ऊना में न मक्की बिकी, न धान

By: स्टाफ रिपोर्टर। गगरेट Oct 30th, 2020 12:20 am

किसान की दशा सुधारने के लिए नए कृषि विधेयक भी अस्तित्व में आ चुके हैं, लेकिन शायद सरकार नए कृषि विधेयक लाने के साथ ही किसान की सुध लेना भूल गई है। प्रदेश सरकार तो पहले ही सिर्फ गेहूं की फसल को ही प्रदेश की प्रमुख फसल मानती थी, यही वजह है कि इस सीजन न तो सरकारी स्तर पर मक्की की खरीद हुई और न ही अब धान की खरीद हो पा रही है। बेशक केंद्र सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 1868 रुपए प्रति क्विंटल तय कर रखा है और दावा यह भी किया जा रहा है कि किसान कहीं भी अपनी फसल ले जाकर बेच सकता है, लेकिन पंजाब सरकार के बाहरी राज्यों के धान की फसल की खरीद से इंकार करने के बाद किसानों के लिए धान की पैदावार गले की फांस बनकर रह गई है।

जिला ऊना के उपमंडल अंब व गगरेट में धान की खासी पैदावार की जाती है, लेकिन इसे बेचे कहां यह किसान को कोई बताने को तैयार नहीं है। नए कृषि विधेयक अस्तित्व में आने से पहले भी प्रदेश में हाल यह था कि सरकारी स्तर पर सिर्फ और सिर्फ गेहूं की ही खरीद की जाती थी जबकि अन्य फसलों को शायद प्रदेश सरकार फसल ही नहीं मानती। यही वजह होगी कि किसान के लिए वरदान सिद्ध होने वाले नए कृषि विधेयक आने के बाद भी किसान को अपनी मक्की की फसल औने-पौने दाम में बेचने को विवश होना पड़ा तो अब रही सही कसर धान की फसल ने निकाल कर रख दी है। जिले में अमूमन किसान बासमती की पैदावार करते हैं हालांकि कई किसान ऐसे भी हैं जो परमल वैरायटी के धान के फसल की पैदावार करते हैं। हालांकि कृषि विभाग के अधिकारियों की मानें तो जिले में गेहूं व मक्की की फसल की प्रमुख तौर पर उगाई जाती है और उन्हें उंगलियों पर यह तक आंकड़े याद नहीं कि कितनी हेक्टेयर भूमि पर धान की फसल होती है।

इस बार पहले तो धान उत्पादक किसानों को मौसम की बेरुखी से दो-चार होना पड़ा। इस बार बारिश कम होने के चलते धान उत्पादक किसान पहले जितनी पैदावार भी नहीं ले पाए और जिन किसानों ने धान की खेती की थी उनके आगे अब बड़ी चुनौती इसे बेचने को लेकर खड़ी हो गई है। इससे पहले जिले के किसान अपनी जरूरत के उपरांत बचने वाली धान की फसल को पड़ोसी राज्य पंजाब की अनाज मंडियों में ले जाकर बेचते थे, लेकिन पंजाब में चले किसान आंदोलन के बाद अब पड़ोसी राज्य की अनाज मंडियां भी दूसरे राज्यों के किसानों की धान की फसल नहीं उठा रही हैं। ऐसे में किसान को एमएसपी के मुताबिक धान के दाम मिलने तो दूर की बात बल्कि उन्हें अपनी पैदावार सुरक्षित रखना भी मुसीबत का सबब बनकर रह गया है। राष्ट्रीय स्वतंत्र किसान मोर्चा के अध्यक्ष सीता राम ठाकुर का कहना है कि हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश में सरकारी एजेंसियां ही अगर फसलों की खरीद करें तो ही किसान सुरक्षित रह सकता है। क्योंकि जहां छोटे किसान हैं जो खुले बाजार में जाकर प्रतियोगिता करने में सक्षम नहीं हैं। उधर, कृषि विभाग के उपनिदेशक डा. अतुल डोगरा का कहना है कि धान की सरकारी खरीद नहीं की जाती। उन्होंने कहा कि वैसे भी जिला ऊना की प्रमुख फसल गेहूं व मक्की है और मक्की की सरकारी खरीद करने के बारे में मामला सरकार के विचाराधीन है। धान की फसल को लेकर ऐसा कोई निर्णय नहीं है।


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