हिमाचल में कितना पास सूचना का अधिकार

By: सूत्रधार : शकील कुरैशी, जितेंद्र कंवर, नीलकांत भारद्वाज, दीपक शर्मा ,सूरत पुंडीर, अनिल पटियाल , शालिनी राय भारद्वाज, सुरेंद्र ममटा Oct 14th, 2020 7:06 am

‘सूचना का अधिकार‘ आम जनता के लिए सबसे अहम अधिनियम है।  कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह के संशय में हो, तो तुरंत आरटीआई से सूचना हासिल कर सकता है। इस हथियार का इस्तेमाल करने में हिमाचली काफी आगे हैं। भ्रष्टाचार रोकने में सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार सरकार को जगाने में भी खास भूमिका निभाता है। हिमाचल में आरटीआई के तहत सूचना लेने के प्रति कितने सजग हैं लोग, किस विभाग में रहती है सबसे ज्यादा भीड़…सभी सवालों के जवाब के साथ पेश है यह दखल…

नियम नहीं मानने पर दंड

आरटीआई की सूचना समय पर नहीं दिए जाने पर सूचना आयोग ने कड़ी कार्रवाई की है। यह भी आंकड़ों से साफ हो जाता है। इसमें दंडनात्मक कार्रवाई का पूरा प्रावधान है। इसके तहत वर्ष 2006-07 में चार ऐसे मामले आए, जिनमें दंड लगाया गया और दंड की राशि 3452 रुपए की थी। इसी तरह से 2007-08 में 20 मामलों में 22,800 रुपए की दंडनात्मक राशि वसूल की गई। 2008-09 में 19 मामलों में कार्रवाई हुई, जिसमें 27 हजार रुपए की राशि वसूल की, वहीं 2009-10 में 42 मामले ऐसे थे, जिनमें सूचना नहीं दी गई और 54500 रुपए का जुर्माना ठोंका गया है।

2010-11 में 33 मामले थे, जिनमें कार्रवाई नहीं की और 55,500 रुपए का दंड लगा, वहीं 2011-12 में 20 मामलों 50500 रुपए की राशि का दंड लगाया गया। 2012-13 में राज्य सूचना आयेग द्वारा 31 मामलों में 45250 रुपए की राशि का दंड लगाया, वहीं 2013-14 में 84 मामलों में एक लाख 85 हजार 240 रुपए की दंड राशि वसूल की गई है। इसके बाद दंड वसूली की राशि बढ़ती ही गई है। 2014-15 में 55 मामलों में शिकायत थी जिसमें 1,95,500 रुपए का दंड लगाया, वहीं 2015-16 में 82 मामलों में 1,99,000 रुपए की राशि का दंड दिया गया है।

2017-18 में 2 मामले थे, जिनमें दो हजार रुपए का जुर्माना लगा। वहीं, 2018-19 में 13 मामलों में 29 हजार तथा 2019-20 में चार मामलों में 8500 रुपए की राशि का दंड दिया गया है। अब सरकारी महकमों में अधिकारी व कर्मचारी आरटीआई के तहत आने वाले सूचनाओं को समय पर देने लगे हैं, जो आखिरी सालों के आंकड़ों से पता चलता है। क्योंकि विभागों व अफसरों पर यह दंड लगता है, इसलिए अब स्थिति में सुधार होना शुरू हो चुका है। ऐसी शिकायतें भी अब कम ही आने लगी हैं कि सूचना नहीं मिली।

ऐसा भी हुआ है

उच्च न्यायालय ने वेद प्रकाश बनाम राज्य सूचना आयोग व अन्य में कुछ अधिकारियों को सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 20 के तहत दंडनात्मक कार्रवाई की है। यह कार्रवाई सभी अफसरों व कर्मचारियों को संदेश है कि यदि समय पर सूचना नहीं दी जाती, तो क्या हो सकता है। सूचना का अधिकार कितना महत्त्वपूर्ण है, इस मामले पर हुए आदेशों से पता चल सकता है।

