बात पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की: डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसिपल

By: डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसिपल Oct 14th, 2020 12:08 am

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसिपल

वैसे तो यह आयोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले के छह साल बाद स्थापित हुआ, लेकिन शुरू से ही ऐसी आवाजें उठने लगीं कि वर्तमान स्थिति में यह धार्मिक अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने में काफी नहीं है। पकिस्तान में अल्पसंख्यक आयोग बनाने का मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यकों को धार्मिक आजादी उपलब्ध कराना और ऐसे कदम उठाना था जिससे वे मुख्यधारा का पूरी तरह से हिस्सा बन सकें और मुख्यधारा में उनकी पूरी तरह से भागीदारी हो। लेकिन हाल ही में घटी अल्पसंख्यक विरोधी कुछ घटनाओं को देखकर लगता है कि इस बारे में लोगों की चिंताएं गलत नहीं थीं। पाक के सिंध प्रांत में हिंदू, पंजाब में ईसाई और खैबर पख्तूनख्वाह का कैलाश समुदाय जबरन धर्म परिवर्तन की शिकायत पिछले कई सालों से करते आ रहे हैं। ह्यूमन राइट्स कमीशन समेत मानवाधिकार के दूसरे संगठन भी इनकी पुष्टि करते हैं…

हाल ही में पाकिस्तान के दक्षिण-पूर्वी सिंध प्रांत में एक मंदिर में तोड़फोड़ की खबर बताती है कि पकिस्तान में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं। समाचारों के अनुसार पाकिस्तान के बादिन जिले में मंदिर में रखी मूर्तियों को एक संदिग्ध ने तोड़ दिया और भाग गया। बादिन पुलिस के एक प्रवक्ता ने कहा कि संदिग्ध को शिकायत मिलने के कुछ घंटे के अंदर ही गिरफ्तार कर लिया गया। पाकिस्तान में हिंदू सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। कुछ समय पहले ही पाकिस्तान में एक नाबालिग हिंदू लड़की का अपहरण करके जबरदस्ती शादी कराने का मामला सामने आया था। सिंध प्रांत  के खैरपुर जिले से कुछ दिनों पहले 14 साल की परशा कुमारी का अपहरण कर लिया गया था। इसके तुरंत बाद ही उनके पेरेंट्स ने स्थानीय पुलिस स्टेशन में लापता शख्स की शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि इस शिकायत पर पुलिस की ओर से कोई एक्शन नहीं लिया गया। बाद में यह खुलासा हुआ कि नाबालिग लड़की से जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया गया। साथ ही कुमारी की मर्जी के बिना ही शादी करा दी गई। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के चलते पाकिस्तान की केंद्रीय कैबिनेट में 5 मई 2020 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई थी। इस तरह के विभाग को स्थापित करने का आदेश 2014 में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में दिया था।

वैसे तो यह आयोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले के छह साल बाद स्थापित हुआ, लेकिन शुरू से ही ऐसी आवाजें उठने लगीं कि वर्तमान स्थिति में यह धार्मिक अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाने में काफी नहीं है। पकिस्तान में अल्पसंख्यक आयोग बनाने का मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यकों को धार्मिक आजादी उपलब्ध कराना और ऐसे कदम उठाना था जिससे वे मुख्यधारा का पूरी तरह से हिस्सा बन सकें और मुख्यधारा में उनकी पूरी तरह से भागीदारी हो। लेकिन हाल ही में घटी अल्पसंख्यक विरोधी कुछ घटनाओं को देखकर लगता है कि इस बारे में लोगों की चिंताएं गलत नहीं थीं। पाक के सिंध प्रांत में हिंदू, पंजाब में ईसाई और खैबर पख्तूनख्वाह का कैलाश समुदाय जबरन धर्म परिवर्तन की शिकायत पिछले कई सालों से करते आ रहे हैं। ह्यूमन राइट्स कमीशन समेत मानवाधिकार के दूसरे संगठन भी इन शिकायतों की पुष्टि करते हैं। ह्यूमन राइट्स कमीशन की धर्म या मान्यताओं की आजादी के बारे में 2018 की एक समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार हर साल अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखने वाली लगभग एक हजार लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें अधिकतर लड़कियों की उम्र 18 साल से कम होती है। लंदन में रह रहीं पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता और देश में अल्पसंख्यकों को न्याय के लिए हमेशा आगे रहने वाली महिला प्रवक्ता अनिला गुलजार ने मीडिया को बताया है कि कुछ समय पहले सिंध में करीब 428 मंदिर हुआ करते थे, लेकिन अब केवल 20 मंदिर ही बचे हैं।

