छेरिंग दोरजे : एक इतिहास का अंत: प्रेम ठाकुर, लेखक लाहुल-स्पीति से हैं

By: प्रेम ठाकुर, लेखक लाहुल-स्पीति से हैं Nov 17th, 2020 12:08 am

प्रेम ठाकुर

लेखक लाहुल-स्पीति से हैं

मैंने कौतूहल वश यह पूछ लिया कि उनको मेरे बुजुर्गों की कोई घटना याद है? उन्होंने मुस्कुरा कर सिर्फ यही कहा कि आपके दादा व पड़दादा ने समस्त लाहुल-स्पीति को लाहुल व कुल्लू से बाहर जाकर व्यवसाय व बच्चों को उच्च शिक्षा देने का संदेश दिया था। उन्होंने बताया कि किस प्रकार मेरे दादा अक्सर कहते थे कि पूरा देश देख लिया है, सिर्फ  बम्बई नहीं जा पाया हूं। बस यही शब्द अक्सर मैं अपने दादा जी से भी सुना करता था…

सन् 2010 की एक सर्दी में, मैं  लाहुल के सन् 60 के दशक के उपायुक्त श्री मनोहर सिंह गिल की पुस्तक ‘हिमालयन वंडरलैंड’ पढ़ रहा था। इस पुस्तक में उन्होंने एक युवा कर्मचारी श्री छेरिंग दोरजे के विषय में काफी रोचक बातें लिखी हैं। एक घटना का जिक्र जिसने मुझे बेहद प्रभावित किया, वह थी 1962 की गर्मियों में हुई भीषण बर्फबारी। श्री गिल के अनुसार उस वर्ष अचानक हुई इस बर्फबारी में बहुत से लोग फंस गए थे। किसी प्रसिद्ध फिल्म डिवीजन की टीम भी बारालाचा के आसपास किसी डाक्यूमेंटरी को शूट कर रही थी, वह समस्त लोग फंस चुके थे। उन दिनों शूटिंग के लिए भारी-भरकम कैमरे व अन्य सामान साथ लेकर जाना पड़ता था। इस अचानक हुई बर्फबारी के कारण उन्हें सुरक्षित निकालने का जिम्मा केंद्र ने उपायुक्त लाहुल-स्पीति को दिया। श्री गिल आगे लिखते हैं क्योंकि जहां यह टीम फंसी थी, वहां से एक छोटा सा बैग उठा कर लाना भी बेहद भारी बोझ लगता था। ऐसे में शूटिंग टीम ने समस्त कैमरे व अन्य सामान वहीं छोड़ कर खुद सुरक्षित निकलने का निर्णय लिया। समस्त टीम को सुरक्षित लाने की जिम्मेवारी उन्होंने युवा श्री छेरिंग दोरजे को दी। श्री छेरिंग दोरजे ने न सिर्फ समस्त टीम को सुरक्षित केलांग पहुंचाया, अपितु उनके समस्त कैमरे व सामान भी सुरक्षित पहुंचा दिया। जिस बात ने सभी को प्रभावित किया वह थी छेरिंग दोरजे द्वारा चुना गया सुरक्षित किंतु बेहद कठिन बारालाचा से चंद्रताल होते हुए ग्रमफू  का चुनना। इतना ही नहीं, उन्होंने खुद सभी भारी भरकम कैमरे व अन्य सामान उठाया तथा सभी टीम की हौसला आफजाई करते हुए सुरक्षित पहुंचा कर अपना फर्ज निभाया।

