ध्यान का अर्थ क्या है

By: सद्गुरु  जग्गी वासुदेव Nov 14th, 2020 12:20 am

केवल जब आप अपने ही मन के फेर से मुक्त होंगे, तब ही आप परे के आयाम को जान पाएंगे। यह शरीर और यह मन आपके नहीं हैं। ये कुछ ऐसी चीजें हैं जो आपने कुछ समय में इकट्ठा की हैं। आप का शरीर आप के खाए हुए भोजन का एक ढेर मात्र है। आपका मन केवल आपके द्वारा बाहर से इकट्ठा किए हुए प्रभावों का एक ढेर है। आपने जो इकट्ठा किया है वो आपकी संपत्ति है…

ध्यान का अर्थ है भौतिक शरीर और मन की सीमाओं के परे जाना। जब आप शरीर और मन की सीमित समझ के परे जाते हैं, सिर्फ  तभी आप जीवन के पूरे आयाम को अपने अंदर पा सकते हैं। जब आप अपनी पहचान एक शरीर के रूप में करते हैं, तो जीवन के बारे में आपकी सारी समझ सिर्फ  जीवित रहने भर के बारे में होगी। अगर आप अपनी पहचान अपने मन के रूप में करते हैं तो आपकी सारी समझ सिर्फ पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण की गुलाम ही होगी। आप इन सब के परे देख ही नहीं सकते। केवल जब आप अपने ही मन के फेर से मुक्त होंगे, तब ही आप परे के आयाम को जान पाएंगे। यह शरीर और यह मन आपके नहीं हैं। ये कुछ ऐसी चीजें हैं जो आपने कुछ समय में इकट्ठा की हैं। आप का शरीर आप के खाए हुए भोजन का एक ढेर मात्र है। आपका मन केवल आपके द्वारा बाहर से इकट्ठा किए हुए प्रभावों का एक ढेर है।

आपने जो इकट्ठा किया है वो आपकी संपत्ति है। जैसे कि आपका घर है, बैंक में जमा रकम है, वैसे ही आपके पास शरीर और मन है। बैंक में अच्छी रकम, एक अच्छा शरीर और एक अच्छा मन एक अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरी हैं, पर पर्याप्त नहीं हैं। कोई भी मनुष्य इन चीजों से कभी भी संतुष्ट नहीं रहेगा। ये जीवन को सिर्फ आरामदायक बनाएंगे। पहले की किसी भी पीढ़ी ने इस तरह के आराम की, इस तरह की सुविधाओं की कल्पना भी नहीं की थी, जो हमारे पास हैं। फिर भी हम ये नहीं कह सकते कि इस धरती पर हम सबसे ज्यादा आनंदित और सबसे ज्यादा प्रेमपूर्ण पीढ़ी हैं। आपके जीवित रहने के लिए, आपके पास शरीर और मन, ये जो दो साधन हैं, वे ठीक हैं पर वे आपको पूर्णता नहीं देंगे। उनसे आपको संतोष नहीं मिलेगा क्योंकि मनुष्य का गुण ही है जितना है उससे ज्यादा चाहना। अगर आप नहीं जानते कि आप कौन हैं, तो क्या आप ये जानने के काबिल हैं कि ये दुनिया क्या है?

आप जो हैं, उसके सही गुणों का अनुभव करने के लिए आपको अपने शरीर और मन के परे जाना होगा। योग और ध्यान, इसके लिए वैज्ञानिक साधन हैं। एक प्रक्रिया के रूप में ध्यान अलगाव है, जो बाद में समावेशिता की ओर ले जाता है। क्योंकि जब आप इसे शुरू करते हैं तो अपनी आंखें बंद कर के बैठ जाते हैं। वे लोग जो आध्यात्मिक प्रक्रिया के शुरुआती दौर में हैं, वे हमेशा ही बहुत ज्यादा अलग हो कर रहते हैं वे किसी के साथ मिलजुल नहीं पाते। मुझे लगता है कि ये एक डर लोगों में होता है, अगर मैं आध्यात्मिक रास्ते पर जाता हूं तो शायद मैं समाज के साथ मिलजुल नहीं पाऊंगा, क्योंकि मूल रूप से ये अलग करता है। हमने उसी मार्ग को चुना है क्योंकि आज के समाज में समावेशी प्रक्रियाएं संभव नहीं हैं।


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