भू-राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली में सुधार हो : सुखदेव सिंह, लेखक नूरपुर से हैं

By: सुखदेव सिंह, लेखक नूरपुर Oct 26th, 2020 12:06 am

हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद से भू-राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं किया गया है। नतीजतन जनता को दशकों गुजर जाने के बावजूद इस विभाग से न्याय न मिलना चिंताजनक है। हैरानी इस बात की है कि भू-राजस्व विभाग का दायित्व पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पास होने के बावजूद इस विभाग में कोई सुधार देखने को अब तक नहीं मिला। इसी बात से अंदाजा हो जाता है कि आखिर जनमंचों में जमीनी विवादों की कितनी समस्याओं का समाधान मौके पर ही संभव हो पाया होगा? जमीनी विवाद कुल 94902, तकसीम 29313, निशानदेही 18025, इंतकाल 25251, इंद्राज दरुस्ती, अतिक्रमण 2837 और 16790 अन्य मामलों के चल रहे हैं, कब इनका समाधान होकर जनता को राहत मिलेगी, कोई नहीं जानता है। लोगों को हर महीने सिर्फ  तहसीलों में अगली तारीख दिए जाने के लिए ही बुलाया जाता है। लोग सुबह से लेकर शाम तक भूखे-प्यासे तहसीलों के समक्ष न्याय के लिए खड़े रहते हैं, मगर अधिकारियों का मन लोगों की लाचारी देखकर भी नहीं पसीजता है। कुछेक रिश्वतखोर अधिकारियों की जो जेब गर्म कर देता है, उसकी समस्या का निदान अतिशीघ्र हो जाता है। इस अंधेर नगरी में सरकार भी इस विभाग के आगे असहाय नजर आती है।

इस विभाग की कमान अब जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने संभाली तो इसे सरलीकरण बनाए जाने के प्रयास जोरों से चल रहे हैं। लंबित पड़े जमीनी विवादों के केसों की फाइल देखकर खुद भू-राजस्व मंत्री भी चिंता में हैं। बढ़ते जमीनी विवादों के चलते समाज की एकता खतरे में है। आज हालात इस कदर बदतर बन चुके हैं कि एक भाई दूसरे भाई का गला काटने को भी तैयार है। समाज में बढ़ती आपराधिक घटनाओं की प्रमुख वजह लोगों का आपसी जमीनी विवाद भी है। भू-राजस्व विभाग भ्रष्टाचार का अड्डा बनकर रह गया है जिसके चलते आए दिन अधिकारी रिश्वत लेते रंगे हाथों दबोचे जा रहे हैं। आखिर क्या वजह है कि तहसीलों में कभी भीड़ कम देखने को नहीं मिलती है। जनता अपने जमीनी विवादों को सुलझाने के लिए न्याय मंदिरों के समक्ष गुहार लगाती है, मगर दशकों बीत जाने के बावजूद उन्हें सिर्फ  निराशा ही हाथ लगती है। पेचीदी भू-राजस्व विभाग कार्यप्रणाली तथा ऊपर से अधिकारियों का रिश्वतखोर होना हमारे खोखले सिस्टम की पोल खोलता है। हालांकि अब जल्द ही भू-राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली हिंदी भाषा आधारित बनेगी, ऐसी पूरी उम्मीद है। प्रत्येक जिलाधीश, तहसीलदार से जमीनों के रेट की सूची मांगी गई है। जमीनों को मनमाने दाम में बेचकर सरकार के राजस्व को चूना लगाने की कोशिश जारी है, जिसकी भनक शायद मंत्री महोदय को लग चुकी है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर स्वयं शीतकालीन सत्र में भू-राजस्व विभाग के पटवारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा चुके हैं। अतः अब सुधार अपरिहार्य हैं।


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