अटल टनल और लाहुल-स्पीति का पर्यटन: प्रेम ठाकुर, लेखक लाहुल-स्पीति से हैं

By: प्रेम ठाकुर, लेखक लाहुल-स्पीति से हैं Oct 12th, 2020 12:07 am

प्रेम ठाकुर

लेखक लाहुल-स्पीति से हैं

लाहुल भी लाहुल-स्पीति जिले का एक हिस्सा है, फिर पर्यटक क्यों हुड़दंग करते हैं? शायद यह हमारी आपसी एकजुटता व सोच की कमी हो सकती है। आज लाहुल-स्पीति से कैबिनेट स्तर के मंत्री भी हैं जो पट्टन घाटी से ही हैं। किंतु इसके बावजूद उदयपुर की ओर से सड़क मार्ग को कछुए की चाल से चौड़ा किया जा रहा है। पूर्व विधायक ने पट्टन में पैराग्लाइडिंग की संभावनाओं पर एक उड़ान भरी थी जो आज नदारद है। सुमनम व अन्य कई जगह विश्वस्तरीय स्की स्लोप हैं जो आज अनदेखी के शिकार हैं…

हम लोग लाहुल (लोल) घाटी में पर्यटन स्थल न अब तक चिन्हित कर पाए हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं पहुंचा पाए हैं। पिछले पांच सालों से लाहुल-स्पीति के बुद्धिजीवियों के विभिन्न ग्रुप बने हैं जिनमें रोहतांग अटल टनल खुलने के बाद घाटी में टूरिज्म कैसा हो, क्या तैयारियां हैं व क्या करना बाकी है, इन सब पर सिर्फ चर्चा ही होती रही। कोई ठोस परिणाम नहीं निकल पाया। जबकि सुरंग का उद्घाटन हो चुका है व अनियंत्रित भीड़ ने चार दिन मे ही घाटी के शांतिपूर्ण माहौल के साथ-साथ सुरंग की अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। ट्रक आलू चोरी हो गया, चार दिन में पांच दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। पुलिस को सुरंग में कई रोक लगाने पड़ गए, जो दुःखद है। लाहुल की अपनी समस्याएं हैं, अपनी पुरानी प्राथमिकताएं हैं।

 ऐसा नहीं है कि पर्यटन से लाहुल चमक जाएगा। कटु सत्य यह भी है कि ऐसा सिर्फ कुछ ही क्षेत्र में होगा। भौगोलिक दृष्टि से लाहुल-स्पीति हिमाचल का 24 फीसदी के आसपास है। ऐसे में दूरदराज के क्षेत्रों को  पर्यटन का लाभ होना संभव नहीं। सिस्सु से दारचा सीधे लेह-लद्दाख मार्ग में होने से सबसे ज्यादा लाभ उन्हें आरंभ से मिलता आ रहा है और आगे भी मिलता रहेगा। कारगिल युद्ध के पश्चात भी इसी मार्ग को सुगम व चौड़ा किया गया जिसका लाभ पर्यटन को भी मिला, किंतु तांदी से उदयपुर पट्टन घाटी में इसका लाभ पहले भी नहीं मिला, न ही अभी उम्मीद की जा सकती है। सड़कें वही हैं जो तीस साल से पहले थी और जब तक पट्टन में पर्यटन स्थल न केवल चिन्हित हो अपितु मूलभूत सुविधाएं भी विकसित नहीं होंगी, पर्यटक आकर्षित नहीं होंगे। शायद इसी कारण पट्टन वाले अभी तक खेती को ही प्राथमिकता दे रहे हैं और हो भी क्यों न, इसी से वे सब आज सम्पन्न हुए हैं। पर्यटन भी वे विकसित करना चाहते हैं, किंतु स्थलों को चिन्हित कर पर्यटन पटल तक लाने में अभी बहुत वक्त लगेगा। अधिकतर पर्यटक लोल को सिर्फ जिस्पा सिस्सु के नाम से पहचान पाते हैं और वह भी लद्दाख मार्ग में एक ट्रांजिट कैंप के तौर पर।

