नगर निगम : कितने फूल कितने कांटे

By: अमन अग्निहोत्री, जयदीप रिहान, खेमराज शर्मा व सौरभ शर्मा Nov 4th, 2020 12:08 am

हिमाचल के खाते में अब तीन नए नगर निगम जुड़ गए हैं। सोलन-पालमपुर और मंडी के नगर निगम बनने के बाद अब बहुत से बदलाव होंगे, यह तो तय है। प्रदेश में कुछ इलाकों को नगर निगम बनाने की मांग काफी समय से उठ रही थी, परंतु इसी के साथ विरोध के स्वर भी कम नहीं गूंजे। नए नगर निगम में अब क्या-कुछ होंगे बदलाव… दखल में बता रहे हैं अमन अग्निहोत्री, जयदीप रिहान, खेमराज शर्मा व सौरभ शर्मा

एक नगर निगम के संचालन का जिम्मा हाउस का होता है। हर माह नगर निगम के हाउस का आयोजन किया जाता है। हाउस में यह तय किया जाता है कि इस माह निगम अपने वार्डों में क्या-क्या कार्य करेगा। पार्षद हाउस में प्रश्न रखते हैं। आयुक्त इन प्रश्नों का समाधान करता है और अगर कोई मुद्दा ज्यादा बड़ा हो, तो इसे सरकार के लिए भेजा जाता है। नगर निगम बनने के बाद कई तरह के नए ऑफिस इसमें जुड़ जाते हैं। इसमें एक सबसे महत्त्वपूर्ण नया ऑफिस सड़कों की रखरखाव करने वाला है। नगर निगम के तहत आने वाली सभी सड़कों को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी इसी ऑफिस की होती है।

इसमें जेई से लेकर एक्सईएन, एसडीओ समेत कर्मचारी होते हैं। इसके अलावा स्ट्रीट लाइट्स ठीक करने के लिए भी निगम के पास अलग से टीम होती है। बिजली बोर्ड के साथ भी टायअप होता है। नगर निगम के स्वास्थ्य से जुड़ा एक अलग से ऑफिस होता है। इसमें एमसी का अपना हैल्थ अधिकारी होता है। यहां नगर निगम के तहत आने वाले लोग भी अपना रूटीन चैकअप करवा सकते हैं, इसके साथ ही अपनी लैब भी होती है, जहां सैंपल की जांच की जा सकती है। कचरा प्रबंधन के लिए भी अगल से ऑफिस होता है, जो कि पूरे एमसी एरिया में सफाई का जिम्मा रखते हैं। एमसी अपने लोगों को पानी मुहैया करवाने के लिए भी अलग से कंपनी को जिम्मा सौंप सकती है। शिमला नगर निगम ने पानी मुहैया करवाने का जिम्मा शिमला जल प्रबंधन निगम को सौंपा है।

रहती है काफी कर्मचारियों की जरूरत

नगर निगम को चलाने के लिए काफी कर्मचारियों की जरूरत होती है। यहां फील्ड से लेकर ऑफिस कार्यालय तक के काम के लिए कर्मचारियों की जरूरत होती है। हरेक विभाग और विंग में अलग-अलग कर्मचारी चाहिए होते हैं। नगर निगम के सही तरीके से संचालन के लिए 500 से ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत होती है, जबकि सफाई कर्मचारी अलग होते हैं। नगर निगम में नई व्यवस्था के अनुसार सारे काम ऑनलाइन किए जा सकते हैं। नगर निगम के लिए सबसे बड़ा खर्चा अपने कर्मचारियों की सैलरी होता है।

अपनी जमीन पर भी नहीं कर सकेंगे अपनी पसंद का काम

नगर निगम के तहत अपनी जमीन पर भी लोग बिना नक्शा पास किए और बिना नगर निगम की परमिशन के किसी भी तरह का निर्माण नहीं कर सकते। पानी और बिजली के कनेक्शन तक एमसी की परमिशन से लेना पड़ेगा। निगम एरिया के अंदर अवैध निर्माण पर तुरंत कार्रवाई की जाती है। एनजीटी के आदेशों का भी निगम के क्षेत्र में सख्ती से पालन होता है। प्रॉपर्टी टैक्स देना पड़ता है।

