अध्यात्म ही आधार है
प्राचीन काल के मंगलमय वातावरण को पुनः वापस लाने के जिन पुण्य प्रयत्नों में अखंड ज्योति संलग्न है, उनका प्रमुख आधार अध्यात्म ही है। सतयुग में मनुष्य को अगणित सुख सुविधाएं प्राप्त थी, उसकी शक्ति सामर्थ्य प्रत्येक दिशा में बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। इस सुयोग का कारण और कुछ नहीं केवल एक ही था, जीवन का अध्यात्म प्रेरणा से अनुप्राणित एवं प्रेरित होना। उस समय सब लोग अपनी भावनाएं और क्रियाएं अध्यात्म मान्यताओं एवं मर्यादाओं के अनुसार ढालते थे, फलस्वरूप उन्हें बाह्य जीवन में किसी प्रकार की असुविधा न रहती थी। जहां चंदन का वृक्ष होगा वहां सुंगध भी होगी ही, जहां अध्यात्म को आश्रय मिलेगा वहां शक्ति, समृद्धि और सुख शांति की परिपूर्णता रहनी ही चाहिए। अध्यात्म भारत की महानतम संपत्ति है। उसे मानवता का मेरुदंड कहा जा सकता है। मनुष्य के भौतिक एवं आध्यात्मिक चिरस्थायी उत्कर्ष का एक मात्र आधार यही है। मनुष्य जाति की अगणित समस्याओं को हल करने और सुख शांतिपूर्वक जीने के लिए अध्यात्म ही एक मात्र उपाय है।
इस जीवन तत्त्व की उपेक्षा करने से पतन और विनाश का ही मार्ग प्रशस्त होता है। दुख और दरिद्र, शोक और संताप इसी उपेक्षा के कारण उत्पन्न होते हैं। मनुष्य के भविष्य को अंधकारमय बनाने वाला निमित्त इस उपेक्षा से बढ़कर और कोई नहीं हो सकता। अध्यात्म मानव जीवन के श्रेष्ठतम सदुपयोग की एक वैज्ञानिक पद्धति है। उसे जीवन जीने की विद्या भी कहा जा सकता है। छोटे-छोटे कार्यों की भी कोई प्रणाली एवं पद्धति होती है। उसी ढंग से चलने पर सफलता मिलती है। अस्त-व्यस्त ढंग से कार्य किया जाए तो लाभ के स्थान पर हानि ही होगी।
मानव जीवन इस संसार का सर्वोत्कृष्ट वरदान है। भगवान के पास जो कुछ विभूतियां है वे सभी उसने मनुष्य शरीर में बीज रूप में भर दी हैं। ऐसे बहुमूल्य यंत्र का सुसंचालन एवं सदुपयोग यदि ज्ञात न हो तो उसे एक दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। मानव जीवन तो एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं मूल्यवान प्रक्रिया है उसका विज्ञान एवं विधान जाने बिना या जानकर उस पर चले बिना वह आनंद एवं श्रेय नहीं मिल सकता, जो मनुष्य जीवन जीने वाले को मिलना ही चाहिए। मानव जीवन के दो पहलू हैं एक आत्मा दूसरा शरीर। एक आंतरिक दूसरा बाह्य। दोनों में एक से एक बढ़कर विभूतियां एवं समृद्धियां भरी पड़ी हैं। पांच कोश, एवं छह चक्र, अपने गर्भ में अगणित ऋद्धि-सिद्धियां छिपाए बैठे हैं। मस्तिष्क के मध्य भाग ब्रह्मरंध्र में अवस्थित शत दल कमल, हृदय संस्थान का सूर्य चक्र, नाभिदेश में प्रतिष्ठित ब्रह्म गं्रथि, मूलाधार वासिनी महासर्पिणी कुंडलिनी का जो विवेचन योग शास्त्रों में मिलता है उससे स्पष्ट है कि विश्व की अत्यंत महत्त्वपूर्ण शक्तियां बीज रूप से इन छोटे से केंद्रों में भरी पड़ी हैं। योगाभ्यास द्वारा इन्हें जाग्रत करके आलौकिक सामर्थ्यों से सुसंपन्न सिद्ध पुरुषों की श्रेणी में पहुंचा देते हैं।
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