आरटीआई ने जनता को किया सर्वोपरि

भारतीय संसद द्वारा दिया गया सूचना का अधिकार अधिनियम आम जनता के हाथ एक बड़ा हथियार है। कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह के संशय में हो, तो तुरंत आरटीआई से सूचना हासिल कर सकता है। इस हथियार का इस्तेमाल करने में हिमाचली काफी आगे हैं। हिमाचल में सूचना के अधिकार अधिनियम को लागू करने के लिए राज्य सूचना आयोग का गठन किया गया है। पूरा कोर्ट यहां चलता है और जो विभाग नियमों की अनदेखी करते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है। एक बड़ा आंकड़ा हिमाचल में आरटीआई हासिल करने का है, वहीं नियमों को पूरा नहीं करने पर दंडनात्मक कार्रवाई का भी है। हालांकि कुछ लोग आरटीआई का गलत इस्तेमाल भी करते हैं। इसका सही इस्तेमाल किया जाए, तो इससे बड़ा और कोई हथियार नहीं है।

इस अधिनियम के तहत व्यक्ति को जानकारी लेने का पूरा अधिकार है और हिमाचल प्रदेश में नियमों की पालना भी सही तरह से की जा रही है। जो विभाग ऐसा नहीं करते, उनके खिलाफ कार्रवाई का पूरा प्रावधान रखा गया है। संसद द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005, 15 जून 2005 को अधिसूचित किया गया था। प्रदेश में राज्य सूचना आयोग का गठन चार फरवरी, 2006 को किया गया। केंद्रीय तथ राज्य सरकारों के समस्त सरकारी विभाग एवं गैर सरकारी संगठन इस अधिनियम के तहत आते हैं। सभी भारतीय नागरिक इस अधिनियम के तहत व्यापक तथा विस्तृत सूचना प्राप्त कर सकते हैं।

निशाने पर पांच विभाग

अधिनियम के दायरे में यूं तो सभी विभाग आते हैं, मगर हिमाचल प्रदेश में पांच ऐसे विभाग हैं, जो कि निशाने पर रहते हैं। यह आंकड़ा राज्य सूचना आयोग के पास है, जिसमें बताया गया है कि सरकार के पांच ऐसे प्रमुख विभाग हैं, जिनके पास सबसे अधिक आरटीआई आवेदन आते हैं। इन पांच विभागों में पंचायती राज व ग्रामीण विकास विभाग, राजस्व, शिक्षा, लोक निर्माण विभाग तथा आईपीएच जिसे अब जल शक्ति विभाग कहा जाता है, इनमें सबसे अधिक आरटीआई लगती है और इन पर खासा जुर्माना भी हो चुका है।

लंबी है सूचना लेने वालों की सूची

सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत ली गई जानकारियों की बात करें, तो एक बड़ा आंकड़ा सामने है। वर्ष 2006-07 में 2654 आवेदन आए, जिसमें से 119 को रद्द किया गया। अपीलीय प्राधिकारी के पास 127 आवेदन इस साल में आए और दो लाख 34 हजार 281 रुपए की राशि प्राप्त की गई। वर्ष 2007-08 में 10,105 आवेदन आए थे, जिसमें 283 आवेदन रद्द हुए। 267 अपील प्राधिकारी के पास आईं और छह लाख 495 रुपए की राशि प्राप्त की गई।

इसी प्रकार साल दर साल की बात करें, तो 2008-09 में आरटीआई सूचना की संख्या बढ़ गई। इस साल में 17,869 आवेदन आए थे, जिसमें 259 रद्द हुए और आठ लाख सात हजार 939 रुपए की राशि हासिल हुई। 2009-10 की बात करें, तो 43 हजार 835 आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिसमें से 442 को खारिज किया गया और 10,89,504 रुपए की राशि मिली। 2010-11 में 55,643 आरटीआई आवेदन दिए गए, जिसमें से 840 को रद्द किया गया, वहीं 14,32,417 रुपए की राशि मिली। 2011-12 की बात करें, तो इस साल 72, 191 आरटीआई लगी, जिसमें से 840 रद्द हुईं और 19,56,046 लाख रुपए हासिल हुए। 2012-13 में 61,202 आवेदन मिले थे, जिसमें से 1074 रद्द हुई  और 14,45,954 की राशि प्राप्त हुई। वर्ष 2013-14 में 63, 722 आवेदन आए, जिसमें से 1074 खारिज हो गए और 14,45,954 लाख रुपए की राशि प्राप्त हुई।