 यहां एक रात्रि रुकना अब तक मजबूरी थी, किंतु अब सुरंग के चलते अधिकतर आगे पांग या सरचू रुकना चाहेंगे। काफी पर्यटक एक ही दिन में लद्दाख पहुंचना चाहेंगे। ऐसे में खतरा केलंग जिस्पा को भी है। इसके लिए उन्हें अब स्थानीय स्थल विकसित करने होंगे। सिस्सु भी सुरंग से इस ओर आने वालों या स्पीति जाने वालों के लिए फिलहाल एक रात्रि ट्रांजिट कैंप के रूप में ही दिख रहा है। इसलिए अतिरिक्त दिन रुकने के लिए अपने स्थान चिन्हित कर सुविधाएं शीघ्र तैयार करनी होंगी। आपसी एकजुटता की कमी व केवल  अपनी-अपनी वैली तक सीमित होने की सोच के कारण शायद आज तक कोई ठोस परिणाम या प्लान नहीं बन पाया है। अपने-अपने इलाके की सोच से आगे निकल कर संपूर्ण लाहुल में नए अविकसित स्थानों को नजरअंदाज कर रहे हैं। यही कारण होगा भी जिससे आने वाले दिनों में आधा लाहुल कंकरीट हो चुका होगा और संस्कृति व विरासत के कुछ धरोहर पर्यटन के नाम पर विलुप्त हो चुके होंगे। कुछ क्षेत्र मनाली के मार्ग पर चल कर अपनी संस्कृति को लगभग समाप्त कर चुके होंगे। दूसरी ओर स्पीति अपनी सख्ती व एकजुटता के कारण अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। ऐसा नहीं है कि स्पीति में पर्यटक कचरा लेकर नहीं पहुंचे, किंतु स्पीति निवासियों ने अपनी एकजुट कोशिश से आज लगभग आगंतुकों की सोच को ही बदल दिया है। आज जो भी बाहरी व्यक्ति या पर्यटक स्पीति की ओर रुख करता है, वह यह समझता है कि स्पीति में प्लास्टिक नहीं ले जाना है।

वह आज खुद कहता है कि मठ-गोंपाओं का सम्मान कैसे करना है, जुआ खेलना व शराब का सेवन नहीं करना है। पारंपरिक होमस्टे या खुद के टैंट में ही रहना है। बड़े व विलासिता वाले होटल नहीं मिलेंगे। यही सोच लिए जब आगंतुक आते हैं तो उन्हें स्थानीय लोगों से मिलने व समझने में समय नहीं लगता। प्रशासन भी पारंपरिक भवन शैली को प्राथमिकता दे रहा है। ऐसे में स्पीति के लोग आज महामारी के दौर में अपनी एकजुटता की मिसाल बन चुके हैं, जो संपूर्ण देश में आज कहीं नहीं दिखती। फिर लाहुल भी लाहुल-स्पीति जिले का एक हिस्सा है, फिर पर्यटक क्यों हुड़दंग करते हैं? शायद यह हमारी आपसी एकजुटता व सोच की कमी हो सकती है। आज लाहुल-स्पीति से कैबिनेट स्तर के मंत्री भी हैं जो पट्टन घाटी से ही हैं।

किंतु इसके बावजूद उदयपुर की ओर से सड़क मार्ग को कछुए की चाल से चौड़ा किया जा रहा है। पूर्व विधायक ने पट्टन में पैराग्लाइडिंग की संभावनाओं पर एक उड़ान भरी थी जो आज नदारद है। सुमनम व अन्य कई जगह विश्वस्तरीय स्की स्लोप हैं जो आज अनदेखी के शिकार हैं। जबकि सुमनम में जिला लाहुल-स्पीति का पहला होमस्टे है। मयाड घाटी की खूबसूरती अलग है। थानपट्टन की खूबसूरती स्विटजरलैंड से कम नहीं। मंडग्रां व मिनी मनाली अविकसित हैं। नीलकंठ महादेव झील ट्रैक, घेपण लेक ट्रैक इत्यादि पर्यटन मानचित्र पर प्रमुखता से नहीं हैं, न ही उचित सुविधा है, जबकि स्पीति ने देश के सबसे ऊंचे स्केटिंग रिंक की स्थापना भी कर दी है। अभी कुछ समय है चिंतन के लिए। सुरंग तो खुल गई है जो देश की सुरक्षा प्राथमिकता व घाटी के लोगों को सर्दियों में होने वाले कष्ट के निवारण की दृष्टि से दशकों से हमारे स्वप्न में रही है, किंतु आज इसके खुलते ही हमारी प्राथमिकताएं बदल सी गई हैं। पर्यटन प्राथमिक हो गया है और घाटी की संस्कृति की सुरक्षा, देश की सुरक्षा कहीं पीछे छूट गए हैं।


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