आर्थिकी को लाभप्रद श्रम कानून: डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री

By: डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री Oct 12th, 2020 12:08 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

निःसंदेह नए श्रम कानूनों से भारत की श्रम संबंधी विभिन्न वैश्विक रैंकिंग में सुधार होगा, लेकिन भारत की ओर वैश्विक उद्योग-कारोबार आकर्षित करने के लिए केवल नए श्रम कानूनों से काम नहीं बनने वाला है। इसके साथ अन्य ऐसे सुधारों की भी जरूरत है जिससे कारखाने की जमीन, परिवहन और औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए बिजली की लागत आदि को कम किया जा सके। कर तथा अन्य कानूनों की सरलता भी जरूरी होगी। साथ ही रुपए की विनिमय दर का प्रबंधन भी करना होगा। तभी भारत उत्पादन वृद्धि, निर्यात वृद्धि, रोजगार वृद्धि को प्राप्त करने की डगर पर आगे बढ़ेगा…

यकीनन केंद्र सरकार 29 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में तबदील करने की महत्त्वाकांक्षी योजना को आकार देने में सफल रही है। अब सरकार ने इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020, आक्यूपेशनल सेफ्टी, हैल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2020, कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी 2020 और वेतन संहिता कोड 2019 को दिसंबर 2020 में एक साथ लागू करने के संकेत दिए हैं। इन श्रम संहिताओं से जहां कामगारों के लिए मजदूरी सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने का दायरा काफी बढ़ाया गया है, वहीं इन संहिताओं के तहत श्रम कानूनों की सख्ती कम करने और अनुपालन की जरूरतों को कम करने जैसी व्यवस्थाओं से उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहन मिलेंगे और इससे रोजगार सृजन में भी मदद मिलेगी।

 गौरतलब है कि कोविड-19 की चुनौतियों और भारत के लिए वैश्विक उद्योग-कारोबार के बढ़ते मौकों के मद्देनजर नए श्रम कानून पासा पलटने वाले और नियोक्ता, कर्मचारियों और सरकार तीनों के लिए फायदेमंद सिद्ध हो सकते हैं। इंडस्ट्रियल रिलेशन कानून के तहत सरकार भर्ती और छंटनी को लेकर कंपनियों को ज्यादा अधिकार देगी। अभी 100 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को छंटनी या यूनिट बंद करने से पहले सरकार की मंजूरी नहीं लेनी पड़ती थी। अब यह सीमा बढ़ाकर 300 कर्मचारी कर दी गई है। इससे औद्योगिक मुश्किलों के दौर में बड़ी कंपनियों के लिए कर्मचारियों की छंटनी और प्रतिष्ठान बंद करना आसान होगा। नए श्रम कानूनों से देश के संगठित व असंगठित दोनों ही प्रकार के श्रमिकों को कई प्रकार की नई सुविधाएं मिलेंगी।

असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा फंड का निर्माण किया जाएगा। देश के सभी जिलों के साथ-साथ खतरनाक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को अनिवार्य रूप से कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) की सुविधा से लाभान्वित किया जाएगा। सेल्फ  असेसमेंट के आधार पर असंगठित क्षेत्र के श्रमिक अपना इलेक्ट्रॉनिक पंजीयन करा सकेंगे। घर से कार्य पर आने व जाने के दौरान दुर्घटना होने पर कर्मचारी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का हकदार होगा। अपनी इच्छा से महिला श्रमिक रात की पाली में भी काम कर सकेंगी। फिक्स्ड टर्म स्टाफ  को भी स्थायी श्रमिकों की तरह सारी सुविधाएं मिलेंगी। यहां तक कि एक साल के कांट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारी को भी ग्रेच्युटी जैसी सुविधा मिलेगी।