इसी तरह से 2014-15 में 50,675 आवेदन आरटीआई की सूचनाआें के किए गए, जिसमें से 2143 को खारिज किया गया। 11,14,962 लाख रुपए की राशि हासिल की गई। वर्ष 2015-16 में 46430 आवेदन हुए थे, जिसमें से 684 खारिज हो गए और 10,02,958 लाख रुपए की राशि मिली। वर्ष 2016-17 में 60,104 आवेदन हुए थे, जिसमें से 14,69,999 रुपए वर्ष 2017-18 में 59,529 आवेदनों में से 3737 खारिज हुए और 13,60,248 लाख रुपए की राशि हासिल हुई। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि विभिन्न सार्वजनिक प्राधिकरणों में पिछले 13 साल के दौरान कुल 2654 आवेदनों की अपेक्षा 59529 आवेदन प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार इन मामलों में 22 गुणा की बढ़ोतरी हुई। यह तथ्य दर्शाता है कि लोगों में वर्ष दर वर्ष आरटीआई के प्रति कितनी जागरूकता आई है। पहले साल में 2654 आवेदन थे और 2017-18 में इसकी संख्या  59529 तक पहुंच गई।

बड़े विभाग छिपाते हैं तथ्य

सरकार की सोच है कि लोगों को पुख्ता सूचना मिले। सूचना को छिपाया न जाए, लेकिन जानबूझ कर बड़े विभाग तथ्य छुपाने का प्रयास भी करते हैं। छोटे-मोटे विभाग आसानी से सही सूचना दे देते हैं, लेकिन जब बड़े विभागों से यह सूचना मांगी जाती है, तो कई बार तथ्य छिपाने का प्रयास भी किया जाता है। बड़े विभागों में कानूनी सलाहकार होने के चलते तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत भी किया जाता है, जिससे आवेदनकर्ता असमंजस में ही फंसा रहता है। सरकार ने जनता की सुविधा के लिए आरटीआई अधिनियम बनाया है। सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के उद्यान विभाग बिलासपुर में गत वर्ष 2020-2021 में मात्र 11 सूचना दी गई। वहीं, कृषि विभाग बिलासपुर में 2020 में मात्र 20 लोगों ने सूचना प्राप्त की।

इसके अलावा सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग बिलासपुर में 21, लोक निर्माण विभाग में 201, विद्युत बोर्ड बिलासपुर में 169, स्वास्थ्य विभाग बिलासपुर में 71 सूचनाएं प्राप्त की गई हैं। ज्यादातर लोग बड़े विभागों में ही सूचना मांगते हैं। शेष अन्य विभाग न के बराबर हैं। वहीं, जिला भर साल भर में आरटीआई के तहत सूचना मांगी गई है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुछेक विभागों के अलावा नाममात्र लोग ही आरटीआई के माध्यम से सूचना लेते हैं। पुलिस प्रशासन की मानें, तो यहां भी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना लेने वाले लोगों की काफी संख्या रहती है, लेकिन कोरोना के चलते अभी कम ही लोग सूचना लेने पहुंच रहे हैं।

पुलिस महकमे में आते हैं आवेदन पर आवेदन

जिला हमीरपुर में लगभग हर विभाग से आरटीआई के माध्यम से सूचनाएं मांगी जाती हैं। हालांकि पिछले छह माह से कोरोना के चलते आरटीआई के माध्यम से सूचनाएं लेने वालों में थोड़ी कमी जरूर आई है, लेकिन वैसे रूटीन की बात करें, तो हर विभाग से सूचनाएं समय-समय पर ली जाती हैं। सबसे अधिक सूचनाएं हमीरपुर जिला में पुलिस महकमे से मांगी जाती हैं। प्रतिमाह इनकी औसतन की बात करें, तो यह 50 से 55 के बीच होती हैं। वहीं, फूड एंड सप्लाई डिपार्टमेंट ऐसा है, जहां से सबसे कम सूचनाएं मांगी जाती हैं। यहां से प्रतिमाह दो से तीन आरटीआई ली जाती हैं। इसी तरह पीडब्ल्यूडी से छह से सात, फोरेस्ट डिपार्टमेंट से पांच से छह, बिजली बोर्ड से तीन से चार, पूर्व सैनिक निगम में चार से पांच, नगर परिषद में 12 से 15 आईपीएच में आठ से नौ और रेवेन्यू डिपार्टमेंट में 15 से 20 औसतन हर माह लगाई जाती हैं।

