वृद्ध कल्याण को योजनाओं का औचित्य: बंडारू दत्तात्रेय, राज्यपाल, हि. प्र.

By: बंडारू दत्तात्रेय, राज्यपाल, हि. प्र. Oct 1st, 2020 7:00 am

बंडारू दत्तात्रेय

राज्यपाल, हि. प्र.

इस प्रकार की योजनाएं और कार्यक्रम सराहनीय हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं। इसके अलावा हमें समस्या के आधारभूत कारण को समझना चाहिए। ऐसा क्यों है कि ज्यादातर वृद्धजन अकेला और अलग-थलग महसूस करते हैं। वे अपने ही घरों में फंसे हुए महसूस करते हैं और उनमें से अधिकतर को लगता है कि कोई उनकी परवाह नहीं करता है। वे अपने जीवन को अपने बच्चों के कैरियर और जीवन निर्माण करने में व्यतीत कर देते हैं, लेकिन जरूरत के समय बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल करना बंद कर देते हैं। बच्चे अक्सर नौकरी के कारण अपने माता-पिता के साथ रहने या उनकी देखभाल करने में असमर्थता का कारण बताते हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है…

हिमाचल प्रदेश के दूरवर्ती गांवों में रहने वाले 83 वर्ष की विधवा दुर्गू देवी और 90 वर्षीय झुडू राम, दोनों कोरोना महामारी के दौरान तीन महीने तक 4500 रुपए की वृद्धावस्था पेंशन की अग्रिम राशि प्राप्त करके खुश हैं। पेंशन की अग्रिम किस्त प्राप्त करने वाले वे अकेले नहीं हैं। राज्य सरकार संकट के इस समय में अग्रिम पेंशन देकर उनके जैसे लाखों पेंशन धारकों को लाभ पहुंचा रही है। प्रथम अक्तूबर को संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हमें दुर्गु देवी और झुडू राम जैसे लाखों लोगों की स्थिति को समझने की जरूरत है। उन्हें मिलने वाली पेंशन से उन्हें काफी सहायता मिलती है, लेकिन हमें स्वयं से पूछने की जरूरत है कि क्या यह पर्याप्त है? हिमाचल प्रदेश में वृद्धजनों की आबादी 713172 है जो राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत भाग है। प्रदेश में 3.1 प्रतिशत वार्षिक विकास दर के साथ बुजुर्गों की आबादी वर्ष 2026 तक लगभग 10.10 लाख या कुल आबादी के लगभग 15 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। हिमाचल प्रदेश में 80 वर्ष से ऊपर के आयु वर्ग में 48465 पुरुष और 58272 महिलाएं हैं। शहरी क्षेत्रों की तुलना में राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक बुजुर्ग व्यक्ति रहते हैं। यह इसलिए है क्योंकि हमारी कुल जनसंख्या का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रदेश में निराश्रित, वृद्ध, परित्यक्त, विकलांग और गरीब लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सराहनीय कदम उठाए हैं। राज्य सरकार की अच्छी पहलों में से एक वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना है। इस योजना के तहत मौजूदा राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा स्मार्ट कार्ड धारकों के लिए दिए जाने वाले 30000 रुपए मूल कवरेज के अलावा प्रति वरिष्ठ नागरिक 30000 रुपए का टॉप-अप कवरेज प्रदान किया जा रहा है। यह योजनाएं राज्य की अधिकांश संवेदनशील जनसंख्या को कवर करती हैं।

राज्य सरकार द्वारा हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम भी लागू की जा रही है जो हिमाचल प्रदेश के सभी नागरिकों के लिए है। एक परिवार के अधिकतम 5 सदस्यों को बिना किसी आय मापदंड के एक कार्ड के तहत नामांकित किया जा सकता है। इस योजना के अंतर्गत प्रति परिवार 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में वृद्धजनों के लिए छह सरकारी सहायता प्राप्त आश्रय स्थल हैं और उनके कल्याण के लिए कई योजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। वर्तमान राज्य सरकार ने न केवल पेंशन राशि में वृद्धि की है, बल्कि वृद्धावस्था पेंशन की पात्र न्यूनतम आयु को भी 80 से घटाकर 70 वर्ष कर दिया है। वर्तमान में प्रदेश में कुल 569248 सामाजिक सुरक्षा पेंशन लाभार्थियों में से 385039 वृद्धावस्था पेंशनधारक हैं। कोविड-19 के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लाभार्थियों को छह महीने की पेंशन और गैर-आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लाभार्थियों को तीन महीने की अग्रिम पेंशन देने का फैसला किया। इस योजना पर अब तक 424.58 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों ने वृद्धजनों के के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। उदाहरण के तौर पर वृद्धजन जब अस्पताल जाते हैं तो इलाज के लिए उन्हें प्राथमिकता दी जाती है और प्रत्येक मंगलवार को विशेष चिकित्सा ओपीडी आयोजित की जाती है। राज्य परिवहन निगम वरिष्ठ नागरिकों को स्मार्ट कार्ड जारी करता है जो बस किराए में 20 प्रतिशत की छूट के अतिरिक्त सीट संख्या 25 और 26 में आरक्षण की सुविधा प्रदान करता है। शिमला शहर में एक विशेष टैक्सी सेवा वृद्धजनों के लिए चलाई जा रही है। इसी प्रकार अन्य विभागीय योजनाओं में भी वृद्धजनों के लिए अलग छूट का प्रावधान है।

इस प्रकार की योजनाएं और कार्यक्रम सराहनीय हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं। इसके अलावा हमें समस्या के आधारभूत कारण को समझना चाहिए। ऐसा क्यों है कि ज्यादातर वृद्धजन अकेला और अलग-थलग महसूस करते हैं। वे अपने ही घरों में फंसे हुए महसूस करते हैं और उनमें से अधिकतर को लगता है कि कोई उनकी परवाह नहीं करता है। वे अपने जीवन को अपने बच्चों के कैरियर और जीवन निर्माण करने में व्यतीत कर देते हैं, लेकिन जरूरत के समय बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल करना बंद कर देते हैं। बच्चे अक्सर नौकरी के कारण अपने माता-पिता के साथ रहने या उनकी देखभाल करने में असमर्थता का कारण बताते हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। आर्थिक दबाव और उपभोक्तावादी समाज ने आज मूल्यों की एक अलग श्रेणी का निर्माण किया है। बच्चे बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल नहीं करना चाहते हैं। उनमें से कुछ सोचते हैं कि मासिक आधार पर उन्हें पैसे भेजना पर्याप्त है, जबकि अन्य अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करते हैं। बुजुर्गों की उपेक्षा और विरक्ति की समस्या को केवल हमारे परिवारों और शैक्षणिक संस्थानों में ही हल किया जा सकता है। हमें अपने बच्चों को अच्छे संस्कारों की शिक्षा देनी चाहिए, लेकिन यह शिक्षण सैद्धांतिक नहीं बल्कि उदाहरण के माध्यम से होना चाहिए। हर बच्चा देखता है कि उसके माता-पिता दादा-दादी के साथ कैसा व्यवहार करते हैं और यह सीख उसके मानस पटल में बस जाती है। आइए, हम माता-पिता और शिक्षक, एक अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर बुजुर्गों का प्यार, सम्मान और करुणा के साथ देखभाल करने और हमारे बच्चों और विद्यार्थियों में सही मूल्यों को विकसित करने का संकल्प लें।


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