हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप

By: अशोक सिंह गुलेरिया Oct 18th, 2020 12:12 am

अशोक सिंह गुलेरिया

मो.-9453939270

देवभूमि हिमाचल प्रदेश परंपरागत एवं पौराणिक लोक साहित्य का विशाल पुंज है। नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर इस धरती के कण-कण में अलौकिक आभा प्रकट होती महसूस होती है। प्रदेश के जन-जन के कृत्य में बसी परंपराएं, विचारधाराएं, रीति-रिवाज, संस्कार तथा मधुर बोलियां इस प्रदेश की विविधता एवं समृद्धता को प्रकट करती हैं।

हिमाचल के प्रत्येक हिस्से में बसने वाले जनमानस ने सदियों से हिमाचल की समृद्ध लोक विरासत को सहेज कर रखा है तथा इस प्रदेश के प्रबुद्ध कलाकारों, साहित्य प्रेमियों, लेखकों, लोक गायकों, कवियों ने हिमाचली लोक साहित्य को विविधता की ऊर्जा प्रदान की है। हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक साहित्यिक विकास यात्रा राजसी शासनकाल से विकसित होने शुरू हो गई थी।

तेरहवीं शताब्दी के आरंभ से चंबा प्रांत के बर्मन राजाओं के काल से टांकरी में हस्तलिखित अभिलेखों से पता चलता है कि हिमाचली साहित्य की विभिन्न विधाएं जैसे लोकगीत, कविताएं, लघु कहानियां, नाटक, धार्मिक कथाएं, ऐतिहासिक गाथाएं इत्यादि प्रचलित भाषाओं में लिपिबद्ध होने लगी थीं। प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय राजाओं में गुलेर, कांगड़ा, बुशहर, मंडी, सुकेत, बिलासपुर के राजाओं ने भी हिमाचली लोक साहित्य को 18वीं शताब्दी तक समृद्ध किया।

ब्रिटिश काल तक भी हिमाचल के लोक साहित्य को टांकरी एवं अन्य पहाड़ी भाषाओं की रंगत मिलती रही है। हिमाचली लोक साहित्य का वर्तमान अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक विविधता एवं सफलता की ओर अग्रसर रहा है। हिमाचली लोक साहित्य की खासियत यह रही है कि इसने जनमानस के अंतर्मन के कई पहलुओं को छूकर उजागर किया है। आम आदमी की भावनाओं, आकांक्षाओं तथा सांसारिक जीवन के कई मनोभाव हिमाचली लोक साहित्य का आधार हैं।

किसी भी विधा में रचे मनोभाव हर किसी को बरबस उद्वेलित कर देते हैं। लोकगीतों के माध्यम से इस प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के जनजीवन की विभिन्न स्थितियों में व्यक्त भावनाओं का वर्णन मिलता है, जिसके अनेक रूप परंपरित हैं। इसी प्रकार लोकगाथाओं में यहां का इतिहास झलकता है। घटना-प्रधान कथा गीतों में प्रेम, बलिदान, शौर्य आदि के प्रसंग व घटनाएं सुनने को मिलती हैं। ऋतु गीतों बारहमासा में नारी की कमनीय, कोमल भावनाओं का ऋतु क्रम में वर्णन हुआ है।

श्रम गीतों में लोक जीवन की अनेक स्थितियों का बोध मिलता है। लोक नाटकों में समय के तेवर हास्य-व्यंग्य के साथ व्यक्त हुए हैं। प्रदेश में करियाला, बांठड़ा, भगत आदि लोक नाटकों की समृद्ध परंपरा है। हर क्षेत्र में लोक कथाओं के सुनने-सुनाने की परंपरा प्रचलित रही है।

इतिहास और पौराणिकता में बिना छेड़छाड़ के आज कितने ही नए कलाकार हिमाचली लोक साहित्य के सृजन और निखार की कोशिश में लगे हुए हैं। छोटे-छोटे पारिवारिक जीवन से जुड़े रीति-रिवाजों और परंपरा पर हर तरह के लोकगीत, विचार एवं औपचारिकताएं हिमाचली लोक संस्कृति और इसके परिवेश को चार चांद लगा देते हैं।

समग्र रूप में हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप अत्यंत व्यापक है। इसमें लोक जीवन की हर अनुभूति और संवेदना का वर्णन मिलता है। हिमाचल का भूगोल पर्वतीय और मैदानी अर्थात जनजातीय और समतलीय जीवन में बंटा हुआ है। अतः लाहुल, स्पीति, पांगी, किन्नौर आदि क्षेत्रों का लोक साहित्य तिब्बती लामा धर्म से प्रभावित है। उसी प्रभाव के कारण लोक गीतों, कथाओं, नाट्यों, गाथाओं में समतली हिमाचल  से भिन्नता रखता है, जो अपने स्वरूप में जिज्ञासापूर्ण है। समाहार रूप में कहें तो हिमाचल के लोक साहित्य का स्वरूप अनेक रूपों में, अनेक शैलियों में परंपरित है।

विविधता में एकता का सिद्धांत हिमाचल प्रदेश में जीवंत एवं साक्षात रूप से साहित्य में झलकता है। यही खूबी हिमाचल को एक समृद्ध संस्कृति और संस्कार प्रदान करती है। आज जबकि चारों ओर आधुनिकता और उदारीकरण अपने चरम पर है तथा समाज में हर कोई खुलेपन की ओर बढ़ रहा है, हिमाचली लोक साहित्य और अन्य कलाएं अपने पौराणिक एवं गौरवशाली अतीत को सहेजे हुए हैं। इस सुंदर प्रदेश के अधिकांश नागरिक अपनी लोक जीवन शैली और इसके अतीत पर गर्व करत हैं तथा किसी न किसी रूप में हर कोई इस विरासत को संभालकर आगे बढ़ रहा है, लेकिन युवा पीढ़ी के सामने रोजगार की भाषा जिस तरह करियर की गोद में नए संकल्प ले रही है, वहां सूचना प्रौद्योगिकी की तीव्रता में विश्व को मन में बसाया जा रहा है। लिहाजा सिमटती दुनिया ने भले ही उड़ान लंबी कर दी, लेकिन मानवीय व्यस्तताओं ने लोक साहित्य के घौंसले तोड़ने शुरू कर दिए हैं।


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