चंबा में हर साल मांगी जाती हैं पांच-छह हजार सूचनाएं

चंबा में हर वर्ष आरटीआई के माध्यम से विभिन्न सरकारी विभागों से औसतन पांच से छह हजार सूचनाएं हासिल की जाती हैं। जिला में आरटीआई के जरिए अधिकतर सूचनाएं वन, पंचायत व शिक्षा विभा से ली जाती हैं। इनमें पंचायत से जुड़ी आरटीआई की सूचनाएं प्रतिनिधियों द्वारा विभिन्न विकास योजनाओं के तहत करवाए गए कार्यों की ली जाती हैं। जिला के चुराह व चंबा में आरटीआई के जरिए सूचनाएं हासिल करने का आंकड़ा सबसे अधिक है। आरटीआई एक्टिविस्ट भुवनेश्वर शर्मा का कहना है कि वर्ष में करीब दो सौ सूचनाएं आरटीआई के माध्यम से हासिल की जा रही हैं। इनमें अधिकतर सूचनाएं जनहित से जुड़ी हुई हैं। आरटीआई के माध्यम से सूचनाएं लेकर जनहित की कई मांगें पूरी भी करवाई गई हैं। जिला में संचालित निजी प्रोजेक्ट में आरटीआई के जरिए सूचनाएं लेने में दिक्कत पेश आती है। इसके अलावा कई सरकारी विभाग भी आरटीआई कानून के महत्त्व को नजरअंदाज कर आधी-अधूरी सूचनाएं देते हैं। कई बार सूचना आयुक्त के पास समय पर सूचना न मिलने पर अपील करने की नौबत भी आई है।

भ्रष्टाचार रोकने के लिए सबसे अहम

सोलन में आरटीआई गतिविधियां चल रही हैं और इसे सरकार द्वारा चलाए रखने से आम लोगों को जनहित में मुद्दे उठाने में सहायता मिलती है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक सबसे बड़ा हथियार है। राजस्व एवं पंचायतीराज विभाग हिमाचल प्रदेश से सबसे ज्यादा आरटीआई मांगी गई है। इसका कारण यह भी समझा जा रहा है कि सोलन जिला पर्यटन की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण जिला है। यहां कसौली एवं चायल दो विश्वविख्यात पर्यटन स्थल हैं। होटल व्यवसाय एवं अपार्टमेंट्स की बात करें, तो नामी-गिरामी बिल्डर्स सोलन जिला की इन पहाडि़यों पर अपने लैटर्स बनाने का कार्य कर रहे हैं। यही नहीं, यहां की जमीन को लीज पर लेने के बाद कोई न कोई व्यवसाय शुरू किया जाता है। माना यह भी जा रहा है कि जमीनी संबंधी विवाद जानने के लिए लोगों द्वारा राजस्व एवं पंचायती राज विभाग से आरटीआई के माध्यम से सूचनाएं मांगी जाती रही हैं।

क्या कहते हैं आरटीआई एक्टिविस्ट

भोरंज के जाहू से आटीआई एक्टिविस्ट देव आशीष भट्टाचार्य की मानें तो उन्होंने व्यक्तिगत कार्यों के लिए कभी आरटीआई का प्रयोग नहीं किया। हां उन्होंने वे आरटीआई जरूर लगाई हैं, जिसमें पूरे प्रदेश का हित छिपा होता है। उदाहरण स्वरूप वह बताते हैं कि उन्होंने कुछ साल पहले बीपीएल की श्रेणी अवैध रूप से नाम दर्ज करवाने वालों को लेकर आरटीआई ली थी, जिसके बाद 25 हजार ऐसे इलिजिबल परिवारों को बीपीएल की लिस्ट से बाहर किया गया था। अभी उन्होंने केंद्र से कोविड-19 के लिए आए फंड और उसके यूज़ को लेकर आरटीआई मांगी है।

आरटीआई एक्टिविस्ट और राजस्व विभाग से अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त बीएल गाजटा का कहना है कि वह भी विभागों से अधिकतर सूचनाएं आरटीआई के माध्यम से ही ग्रहण करते हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसी वर्ष अब तक वह सोलन तथा हिमाचल के अन्य जिलों में विभिन्न विभागों से वर्ष 2020 में लगभग 40 आरटीआई द्वारा सूचना प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने गत वर्ष एक सूचना नगर परिषद सोलन से प्राप्त की, जिसमें पूछा था कि नगर परिषद ने आजतक कुल कितनी दुकानें/स्टाल किन-किन लोगों को किराए पर दी हैं और कुल कितनी दुकानें हैं। कभी भी निजी हित के लिए अधिनियम का इस्तेमाल नहीं किया।