जबकि अभी कम से कम पांच साल काम करने पर ही ग्रेच्युटी का लाभ मिलता है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने 178 रुपए रोजाना का राष्ट्रीय बुनियादी वेतन तय कर दिया है। न्यूनतम वेतन इससे कम नहीं हो सकता। सभी श्रमिकों को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य होगा। उनके वेतन का डिजिटल भुगतान करना होगा। साल में एक बार सभी श्रमिकों का हेल्थ चेकअप भी अनिवार्य किया गया है। जहां नए श्रम कानूनों के तहत श्रमिक वर्ग के लिए कई लाभ दिखाई दे रहे हैं, वहीं उद्यमियों के कारोबार को आसान बनाने के लिए कई प्रावधान भी लाए गए हैं। खास बात यह है कि उद्यमियों के लिए कई जगह आपराधिक दायित्व समाप्त किया गया है और उनकी जगह जुर्माना चुकाने की व्यवस्था की गई है। उद्यमियों को यूनिट चलाने के लिए अब सिर्फ  एक पंजीयन कराना होगा। अभी उन्हें छह प्रकार का पंजीयन कराना होता है। उद्यमियों को सभी प्रकार के श्रम संबंधी संहिता के पालन को लेकर सिर्फ एक रिटर्न दाखिल करना होगा। अभी आठ प्रकार के रिटर्न दाखिल करने पड़ते हैं। श्रम इंस्पेक्टर बिना बताए यूनिट के निरीक्षण के लिए नहीं जाएंगे। फेसलेस तरीके से यूनिट का रैंडम निरीक्षण किया जाएगा। श्रम संहिताओं के तहत नियमों का अनुपालन नहीं करने को लेकर अधिकतम सजा सात साल से कम कर तीन साल की गई है। इसके अलावा अदालतों द्वारा नियोक्ताओं पर लगाए जाने वाले जुर्माने का 50 प्रतिशत लाभ कर्मचारियों को मिलेगा।

 यह अदालत द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली क्षतिपूर्ति के अलावा होगा। चूंकि श्रम संबंधी मामला संविधान की समवर्ती सूची का विषय है, अतएव केंद्र एवं राज्यों दोनों को ही अपने अधिकार-क्षेत्र में कानूनी बदलाव करने के अधिकार मिले हुए हैं। केंद्र सरकार की तरह कई राज्य सरकारों ने भी श्रम कानूनों को लचीला एवं गतिशील बनाने तथा पारिश्रमिक संबंधी सीमाएं एवं सुरक्षा मानदंडों को हालात के हिसाब से बदलाव के लिए श्रम सुधारों के तहत कई अहम कदम उठाए हैं, जिनके तहत अधिक उत्पादन और नई स्थापित होने वाली इकाइयों को श्रम कानूनों के अनुपालन में काफी छूट दी गई है। खासतौर से उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, असम, महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा आदि राज्यों ने श्रम सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण फैसले किए हैं। विभिन्न राज्य सरकारों के द्वारा कारखाने का लाइसेंस लेने की शर्तों में भी ढील दी गई है। कारखाना अधिनियम 1948 और औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के अधिकांश प्रावधान लागू किए जाने में भी बड़ी रियायतें दी गई हैं। उत्पादन बढ़ाने के लिए कई राज्यों ने उत्पादन इकाइयों में काम के घंटों को आठ से बढ़ाकर 12 कर दिया है। ज्ञातव्य है कि उच्चतम न्यायालय भी कई बार अप्रासंगिक हो चुके ऐसे कानूनों की कमियां गिनाता रहा है, जो काम को कठिन और लंबी अवधि का बनाते हैं। दुनिया के आर्थिक और श्रम संगठन बार-बार यह कहते रहे हैं कि श्रम सुधारों से ही भारत में ही उद्योग-कारोबार का तेजी से विकास हो सकेगा। बार-बार यह कहा गया है कि भारत के तेज आर्थिक विकास के लिए श्रम सुधार महत्त्वपूर्ण आवश्यकता हैं।

अब एक ऐसे समय में जब कई देशों की कंपनियां चीन से कुछ उद्योग-कारोबार स्थानांतरित करने की योजना बना रही हैं, तब हम अच्छे श्रम कानूनों से इसका लाभ उठा सकते हैं। वियतनाम, बांग्लादेश तथा अन्य देश लचीले श्रम कानूनों के कारण इससे लाभान्वित होते हुए दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में भारत भी नए श्रम कानूनों से विनिर्माण को हरसंभव प्रोत्साहन देते हुए दिखाई दे सकेगा। निःसंदेह नए श्रम कानूनों से भारत की श्रम संबंधी विभिन्न वैश्विक रैंकिंग में सुधार होगा, लेकिन भारत की ओर वैश्विक उद्योग-कारोबार आकर्षित करने के लिए केवल नए श्रम कानूनों से काम नहीं बनने वाला है। इसके साथ अन्य ऐसे सुधारों की भी जरूरत है जिससे कारखाने की जमीन, परिवहन और औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए बिजली की लागत आदि को कम किया जा सके। कर तथा अन्य कानूनों की सरलता भी जरूरी होगी। साथ ही रुपए की विनिमय दर का प्रबंधन भी करना होगा। हम आशा करें कि देश तेजी से आर्थिक व औद्योगिक विकास के लिए नए श्रम कानूनों के तहत चार चमकीली श्रम संहिताओं से उत्पादन वृद्धि, निर्यात वृद्धि, रोजगार वृद्धि और विकास दर के ऊंचे लक्ष्यों को प्राप्त करने की डगर पर आगे बढ़ेगा।


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