मुख्यमंत्री ने पूरा किया मंडी से किया वादा

नगर परिषद मंडी को नगर निगम का ताज मिल ही गया है। मंडी से पहली बार मुख्यमंत्री बनने वाले जयराम ठाकुर ने छोटी काशी की जनता से किए वादे को पूरा कर दिखाया है। हमेशा नगर निगम की दौड़ में पिछड़ने वाली छोटी काशी को अब समय की मांग के अनुसार देरी से ही सही, लेकिन नगर निगम का तोहफा मिला है। प्रदेश सरकार ने नगर निगम में शामिल सभी पंचायतों और मंडी शहर के वार्डों की नई सीमाओं को लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी है, लेकिन अधिसूचना के बाद मूल रूप से नगर निगम का अस्तित्व कायम करने में अभी लंबा समय लगेगा। सरकार ने शिवधाम, फोरलेन और रेलवे परियोजना व एनडीआरएफ बटालियन जैसी परियोजनाओं से जुड़े क्षेत्रों को निगम में रखा है और आने वाले समय में लोगों की अपेक्षाओं व विकास की जरूरत के अनुरूप निगम का दायरा बढ़ाने के विकल्प भी खुले हैं।

विरोध अभी भी जारी

मंडी नगर निगम की अधिसूचना के बाद भी ग्रामीण संघर्ष समिति ने अपना आंदोलन जारी रखने और मामले को हाई कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है, तो वहीं कांग्रेस भी ग्रामीण पंचायतों को नगर निगम में शामिल करने को लेकर राजनीतिक मोर्चा जरूर खोलेगी। ऐसे में मुख्यमंत्री व नगर निगम के आने वाले तारणहारों को निगम मुद्दे पर दोहरे मोर्चे पर लड़ना पडे़गा। ग्रामीण क्षेत्रों के विरोध को विकास की योजनाओं से पक्ष में बदलना पडे़गा। मंडी शहर में समस्याओं का भंडार है। शहर पहले से ही आधी-अधूरी सीवरेज, पार्किंग की समस्या, बदहाल सफाई व्यवस्था, आवारा पशुओं, अतिक्रमण से जूझ रहा है। वहीं, अब बढ़े हुए करों का अतिरिक्त बोझ भी जनता पर पडे़गा, जबकि अब 22 ग्रामीण मोहाल भी शामिल कर लिए गए हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्ट्रीट लाइट, पानी निकाली, सीवरेज, सफाई व्यवस्था, बेहतर सड़कें, ढांचागत विकास और स्वरोजगार व रोजगार की चुनौतियां नगर निगम के सामने खड़ी हैं। मनरेगा जैसी बड़ी योजना से वंचित होने के कारण बेरोजगारों के लिए सरकार को अब अपनी शहरी योजनाओं की गांव-गांव के हर घर पर दस्तक करवानी होगी। निगम भारी भरकम कर, मनरेगा, कृषि और बागबानी विभाग की विभिन्न योजनाओं से वंचित होने को लेकर ही ग्रामीण क्षेत्र नगर निगम में शामिल होने को लेकर विरोध करते आ रहे हैं। वहीं हर निर्माण के लिए ग्रामीणों को मंडी शहर के चक्कर काटने पडे़ंगे। विरोध के इन मुद्दों से प्रतिनिधि कैसे निपटेंगे, यह सरकार व जनता की रणनीति पर ही निर्भर करेगा।

चुनौतियां भी तो हैं…

नगर निगम में शामिल होने का शुरू से ही विरोध कर रही मंडी की ग्रामीण जनता को खुशी-खुशी निगम में सहभागी बनाना, 11 पंचायतों के 2439 हेक्टेयर क्षेत्र के विकास व 14953 आबादी की उम्मीदों पर खरा उतरना नगर निगम के आने वाले सारथियों व सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगा।

