर्णय के बाद ही भारतीय सेना ने जूनागढ़ में प्रवेश किया और 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़ भारत में मिल गया। इसी तरह कई अन्य रियासतें पटेल जी ने भारत में मिलवाईं। भारत सरकार ने सन् 1991 में सरदार पटेल को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। आज सरदार वल्लभ भाई पटेल हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। 31 अक्तूबर को उनकी जयंती है जिसे राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर हम अपनी भावांजलि के साथ उन्हें शत्-शत् नमन करते हैं।


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