आरटीआई एक्टिविस्ट सुधीर रमौल का कहना है कि सूचना का अधिकार केवल अब आवेदन तक सिमट कर रह गया है। विभागों द्वारा आरटीआई के तहत जो जानकारी दी जाती है उसमें वास्तविकता को छुपाया जाता है। उन्होंने नगर परिषद नाहन, राजस्व विभाग, विद्युत बोर्ड व जल शक्ति विभाग में जो आरटीआई के तहत सूचनाएं मांगी थी उसमें सच्चाई को छुपाया गया। अपील में यह भी साबित हुआ कि उन्हें झूठी जानकारी दी गई है। इसके उनके पास प्रमाण भी हैं।

डीडीपी वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष मनोज पटेट का कहना है कि सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारियां मांगी जाती हैं, उसमें पहले तो निर्धारित समय पर जानकारी नहीं दी जाती। आरटीआई के तहत जो सूचनाएं दी जाती हैं, उसमें सच्चाई छिपाई जाती हैं। यही कारण है कि अब लोगों का आरटीआई के तहत जानकारी मांगने से विश्वास उठ गया है तथा आरटीआई के आवेदनों में कमी आई है। उन्होंने विद्युत बोर्ड के अलावा स्वास्थ्य विभाग से मेडिकल कालेज नाहन की कुछ जानकारियां मांगी थी, तो पहले तो उन्हें सोसायटी के नाम पर जानकारी देने से स्पष्ट तौर पर मना कर दिया, उसके बाद तथ्य छुपाए गए।

विभागों को चाहिए कि तथ्यों के साथ सूचना दें पर ऐसा होता नहीं

बिलासपुर के आरटीआई एक्टिविस्ट एवं अधिवक्ता रजनीश शर्मा अब तक करीब एक दर्जन से अधिक विभागों में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त कर चुके हैं, जिनमें मुख्यतः पावरग्रिड ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय राजमार्ग प्रधिकरण शामिल हैं। वहीं, उपायुक्त कार्यालय, पंचायती राज विभाग, शिमला सचिवालय, विद्युत बोर्ड, लोक निर्माण विभाग, आईपीएच विभाग भी हैं। पावरग्रिड ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय राजमार्ग प्रधिकरण बड़े विभाग हैं और आम जनता से जुड़े हुए हैं। पावरग्रिड ऑफ इंडिया में बिजली से संबधित सूचनाएं मांगी जाती हैं, लेकिन ये कई सूचनाएं छिपाते हैं।

मोहन दत्त शर्मा

सचिव, सूचना आयोग

दिव्य हिमाचलः आरटीआई में आम आदमी के अधिकार क्या-क्या हैं मोहन दत्त शर्माः कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से बिना कोई कारण बताए तथा बिना किसी अन्य व्यक्तिगत ब्यौरे के आवश्यक सूचना मांग सकता है। नागरिकों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(अ) के तहत मौलिक अधिकार में आता है।

दिहिः इस अधिकार के बाद नागरिक कितनी निडरता व स्वतंत्रता से सूचना मांग सकता है

शर्माः इसमें पूरे अधिकार दिए गए हैं, जिसका प्रयोग लोग कर रहे हैं। अब पूरी स्वतंत्रता है कि सरकारी कामकाज के बारे में आप जान सकते हैं। अपने कार्यों को लेकर सूचना मांग सकते हैं, क्योंकि अधिकांश सेवाएं सरकार ने इसके दायरे में लाई हैं, जिन्हें समय पर पूरा करना होता है।

अब तक मांगी गई सूचनाओं के मुख्य विषय क्या हैं

शर्माः सरकारी अदारे से जुड़ी सभी तरह की सूचनाएं मांगी जाती हैं, किसी विशेष विषय पर कहना मुश्किल है

दिहिः हिमाचल के लोगों का एक्ट पर रूझान क्या है

शर्माः जब एक्ट लागू हुआ, तो पहले साल में 2654 आवेदन थे और 2017-18 में इसकी संख्या 59529 तक पहुंच गई। इससे साफ है कि लोगों में कितना ज्यादा रूझान है।

