हर दिन नई खोज में आईआईटी मंडी

By: अमन अग्निहोत्री Oct 21st, 2020 12:06 am

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आईआईटी यानी इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मंडी हिल टेक्नोलॉजी के लिए एक आविष्कारिक संस्था के रूप में उभरा है। इस राष्ट्रीय संस्थान ने अपनी स्थापना के अल्प काल में ही एक से बढ़कर एक अविष्कार कर बड़े-बड़े राष्ट्रीय संस्थानों को पीछे छोड़ दिया है। तरह-तरह की खोजों के साथ संस्थान ने अब तक क्या-कुछ किया है खास… किन प्रोजेक्ट्स पर चल रहा है काम… बता रहे हैं मंडी से अमन अग्निहोत्री

रक्षा का क्षेत्र हो, किसान व बागबानों की बात हो, बडे़-बडे़ उद्योगों की ज्वलंत समस्याओं को तकनीक से पार पाने का मसला हो या कोरोना महामारी के संकट में योगदान… इन सबमें एक नाम जरूर आता है, और वह आईआईटी मंडी। नई खुली आईआईटी में सबसे पहले अपने कैंपस में स्थापित होने वाली आईआईटी मंडी देश के लिए अब तक कई अविष्कार दे चुकी है। केंद्र सरकार की सबसे सस्ता टेबलेट देने की आकाश योजना में भी संस्थान का योगदान रहा है। इसी तरह देश के पहले घरेलू लड़ाकू विमान तेजस के निर्माण में भी आईआईटी मंडी का योगदान रहा है।

महामारी के संकट में वेंटिलेटर की कमी खूब खली है, लेकिन आईआईटी ने देश को सबसे सस्ते व कहीं भी आसानी से ले जाने में सक्षम वेंटिलेटर इजाद कर दिए हैं। आने वाले समय में इससे हर अस्पताल में वेंटीलेटर की सुविधा मिल सकेगी। इस समय आईआईटी मंडी ने तीन अत्यधुनिक अनुसंधान केंद्र भी 125 करोड़ की लागत से बनाए हैं, जिसमें एडवांस मैटीरियल रिसर्च सेंटर 60 करोड़ की लागत से, 50 करोड़ से सेंटर ऑफ डिजाइन एंड फेब्रिकेशन फॉर इलेक्ट्रिकल डिवाइस और निर्माण के लिए केंद्र 50 करोड़ और बायो एक्स सेंटर का निर्माण 15 करोड़ से किया गया है।

आईआईटी मंडी सूर्य की रोशनी से पानी से हाइड्रोजन प्राप्त करने  और प्रदूषण कम करने का फार्मूला भी तैयार कर चुकी है। चीन को पछाड़ कर एशिया की सबसे छोटी पांच से दस मीटर की नैना चिप आईआईटी मंडी तैयार कर चुकी है। जानलेवा बीमारियों को समय रहते पकड़ने पर भी आईआईटी मंडी शोध कर चुकी है। इसके साथ ही पेशाब व रक्त के नमूनों के जरिए गुर्दों के खराब होने के प्रारंभिक लक्षणों की जांच का भी तरीका आईआईटी मंडी तैयार कर चुकी है। सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडी जैकैट का निर्माण भी आईआईटी मंडी कर चुकी है। जो देश के जवानों के लिए बहुत बड़ा अविष्कार है। देश की सेना के लिए सबसे उच्च क्षमता की सुपर कैपेस्टर बनाने में भी आईआईटी मंडी लगी हुई है।

डीआरडीओ के इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद भारी भरकम बैटरी से देश की सेना को निजात मिलेगी। ये बेटरी खास देश की तोप समेत हर हथियार के लिए जरूरी है। फोटो से असाध्य रोगों की पहचान और फोटो से फसल की सेहत जैसे शोध भी आईआईटी मंडी में चल रहे हैं। सेना के लिए ही ईको फैं्रडली बम की तकनीक पर भी आईआईटी काम कर रही है।