यह मामला पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की विकट परिस्थितियों का एक और उदाहरण है। याद रहे कि यह पहली घटना नहीं है जहां हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ और मूर्तियों को खंडित किया गया है। इससे पूर्व भी ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इस साल ही 26 जनवरी 2020 को सिंध प्रांत के चाचरों में माता रानी भातियानी मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी। इसी महीने पवित्र धर्मस्थल ननकाना साहिब पर पत्थरबाजी का मामला भी चर्चा में था। जुलाई 2020 में राजधानी इस्लामाबाद में बनाए जाने वाले कृष्ण मंदिर की नींव को ही तोड़ दिया गया था। इससे पहले सितंबर 2019 में सिंध प्रांत के घोटकी में हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी। गौरतलब है कि पाकिस्तान में हिंदू सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में 75 लाख हिंदू रहते हैं जिनमें से अधिकतर सिंध प्रांत में हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार हिंदू वोटरों की संख्या 17 लाख से अधिक है जिनमें अधिकतर सिंध प्रांत में रहते हैं और उनमें थार और अमरकोट जिले की चालीस-चालीस प्रतिशत आबादी हिंदू है। इसके अलावा भी वहां अन्य अल्पसंख्यक काफी संख्या में हैं जिनमें सिख, ईसाई इत्यादि शामिल हैं। मशहूर पाकिस्तानी अखबार डॉन के अनुसार पाकिस्तान से तकरीबन 5000 हिंदू परिवार भागकर भारत आते हैं। हालांकि यह संख्या पिछले कुछ बरसों में काफी बढ़ गई है। आमतौर पर ये शरणार्थी राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश में शरण लेते हैं। वर्ष 2018 में भारत सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान से आए 12732 मुसलमानों और सिखों को नागरिकता दी। इससे पहले 2017 में 4712 को शरण दी गई। 2016 में 2298 हिंदू और सिख शरणार्थियों को शरण मिली। पाक समेत पड़ोसी देशों में हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार और फिर उनके भारत पलायन करने की दृष्टि से देश में नागरिकता संशोधन कानून के बारे में सोचा गया था ताकि शोषण का शिकार अल्पसंख्यकों को भारत में शरण लेने पर उन्हें राहत मिल सके। पाकिस्तान में भारतीय मूल के अल्पसंख्यक लगातार कम होते जा रहे हैं।

इसकी सबसे बड़ी वजह धार्मिक आधार पर उनके साथ वहां होने वाले अत्याचार हैं जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर वे हर साल वहां से भागकर भारत आ रहे हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आवाज किस तरह दबाई जाती है, इसे लेकर कई रिपोर्ट्स सामने आ चुकी हैं। धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ पाकिस्तान में सिंध और बलूच समुदाय के लोगों ने भी पाकिस्तान की सरकार और सेना पर उनके दमन का आरोप लगाया है। सिंधी व बलूच समुदाय के लोग इसे लेकर आए दिन प्रदर्शन करते रहे हैं। हमें पाक के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर तुरंत जरूरी कदम उठाने चाहिए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाक की दुरंगी असलियत रखनी होगी। पाक में अल्पसंख्यकों के धार्मिक और अन्य प्रकार के शोषण का मूल कारण उनका भारतीय जड़ और भारतीय मूल से अटूट जुड़ाव है। भारत को पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए कि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को जरूरी कदम जल्द उठाए। इसके अलावा भारत में पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों को शरण देना भी न्यायोचित है।

ईमेल ः hellobhatiaji@gmail.com


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