यह संस्मरण पढ़ते-पढ़ते मुझे बारालाचा-चंद्रताल ट्रैक के वो कठिन क्षण याद आ गए जब मैंने इस रूट को पंद्रह साल पहले तब किया था जब मौसम अनुकूल होता है, जबकि श्री छेरिंग दोरजे ने भारी हिमपात में इसे इतने भारी सामान के साथ लोगों का बचाव किया। बस फिर क्या था, मुझे छेरिंग दोरजे से मिलने की जिज्ञासा हो गई। किसी तरह मुझे उनका फोन नंबर मिला और मैंने उनको जब अपना परिचय दिया तो यह जान कर बेहद अच्छा लगा कि वह मेरे परिवार के काफी सदस्यों से परिचित थे। किंतु हालात कुछ ऐसे हो गए कि अगले चार वर्ष हम सिर्फ दूरभाष पर ही बात कर सके और मिलने का मौका हर बार किन्हीं कारणों से टलता रहा। मुझे याद है एक गर्मी में उनका मुझे कॉल आया कि वह मनाली आ रहे हैं और उस दिन मैं भी मनाली में ही था। हमने मिलने का समय व स्थान तय किया। किंतु तय समय पर भोटी गुरु जी (सभी उन्हें भोटी गुरुजी, गुरुजी, इतिहासकार इत्यादि नामों से संबोधित करते थे) नहीं पहुंचे तो मैंने उन्हें कॉल किया तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि वह मनाली पहुंचने वाले थे कि उन्हें सूचना मिली कि किसी ने उनके कुल्लू स्थित घर का ताला तोड़ दिया है और उन्हें तुरंत वापस जाना पड़ा। इस तरह हमारी मुलाकात फिर न हो सकी। इस बीच मुझे उनके कार्य भोटी भाषा, हिंदू व बुद्धिस्ट संस्कृति की अथाह जानकारी के साथ-साथ लाहुल-स्पीति के इतिहास के विषय में उनकी गहन जानकारियों के विषय में मालूम हुआ। वह सच में अपने आप में एक किंवदंति थे। उनके विषय अक्सर मैं लगभग प्रत्येक बुद्धिजीवियों के व्हाट्सएप ग्रुप लेता रहा। अंततः उनसे मेरी मुलाकात का दिन तय हो गया। उन्होंने शर्त रखी कि मैं अपनी जीवन संगिनी को भी साथ लाऊं।

 हमने कुल्लू में मेरे मित्र के निवास ‘गोड निवास’, जो अब एक होटल में तबदील हो चुका था, में तय किया। हम समय से लगभग तीस मिनट पहले तय जगह पहुंच गए। वहां देख कर आश्चर्य हुआ कि भोटी गुरुजी हमसे पहले ही वहां पहुंच चुके थे। हमें उन्हें पहचानने में बिलकुल भी कठिनाई नहीं हुई। मुझे वह एक साधारण से दिखने वाले एक असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी लगे। उनके पास हमारी पहाड़ी संस्कृति का अथाह भंडार है। सही में वह इतिहासकार ही हैं। उन्होंने लाहुल-स्पीति के विषय, लड्डाख व जंस्कर के विषय में कई ऐसे रोचक तथ्य भी बताए जिनसे मैं पहली बार रूबरू हुआ। मैंने कौतूहल वश यह पूछ लिया कि उनको मेरे बुजुर्गों की कोई घटना याद है? उन्होंने मुस्कुरा कर सिर्फ यही कहा कि आपके दादा व पड़दादा ने समस्त लाहुल-स्पीति को लाहुल व कुल्लू से बाहर जाकर व्यवसाय व बच्चों को उच्च शिक्षा देने का संदेश दिया था। उन्होंने बताया कि किस प्रकार मेरे दादा अक्सर कहते थे कि पूरा देश देख लिया है, सिर्फ  बम्बई नहीं जा पाया हूं। बस यही शब्द अक्सर मैं अपने दादा जी से भी सुना करता था। भोटी गुरुजी के मुख से सुन कर ऐसा लगा जैसे मेरे दादा जी सामने वही दोहरा रहे हों। उनसे वे करीब दो घंटे किस प्रकार बीत गए, पता ही नहीं चला। अब जब रुखसत होने का समय आया तो उनसे फिर मिलने का वादा कर हम उठ खड़े हुए। उन्होंने कल्पना को कहा कि पर्यावरण के प्रति सोच ही अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। आज के जमाने में इस तरह के काम को करना भी आसान नहीं है। लोग याद करें या न करें, किंतु धरती मां हमेशा आशीर्वाद देगी।

हाल में जब हमें उनके देहावसान की सूचना मिली तो यकीन करना कठिन हो गया। पहली मुलाकात के बाद हम अक्सर मिलने लगे। लाहुल-स्पीति का कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं होता था जिसमें वह उपस्थित न हों और हम कुछ पल उनके पास बैठ कर उनका आशीर्वाद लेना कभी नहीं भूलते थे। अंतिम बार वह हमें फरवरी 2020 में कुल्लू के एक सभागार में मिले जहां उन्होंने अपने भाषण में मुस्कुराते हुए कहा कि आजकल के युवा शायद मुझसे बोर हो जाते होंगे। महामारी के इस दौर ने हमारी मुलाकातों पर जैसे बंदिश ही लगा दी। इसी काल ने हमसे बहुत से बेशकीमती पुण्य आत्माओं को अलग कर दिया। श्री छेरिंग दोरजे का जाना हम सभी के लिए एक युग का अंत है, एक इतिहास का अंत है। वह जहां कहीं भी हों, हमारे दिल में भोटी मास्टर, भोटी गुरु, इतिहासकार व ज्ञान के सागर के रूप में अक्सर रहेंगे। उन्हें आदरांजलि है।


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