छोटी काशी ऐसे बनी नगर निगम

शहरी विकास विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक नगर परिषद मंडी के साथ लगती 11 पंचायतों के क्षेत्र को सम्मिलित कर इसे नगर निगम बनाया गया है। इनमें से चार पंचायतों का पूर्ण और सात पंचायतों का आंशिक विलय किया गया है। नेला नवगठित पंचायत सनयारड़, बैहना और दौंधी इन चार पंचायतों को पूर्ण रूप से नगर निगम मंडी में शामिल किया गया है। नगर निगम में ग्रामीण क्षेत्रों के 2439 हेक्टेयर क्षेत्र व 14953 आबादी को जोड़ा गया है। पहले नगर निगम में 25 मोहाल शामिल करने प्रस्तावित थे, जिनमें से अब तीन मोहाल मनयाणा, अरढा और चंडयाल को पूरी तरह इससे बाहर रखा गया है। इस प्रकार अब नगर निगम में साथ लगते 22 मोहाल शामिल किए गए हैं, जिनमें 18 मोहाल पूर्ण रूप से और चार आंशिक रूप से शामिल किए गए हैं। इस प्रकार मंडी नगर निगम का क्षेत्रफल वर्तमान के 389 हेक्टेयर से बढ़कर 2828 हेक्टेयर हो गया है। साथ ही नए क्षेत्रों के जुड़ने से नगर निगम मंडी की आबादी में 14953 की वृद्धि से यहां की कुल आबादी वर्तमान के 26422 से बढ़कर 41375 हो गई है। निगम में 15 वार्ड बनाए गए हैं।

स्माल टाउन पालमपुर

किसी ने की पैरवी… तो खिलाफत भी बहुत हुई

अंग्रेजों के शासनकाल में 1904 में पालमपुर को नोटिफाइड एरिया कमेटी का दर्जा दिया गया था। 1932 में स्माल टाउन कमेटी और 1953 में पालमपुर को नगर परिषद के तौर पर स्तरोन्नत किया गया था। 117 साल पुरानी एनएसी और करीब 67 साल पुरानी नगर परिषद को अब 2020 में नगर निगम का दर्जा प्रदान किया गया है। मात्र 6.72 वर्ग किलोमीटर में सिमटी और चार हजार से भी कम जनसंख्या वाली पालमपुर का नाम विश्व की सबसे छोटी नगर परिषदों में शुमार रहा है। पालमपुर की साथ लगती पंचायतों में ही जनसंख्या का आंकड़ा नगर परिषद से कई गुना हो चुका था।

किसी ने की पैरवी… तो खिलाफत भी बहुत हुई

पालमपुर के साथ लगती पंचायतों के अधिकतर बाशिंदे और समाजसेवी व अन्य संस्थाएं लगातार नगर निगम का दर्जा दिए जाने की मांग कर रही थी, जबकि कुछ क्षेत्रों से विरोध के स्वर भी उठ रहे थे। कुछ पंचायत प्रतिनिधि भी निगम के गठन का विरोध कर रहे थे। कुछ स्थानों पर इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चलाए गए, तो विरोधस्वरूप ज्ञापनों का दौर भी चला। पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी और वूल फेडरेशन के अध्यक्ष त्रिलोक कपूर सहित अन्य नेता नगर निगम के पक्ष में दिखे। शांता कुमार ने नगर निगम को पालमपुर के लिए समय की आवश्यकता बताते हुए लंबे समय तक इसकी पैरवी की, तो इंदु गोस्वामी ने लोगों से नगर निगम के गठन के बाद नुकसान होने की शंका न रखने की बात कही। पूर्व विधायक प्रवीण कुमार भी लंबे समय से पालमपुर के लिए नगर निगम की पैरवी करते आए हैं और उनकी संस्था इन्साफ भी इस आवाज को उठाती रही है। वहीं, पूर्व सिंचाई मंत्री रविंद्र रवि का साथ भी इस मुहिम से जुड़े लोगों को मिलता रहा। पूर्व कांग्रेस सरकार के समय में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के सामने भी यह मामला उठाया जाता रहा, लेकिन उस समय किसी ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई।

दिक्कत की बात यह

जनता का विरोध मुख्यतः मनरेगा जैसे कार्यों के छिन जाने व नगर निगम बनने पर टैक्स बढ़ने को लेकर रहा है, जबकि सरकार ने नए नगर निगमों के लिए कुछ वर्षों तक टैक्स न लगाने की बात कहकर राहत प्रदान कर दी है।

एक दशक पहले उठी थी मांग

पालमपुर को नगर निगम का दर्जा दिए जाने की मांग करीब एक दशक पूर्व से उठ रही थी। पालमपुर को जिला या नगर निगम के तौर पर स्तरोन्नत किए जाने के लिए बाकायदा संघर्ष समिति का गठन कर सरकार तक लगातार आवाज उठाई जा रही थी। पूर्व सांसद शांता कुमार भी लोगों की आवाज को सहारा दे रहे थे और अब प्रदेश में भाजपा की सरकार के गठन के बाद यह मुहिम फिर से तेज हुई थी। प्रदेश में उपमंडल स्तर पर नगर निगम का दर्जा पाने वाला पालमपुर पहला शहर बन गया है।