देश भर में सातवें स्थान पर संस्थान

शिक्षा मंत्रालय के इनोवेशन सैल की अटल रैंकिंग ऑफ इंस्टीच्यूशन ऑन इनोवेशन अचीवमेंट्स में आईआईटी मंडी को देश भर में सातवां स्थान मिला है, तो वहीं आईआईटी मंडी ने इतने कम समय में देश भर में अपनी पहचान बनाई है। हाल में ही आईआईटी मंडी को देश के 100 उच्च शिक्षण संस्थाओं में 67वां रैंक मिला है।

अतहर आमिर संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा में सेकेंड

इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यानी आईआईटी मंडी से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने वाले जम्मू-कश्मीर के युवा अतहर आमिर ने 2016 में संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा में देश में भर में दूसरा स्थान हासिल किया है। यह पहला मौका था, जब आईआईटी मंडी के किसी छात्र ने सिविल सर्विसेज में झंडे गाडे़ हों।

देश की नदियां-नाले होंगे प्रदूषण मुक्त

आईआईटी मंडी के छात्रों ने नदियों को प्रदूषित होने से बचाने की तकनीक इजाद कर ली है। उद्योगों से निकलने वाले कचरे व केमिकलयुक्त पानी से देश की नदियां अब प्रदूषित नहीं होंगी। इतना ही नहीं, केमिकलयुक्त पानी व कचरा मानव प्रयोग में भी लाया जा सकेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के छात्रों ने फोटो कैटालिक रिएक्टर (पारदर्शी कांच रिएक्टर) तैयार किया है। यह सूर्य की किरणों से औद्योगिक प्रदूषण मिटाने में मददगार होंगी। फोटो कैटालिक रिएक्टर की लागत मात्र 40 से 50 हजार रुपए के बीच आएगी। उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण देश के समक्ष बड़ी चुनौती है। करीब एक साल के अनुसंधान के बाद सहायक प्रोफेसर डा. राहुल वैश के नेतृत्व में फोटो कैटालिक रिएक्टर तकनीक इजाद की है।

बिगड़ी टीबी का भी निकालेंगे तोड़

टीबी के सबसे बिगडे़ व खतरनाक रूप एमडीआर मल्टी ड्रग रसिस्टेंट का तोड़ निकालने में भी आईआईटी मंडी लगा हुआ है। रोग के इस रूप ने पूरी दुनिया को चिंता में डाला हुआ है। टीबी का इलाज संभव है, लेकिन टीबी के इस रूप का इलाज अब तक संभव नहीं हुआ है। आईआईटी मंडी स्कूल ऑफ बेसिक साइंस इस विषय पर शोध कर इसका तोड़ निकालने के प्रयास में है।

र्स्टाटअप स्कीम में अहम हिस्सेदारी

केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए र्स्टाटअप कार्यक्रम में भी आईआईटी मंडी अहम हिस्सेदारी निभा रही हैं। आाईआईटी मंडी में प्रौद्योगिकी बिजनेस इन्क्यूबेटर सैल स्थापित किया गया है, जिसका दूसरा चरण भी शुरू हो चुका है। इस सैल के माध्यम से अब उद्योगों में प्रौद्योगिकी के प्रयोग, नए उद्यमियों को बाजार सर्वेक्षण, विपणन और व्यापार योजना व व्यापार प्रशिक्षण की सुविधा आईआईटी उपलब्ध करवाएगी। यह सैल केंद्र सरकार के केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड के द्वारा स्थापित किया गया है।

