कांगड़ा किला

By: - मनवीर चंद कटोच, पालमपुर Oct 3rd, 2020 12:27 am

गतांक से आगे…

उसने किले के प्रवेश द्वार के दोनों ओर गंगा और यमुना की खूबसूरत प्रतीकात्मक मूर्तियों को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त करवा दिया था। जहांगीर ने हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तुड़वा कर अपने नाम से ‘जहांगीरी दरवाजे’ का निर्माण करवा दिया उसके बाद उसी जहांगीरी दरवाजे को पाकिस्तान में भेज दिया गया था, जो आज पाकिस्तान के लाहौर म्यूजियम में रखा गया है। जहांगीर ने कांगड़ा किले की जीत में एक बहुत बड़े जश्न का आयोजन किया था उस समय उसने बैल, गाय का वध भी करवाया था और उसके साथ किले में एक मस्जिद निर्माण करने का आदेश भी दिया, जो आज भी वहां पर बनी हुई है। मुगलों के हिंदुओं पर लगातार बढ़ते हुए अत्याचार और हिंदू विरोधी नीतियों को रोकने के लिए उस समय महाराजा हरी चंद कटोच ने संदेश भेजा था। औरंगजेब ने नाराज होकर उनको किले में बुलाया और धोखे से बंदी बना लिया था और अपनी मुगल सेना को उनकी चमड़ी निकालने का आदेश दिया और उन्हें बहुत ही अमानवीय यातनाएं देकर मार डाला था, जो महाराजा की अन्याय और धर्म एवं अत्याचार और दमन के खिलाफ  एक अभूतपूर्व बलिदान और ऐतिहासिक घटना थी।

 जहांगीर की कू्ररता और हिंदू मंदिरों को गिराने के औरंगजेब के फरमान का चंबा के राजा चतर सिंह जी ने खुलेआम उल्लंघन भी किया था। उन्होंने अपने इलाके में प्रत्येक मंदिरों पर सोने से बनी हुई बुर्जी बनाने का हुक्म दिया था। कांगड़ा किले की विजय को जहांगीर ने अपनी आत्मकथा में गर्व व्यक्त किया है और लिखते हैं जब वे गद्दी पर बैठे थे, तब से ही उसने दुर्ग को जीतने का निश्चय किया था। जहांगीर को उनके इतिहासकारों ने उच्च कोटि का न्याय प्रिय शासक बताया है और जो हम आज भी मानते हैं लेकिन असल में देखा जाए तो जहांगीर असल में उच्च कोटि का  विलासी, महाव्यसनी अत्याचारी राजा था। उसने नशे में अपनी हिंदू पत्नी मानवाई को पीट-पीटकर मार डाला था क्योंकि उसने उसके माता-पिता और धर्म की लगातार होने वाली बातों की निंदा कर विरोध प्रकट किया था। उसने अजमेर में पुष्कर के हिंदू मंदिर और अन्य अनेक  मंदिरों को भी नष्ट किया था। अहमदाबाद में जेन धर्म के लोगों को मुगल सल्तनत से बाहर जाने को मजबूर किया था और उनके मंदिरों को तोड़कर वहां पर मस्जिदे बनवाई थी।

 जहांगीर ने मानवता के सच्चे सेवक और धर्म रक्षक सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव की हत्या का आदेश दिया था और अमानवीय यातनाएं देकर उनकी हत्या करवा दी थी। इतिहास के हिसाब से इतिहास के कागजों में जहांगीर का नाम राजा लिखा जाना तो सही है, लेकिन जिसने हमारे देवी-देवताओं मंदिरों और मूल्यवान मूर्तियों को तुड़वा कर अपने नाम का दरवाजा बनवाया था और वही दरवाजा लाहौर म्यूजिम में भेज दिया गया था, उसके बावजूद भी उसके दरवाजे का नाम एक पत्थर पर लिख कर रखना कहां तक सही है। प्राचीन काल से देखा जाए किसी भी हिंदू राजा ने अपने नाम से कोई दरवाजा नहीं बनवाया था। उन्होंने सिर्फ  अपने देवी-देवताओं के नाम से ही दरवाजे बनवाए थे, तो वहां आज एक अत्याचारी के नाम से दरवाजा का नाम होना कहां तक सही है। क्योंकि इसने कुछ नया नहीं बनवाया है सिर्फ  बनवाए गए को तोड़कर यह दरवाजा बनवाया है। जब हम गुलाम थे तब अन्याय के खिलाफ  तो कुछ नहीं बोल पाए, लेकिन आज आजाद होने के बाद भी हमें असलियत सामने लाकर के सही कदम उठाने की जरूरत है।


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