…और यहां कम होती गई संख्या

जिला सिरमौर में भी सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जो सूचनाएं ली जाती थीं, उनमें लगातार कमी आई है। करीब एक साल में तो सिरमौर में आरटीआई के तहत सूचनाएं एकत्रित करने को लेकर आंकड़ा दर्जनों में सिमट गया है। जिला में आरटीआई के तहत विभिन्न विभागों से औसतन 200 से 250 आरटीआई पिछले एक वर्ष में ली गई हैं। इसमें सर्वाधिक आरटीआई पंचायती राज संस्थाओं में करीब पांच दर्जन विभिन्न विकास खंडों के तहत ली गई हैं, जिसमें पंचायतों के विकास कार्यों व मनरेगा में हाजरियों को लेकर रही हैं। पंचायती राज संस्थाओं में सरकारी कार्यों में धन के दुरुपयोग को लेकर सर्वाधिक आरटीआई खंड स्तर पर संबंधित बीडीओ को आवेदन की गई हैं। स्वास्थ्य विभाग में भी इस वर्ष करीब 30 आरटीआई ली गई हैं। आईपीएच व पीडब्ल्यूडी में करीब तीन दर्जन सूचनाएं सूचना के अधिकार के तहत ली गई हैं।

जिला सिरमौर के तीन स्थानीय निकाय, जिसमें नगर परिषद नाहन, नगर परिषद पांवटा साहिब व नगर पंचायत राजगढ़ शामिल है, के अंतर्गत भी करीब 20 से 22 सूचनाएं आरटीआई के तहत मांगी गई हैं। जिला सिरमौर के शिक्षा विभाग में भी सूचना के अधिकार के तहत एलिमेंटरी व उच्च शिक्षा विभाग में साल भर में करीब 32 आवेदन सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त हुए हैं। यही नहीं, बागबानी व कृषि विभाग भी सूचना के अधिकार से अछूता नहीं है और डेढ़ दर्जन लोगों ने बागबानी व कृषि विभाग में सूचना के अधिकार के तहत इस वर्ष आवेदन किया है। राजस्व विभाग में भी आरटीआई के तहत सूचनाओं का अंबार रहता है, क्योंकि जिला सिरमौर में औद्योगिक क्षेत्र कालाअंब व पांवटा साहिब शामिल है। ऐसे में इन क्षेत्रों में उद्योग विभाग व राजस्व विभाग के पास करीब 50 से 60 आवेदन सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त हुए हैं। कुछ अन्य विभागों में भी आरटीआई के तहत सूचनाओं को लेकर तीन से चार दर्जन आवेदन आए हैं।

राजस्व में रहती है सबसे ज्यादा भीड़

कुल्लू में सबसे अधिक राजस्व विभाग का रिकॉर्ड खंगाला गया है। आरटीआई लेने वाले अधिकतर लोगों ने राजस्व विभाग की जानकारी ली है। फिर चाहे वे किसी जमीन से संबधित हों या फिर पटवारी या कानूनगो के भी रिकॉर्ड खंगाले हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार भी किया हो। हालांकि आरटीआई में व्यक्ति किसी की जानकारी नहीं ले सकता, लेकिन विभाग से संबंधित जानकारी हासिल की जा रही है। यहां पीआईओ विभाग अधिकारी से ली जानकारी के मुताबिक कुछ लोग जो आरटीआई लगाते हैं। उसमें कई बार काफी सवाल होते हैं, जिसके जवाब मांगे जाते है। जिस कारण कई आरटीआई रद्द हो जाती हैं। अभिषेक राय की मानें, तो अब तक वह दो सौ से अधिक आरटीआई ले चुके हैं। उन्होंने कभी व्यक्तिगत जानकारी नहीं ली।

वक्त पर देते हैं हर सूचना

पब्लिक इनफॉर्मेशन ऑफिसर मनोज कुमार का कहना है कि जो भी सूचना का अधिकार के तहत जानकारी लोग लेते हैं, उन्हें समय पर दी जाती है। विभागीय जानकारी लेने पर व्यक्ति जो जानकारी चाहता है, वह 28 दिन के भीतर उसे दे दी जाती है। वहीं, कई बार कुछ लोग कई तरह के सवाल पूछते हैं, जिनकी जानकारी नहीं जाती।


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