ज़रूरत से ज्यादा बिजली नहीं खर्च पाएंगे

कम्प्यूटर या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक गजट को ठंडा करने के लिए सबसे छोटी नैनो चिप भी आईआईटी मंडी ने बनाई है, जिससे अब आने वाले समय में कम्प्यूटर या लैपटॉप बिना पंखे ही चलेंगे। बिजली की खपत पर अंकुश लगाने वाला स्मार्ट ग्रिड लांच पैड बनाया गया है, जिससे अब चाहकर भी जरूरत से ज्यादा बिजली लोग खर्च नहीं कर सकेंगे, जबकि एक ही टीवी या स्क्रीन पर दो वीडियो देखने सुनने का अविष्कार भी आईआईटी मंडी ने ही किया है।

मशीन खुद ही बना देगी स्वादिष्ट खाना

आईआईटी मंडी के युवा वैज्ञानिक ने सवा लाख रुपए से फार्मूला वन रेस रेसकार भी तैयार कर ली है। इसके अलावा कब खेत को पानी चाहिए, यह तकनीक भी आईआईटी ने तैयार कर ली है। इससे अपने खेतों को जरूरत के समय पानी मिलेगा, जबकि मशीन खुद स्वादिष्ट खाना बनाएगी, यह शोध भी आईआईटी ने कर लिया है। वहीं, जहरीली गैस रोकने वाले नैनो सेंसर भी आईआईटी तैयार कर चुकी है।

कई बड़ी चैंपियनशिप्स भी जीतीं

मंडी के पूर्व छात्र प्रदीप सेवी ने वर्ष 2015 में ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इंजीनियरिंग परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक नंबर-1 हासिल किया था, जबकि उस समय वह इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की भी पढ़ाई कर रहे थे। नितेश कुमार बीटेक फोर्थ ईयर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग मंडी के छात्र ने फोर्जा आयरिश पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप 2017 में स्वर्ण पदक जीता है, जबकि विश्व पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप 2019 में युगल में वह रजत पदक जीत चुके हैं। नवंबर 2019 में निशिता, रूचिका शर्मा और मेहक जैन द्वितीय वर्ष के बीटेक कम्प्यूटर साइंस इंजीनियरिंग विभाग की छात्राओं ने एसोसिएशन द्वारा संचालित कम्प्यूटिंग में महिलाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर के हैकथॉन में पहला पुरस्कार जीता है।

छात्रों को करोड़ों के पैकेज

शैक्षणिक वर्ष 2019-20 के लिए कैंपस प्लेसमेंट के अब तक कुल 115 प्रस्ताव आईआईटी मंडी को मिले हैं। इनमें से 34 छात्रों ने प्री प्लेसमेंट ऑफ र प्राप्त किए हैं, जिसमें पांच अंतरराष्ट्रीय ऑफर शामिल थे। अकेले प्लेसमेंट के लिए कुल 75 कंपनियों ने पंजीकरण करवाया है। शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में कुल 123 छात्रों ने प्लेसमेंट के लिए पंजीकरण करवाया है। आईआईटी मंडी से पासआउट होने वाले इंजीनियर को परीक्षा खत्म होने से पहले ही रोजगार मिल जाता है। आईआईटी मंडी के होनहार अब तक 28 लाख रुपए से 1.7 करोड़ तक का पैकेज पा चुके हैं। दो वर्ष पहले आईआईटी के शुभम अजमेरा को गूगल कंपनी ने 1.7 करोड़ रुपए के पैकेज पर लिया है, जबकि इससे पहले 45 छात्र भी 28 लाख तक के पैकेज पर विभिन्न नामी कंपनियों में नौकरी पा चुके हैं।

नेचर फें्रडली बम बनाने की तैयारी

आईआईटी मंडी को डीआरडीओ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने एक विशेष जिम्मा दिया है। आईआईटी मंडी अब ऐसा विस्फोट बनाने की तैयारी कर रही है, जिससे दुश्मन का खात्मा तो होगा, लेकिन इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। यह जिम्मेदारी डीआरडीओ ने आईआईटी मंडी को सौंपी है।

