वर्तमान शिक्षा प्रणाली

By: स्वामी विवेकानंद Oct 3rd, 2020 12:20 am

गतांक से आगे…

जब तक कुलीन बड़े आदमी भलीभांति उनकी संभाल नहीं करते, तब तक राजनीति का कितना ही आंदोलन क्यों किया जाए, कुछ भी फल न होगा। यदि सचमुच भारत का पुनरुद्धार करने की इच्छा है, तो हमें जनता के लिए अवश्य ही काम करना होगा। हमें अपने देश की आध्यात्मिक शिक्षा और सभी प्रकार की ऐहिक शिक्षा अपने हाथ में लेनी होगी और उस शिक्षा में भारतीय शिक्षा की सनातन गति स्थिर रखनी होगी।

साथ ही सनातन प्रणाली को यथासंभव ग्रहण करना होगा। वर्तमान शिक्षा प्रणाली मनुष्यत्व की शिक्षा नहीं देती, गठन नहीं करती और एक बनी बनाई चीज को तोड़ना फोड़ना जानती है। ऐसी अवस्थामूलक अथवा अस्थिरता  का प्रचार करने वाली शिक्षा अथवा वह शिक्षा, जो केवल नैतिक भाव को ही फैलाती है, किसी काम की नहीं है। वह तो मौत से भी भयंकर है। मस्तिष्क में अनेक तरह का ज्ञान भर लेना, उससे कुछ काम न लेना और जन्म भर वाद-विवाद करते रहने का नाम शिक्षा नहीं है। अच्छे आदर्श और अच्छे भावों को काम में लाकर लाभ उठाना चाहिए, जिनसे वास्तविक मनुष्यत्व चरित्र और जीवन बन सके। क्या पोथियां पढ़ लेना ही शिक्षा है? नहीं, तो अनेक प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने का नाम शिक्षा है? नहीं। जिसकी सहायता से इच्छा शक्ति का वेग और स्फूर्ति अपने वश में हो जाए और जिससे मनोरथ सफल हो सके, वही शिक्षा है। कर्म वही है, जिसके द्वारा आत्मभाव का विकास हो और जिसके द्वारा अनात्मभाव का विकास हो, वही अकर्म है।

जिन्होंने अपने को ईश्वर के हवाले कर दिया, वे पूर्व लिखित कर्म करने वालों की अपेक्षा संसार के भले के लिए बहुत अधिक काम करते हैं। जिसने अपने को बिलकुल शुद्ध कर लिया है, ऐसा एक भी आदमी हमारा धर्म प्रचारकों के मुकाबले कहीं बढ़कर काम करता है। चित्त की शुद्धि और मौन रहने से ही बात में जोर आता है। शिक्षा का मतलब कुछ शब्द लिख पढ़ लेने से नहीं है। शिक्षा से मतलब व्यक्तियों को इस तरह संगठित करने से हो, जिससे कि उनकी इच्छा साद्धिषयों की तरफ दौड़े और कार्य भलीभांति सिद्ध हों। इसी प्रकार की शिक्षा पाने पर हमारे भारत की भलाई करने में समर्थ निडर महिलाओं का अभ्युदय होगा, वे संघमित्रा, लीलावती, अहिल्याबाई, मीराबाई और दमयंती प्रभूति का पदानुसरण करने में समर्थ होंगी, वे पवित्र, स्वार्थ की छूट से अछूती वीर नारियां होंगी।

भगवत के चरण कमलों का स्पर्श करने से उनमें वीरता का प्रमाण होगा और वे वीर प्रसविनी होने की पात्र होंगी। किसी से बहस करने की जरूरत नहीं। तुम्हें जो कुछ सिखाना है, सिखाओ और की बात में मत उलझो। सत्यमेव जयते नानृतम वदा कि विवादेन जब सत्य की ही जीत होती है तब फिर विवाद करने से क्या मतलब? हमें ऐसा उपाय करना होगा जिससे हमारे युवकों को वेदों, अनेक दर्शनों और भाष्य गं्रथों की शिक्षा प्राप्त हो साथ ही अन्यान्य अवैदिक धर्मों के तत्त्व भी उन्हें समझा दिए जाएं ताकि उन्हें घर का ज्ञान हो जाए और वे बाहर की बातों से भी अपरिचित न रहें। कुछ परीक्षाएं पास कर लेना अथवा धुआंधार व्याख्यान देने की शक्ति प्राप्त कर लेना शिक्षित हो जाना नहीं कहलाता। जिस विद्या के बल से जनता को जीवन संग्राम के लिए समर्थ नहीं किया जा सकता।


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