पुलिस समेत कई विभागों के साथ समझौता

आईआईटी मंडी ने हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग से एमओयू साइन किया है, जिसमें वर्तमान में प्रदेश में कार्य कर रही पुलिस प्रणाली को और हाईटेक बनाने का कार्य किया जा रहा है। इस योजना के तहत आईआईटी मंडी में शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र प्रदेश की पुलिस के साथ धरातल आधुनिक तौर पर आने वाली दिक्कतें दूर करने के लिए नए शोध करने का कार्य करेंगे।

साथ ही आईआईटी मंडी ने मंडी शहर की मौजूदा नगर परिषद से भी एमओयू साइन किया है, जिसमें शहर को आधुनिक व तकनीकी तौर पर विकसित करने के लिए आईआईटी मंडी लगातार कार्य कर रही है। इसके अलावा स्मार्ट कृषि के लिए आईआईटी मंडी एक सामूहिक ओपनसोर्स डाटा प्लेटफॉर्म के साथ क्लाउड सेवा तैयार की है। इसके तहत किसानों को खेत स्तर की जानकारी के प्रसार के लिए जलवायु परिवर्तन और मौसम की भविष्यवाणी से निपटने के लिए भूमि, मिट्टी, पानी, बीज और बाजार लिंकेज की दिक्कतें शामिल हैं।

सफलता की कहानी

आईआईटी मंडी ने हिमाचल के आधुनिक व ग्रामीण क्षेत्रों तक नई तकनीक पहुंचाने का कार्य किया है। हिमाचल के शहर गांव के साथ ही प्रदेश सरकार का भी आईआईटी मंडी सहयोग कर रही है। बदलते मौसम से परेशान किसान-बागबान हों या फिर शहरों में पार्किंग से परेशान लोग, इन  सबके लिए आईआईटी मंडी ने पिछले कुछ वर्षों में काम किया है। जैव विविधता को लेकर भी आईआईटी काम कर रही है।

 आईआईटी मंडी में एक पार्क भी स्थापित किया गया है, जिसमें लुप्त होती हिमाचल वनसंपदा का संरक्षण किया जा रहा है। हिमाचल के किसानों की समस्या बिच्छू बूटी से आईआईटी मंडी ने कपड़ा बनाने की तकनीक इजाद कर दी है। इस तकनीक से बनने वाला कपड़ा सर्दियों में गर्म तो गर्मियों में शीतल होगा। वहीं, चीड़ की पत्तियों से कोयला बनाने की तकनीक भी आईआईटी मंडी ने दी है। गर्मियों में चीड़ की पत्तियों की वजह से पूरे प्रदेश में जंगल जल जाते हैं, लेकिन कोयला बनाने की इस विधि की वजह से आने वाले वर्षों में जंगलों को बचाया जा सकेगा।  हिमाचल के हस्तशिल्प उत्पादों को भी आईआईटी मंडी विशेष पहचान दिलाने में लगी हुई है। आईआईटी मंडी ने क्षेत्र के महिला मंडलों द्वारा बनाए जाने वाले उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक की पहचान दिला दी है।

क्षेत्र की दर्जनों महिला मंडलों को आईआईटी मंडी तकनीक सपोर्ट भी दे रही है। इनके उत्पादों को खरीदकर आईआईटी मंडी में होने नेशनल व इंटरनेशनल वर्कशॉप में मेहमानों को भेंट किया जाता है। वहीं, भारत सरकार के अनुदान की सहायता से आईआईटी में हिमालयी आजीविका की प्रगति के लिए केंद्र (यूएचएल) स्थापित किया गया है। इसमें सामजाकि और आर्थिक दृष्टिकोण से संबंधित योजनाओं मसलन खतरनाक चीड़ पत्तियों का पर्यावरण के लिए प्रयोग, अजोला का पशु चारे में उपयोग, मेक इन इंडिया के लिए प्रारूव और नवोत्थान केंद्र स्थापित किए गए हैं।

कई प्रोजेक्ट्स पर चल रहा काम

हिमाचल के किसानों के लिए पाइन नीडल ब्रिकेट प्रोजेक्ट एक यूनिट की स्थापना करके पाइन नीडल को एक सफल व्यवसाय मॉडल बनाया। इसे ब्रिकेट के रूप में जैव ईंधन में बदल देता है। प्रौद्योगिकी प्रगति के अलावा मंडी जिला की  प्रकृति और प्राकृतिक वनस्पतियों के संरक्षण के लिए कई प्रगतिशील कदम उठा रही है।

आईआईटी मंडी में परिसर में ग्रीन एक्टिविटीज का उचित प्रबंधन और कुशल कामकाज सुनिश्चित करने के लिए आंतरिक और बाहरी सदस्यों के साथ एक सक्रिय ग्रीन पैनल है। स्थानीय कृषि संबंधी चुनौतियों का समाधान करने के लिए आईआईटी मंडी ने स्थानीय जलविद्युत किसानों के लिए आय के पर्याप्त साधन के रूप में हर्बल जलसेक तकनीक विकसित करने के लिए अनुसंधान पर काम किया।

भू-स्खलन का पहले ही अलर्ट…पेड़ों से रोकेंगे यह आपदा

आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने भू-स्खलन के खिलाफ कम लागत की निगरानी और चेतावनी प्रणाली विकसित की है। इस प्रयास के तहत मौसम के मापदंडों और मिट्टी के गुणों को रिकॉर्ड किया जा सकता है। यह विकसित प्रणाली हिमाचल में 20 से अधिक भू-स्खलन संभावित स्थानों पर तैनात की गई है।

इसके अलावा मौजूदा रोप-वे प्रणाली को उन्नत करने में विशेषज्ञता प्रदान की, जो नदियों के विभिन्न तटों पर रहने वाले ग्रामीण समुदाय को परेशानी मुक्त और सुरक्षित संपर्क प्रदान करने और उनके बीच एक सामाजिक बंधन बनाने में मदद करेगी। आईआईटी के शोधार्थियों ने ऐसे पेड़ों की पहचान की है, जिनकी जड़ें ज्यादा मिट्टी पकड़ती हैं और ये पेड़ हिमाचल में भी पाए जाते हैं। इन पेड़ों को भ-स्खलन प्रभावित और संभावित इलाकों में लगाया जाएगा, ताकि लैंड स्लाइडिंग रोकी जा सके।

कल की जरूरतों के हिसाब से आज की खोज

प्रो. अजीत के चतुर्वेदी निदेशक, आईआईटी

दिहिः इस संस्थान और आपके लक्ष्य क्या हैं? किन-किन क्षेत्रों में शोध करना चाहते हैं?

उत्तरः आईआईटी मंडी अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए लगातार नए रास्ते बना रहा है। संस्थान किसी भी क्षेत्र या अनुशासन के छात्रों के लिए अच्छे अवसर प्रदान कर रहा है। इसके साथ ही उद्यमिता की भावना पैदा करना, समाज व उद्योग की समस्याओं के लिए विश्व स्तरीय मान्यता प्राप्त समाधान विकसित करना और विशेष रूप से हिमालय के नाजुक ईको सिस्टम में अगली पीढ़ी के इंजीनियर्स, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को प्रेरणा देने में सक्षम शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए शिक्षा और अनुसंधान के लिए संस्थान प्रयास कर रहा है।

दिहिः जल संसाधनों और वन क्षेत्रों को बचाने में प्रौद्योगिकी कैसे मदद कर सकती है?

उत्तरः चुंबकीय अनुनाद, राडार और प्रतिरोधकता मीटर जैसे उन्नत तकनीकी उपकरणों के साथ जल संसाधनों की पहचान और स्थिरता का अध्ययन कुशल और तेज किया जा सकता है। थर्मल और इन्फ्र ारेड सेंसर्स से लैस सेटेलाइट इमेजिंग के साथ, वनीकरण वनों की कटाई के डाटा को आसानी से एक्सेस और मूल्यांकन किया जा सकता है। अब तकनीकी हस्तक्षेप से आम लोगों को ऐप और टूल की सुविधा मिली है, वे जल और वन संरक्षण के बारे में अधिक जागरूक हो गए हैं और वे इस प्रक्रिया में योगदान दे सकते हैं।

दिहिः यह प्रदेश आपदा की दृष्टि में अति संवेदनशील है, यहां आपदा प्रबंधन में आप क्या करना चाहते हैं?

उत्तरः हिमाचल प्रदेश आपदओं से भरा हुआ है और इससे निपटने के लिए आईआईटी लगातार प्रयास कर रहा है। आईआईटी मंडी ने भू-स्खलन के संबंध में विभिन्न गतिविधियों का बीड़ा उठाया है। डा. उदय और डा. वरुण दत्त ने आपदा से जुड़े जीवन के नुकसान को कम करने के लिए कम लागत वाली प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को पेटेंट करवाया है। डीडीएमए मंडी, एसडीएमए एचपी और रेलवे के सहयोग से राज्य में 20 से अधिक इंस्टॉलेशन हेवन किए गए हैं। वर्तमान शोध मशीन लर्निंग के आधार पर साप्ताहिक आधार पर भविष्यवाणी की ओर केंद्रित है। डा. उदय और डा. श्याम मसाकापल्ली देसी पौधों और घास प्रजातियों के माध्यम से कटाव रक्षा और भू-स्खलन के शमन की दिशा में काम कर रहे हैं। अपने अध्ययन में उन्होंने 12 पेड़ और पौधों की प्रजातियों और तीन घास प्रजातियों की पहचान की है और मिट्टी की स्थिरता में सुधार और भू-स्खलन को कम करने के लिए प्रभावी हैं।

डा. शुक्ला ने बड़े पैमाने पर हिमाचल प्रदेश में वाटरशेड क्षेत्रों के साथ, भू-स्थानिक तकनीकों का उपयोग करते हुए भू-स्खलन के खतरे वाले मानचित्रों को विकसित करने का काम कर रहे हैं। डा. संदीप साहा और उनकी शोध टीम भूकंप के झटकों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ कई खतरों के तहत इस पहाड़ी इलाके में स्थित स्टॉक और लाइफलाइन इन्फ्रास्ट्रक्चर की भेद्यता का आकलन करने पर काम कर रही है। डा. आशुतोष ने नेपाल की विश्व विरासत संपत्ति 2015 भूकंप के तहत सूचीबद्ध विरासत संरचनाओं के भूकंपीय प्रदर्शन की जांच करने पर काम किया है। बादल फटने और बाढ़ के खिलाफ  कटाव संरक्षण से बचाव के लिए डा. दीपक फ्लड प्रोजेक्शन पर काम कर रहे हैं। हिम-स्खलनपर डा. मौसमी और डा. गौरव भूटानी ने एक मॉडल विकसित किया।

दिहिः तकनीक इनोवेशन में हिमाचल में क्या स्कोप है?

उत्तरः उपयोगी उत्पादों और प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए सामाजिक आर्थिक संदर्भ की समझ की आवश्यकता होती है, जिसमें उनका उपयोग किया जा सकता है। यह जरूरी है कि कल के प्रौद्योगिकी नेता समाज और प्रौद्योगिकी के आपसी तालमेल को समझें। यह देखा गया है कि अकसर समाज में समस्याओं को सरल समाधान की आवश्यकता होती है और सही तकनीकी हस्तक्षेप के साथ आसानी से हल किया जा सकता है। हिमालय क्षेत्र में यह अकेली आईआईटी है और यहां अविष्कार का क्षेत्र का काफी व्यापक है। बड़ी चुनौतियां ही इनोवेशन को जन्म देती हैं।


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