14 पंचायतें होंगी एमसी में शामिल

नगर निगम का दर्जा दिए जाने से पहले सितंबर के महीने में पालमपुर नगर परिषद विस्तार के साथ इस ओर पहला कदम बढ़ाया गया था, जिसमें दस पटवार सर्किल की 14 पंचायतों के 40 मुहाल और 32504 खसरा नंबर शामिल थे। नगर निगम के गठन में पालमपुर में 14 पंचायतें शामिल होंगी। इनमें 12 पंचायतें पूर्ण रूप से और दो पंचायतों के कुछ हिस्से को छोड़कर शामिल किया जाएगा। आईमा, चौकी, बिंद्रावन, कल्याड़कर, खलेट, घुग्गर, राजपुर, टांडा, बनूरी खास, मुहाल बनूरी, होल्टा और बनघियार नगर निगम का पूरी तरह से हिस्सा बनेंगी, जबकि बंदला का भटारका और नच्छीर व लोहना का सुरड़ क्षेत्र इसमें शामिल नहीं होगा।

अभी पैसे के लिए सरकार पर ही निर्भर

नए नगर निगम में ग्रामीण स्तर तक सीवरेज की व्यवस्था और गलियों के निर्माण व लाइटें आदि लगाने में समय लग सकता है, क्योंकि अब नगर परिषद का एरिया, जो कि एक किलोमीटर से भी कम दायरे में था, वह सैकड़ों हेक्टेयर में होगा। इनके लिए बढि़या प्लानिंग व लोगों का सहयोग पालमपुर नगर निगम को नया स्वरूप प्रदान कर सकता है। फिलवक्त नगर निगम को सरकार से मिलने वाली ग्रांट इन ऐड और अन्य प्रकार की सरकारी सहायता पर ही निर्भर रहना होगा, क्योंकि टैक्स माफी के चलते नगर निगम के लिए अपने आय के स्रोत जुटाने में समय लग सकता है।

डेढ़ दशक से सपना संजोए बैठा था सोलन

प्रदेश की राजधानी शिमला के बाद सबसे तेजी से विकसित होने वाला सोलन शहर करीब डेढ़ दशक से नगर निगम बनाए जाने की आस संजोए बैठा था। प्रदेश में सरकारें आती रहीं और जाती रहीं, लेकिन सोलन को नगर निगम का दर्जा नहीं मिल पाया, जिसका खामियाजा यहां की आम जनता को भुगतना पड़ा। नगर निगम बनाए जाने को लेकर सोलनवासी संघर्ष करते रहे। इसके लिए कई तरह के आंदोलन व प्रदर्शन भी हुए, लेकिन यह मुहिम सिरे नहीं चढ़ पाई। प्रदेश कैबिनेट द्वारा गत दिनों सोलन सहित पालमपुर व मंडी को नगर निगम बनाए जाने का निर्णय लेने पर सोलनवासियों में खुशी का माहौल है। सोलन शहर को नगर निगम का दर्जा मिल जाने के बाद कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। हालांकि यह तो समय ही बता पाएगा कि इन चुनौतियों को चुने गए नुमाइंदे किस तरह से सुलझा पाएंगे।

पार्किंग की दिक्कत सबसे बड़ी, कहां करें गाड़ी खड़ी

सोलन शहर में आबादी बढ़ने के साथ-साथ गाडि़यों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है। आए दिन लोग शहर की प्रमुख सड़कों पर जाम लगा रहता है और लोग काफी-काफी समय तक लंबी-लंबी कतारों में फंसे रहते हैं। नगर निगम बनने के बाद इस ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए बाइपास मार्गों का निर्माण समय की मांग रहेगा और इसके साथ ही पार्किंग व्यवस्था को सुदृढ़ करना भी चुनौती रहेगा। शहर में 25 हजार से अधिक वाहन हैं, जबकि पार्किंग महज 500 गाडि़यों की भी नहीं है। जिला मुख्यालय होने के कारण बाहरी क्षेत्रों से भी लोग अपने कार्यों के लिए यहां पहुंचते हैं, जिस कारण मजबूरन वाहन चालकों को अपनी गाडि़यों को सड़क किनारे पार्क करना पड़ता है। पार्किंग निर्माण के लिए नगर परिषद ने कई प्रस्ताव रखे, लेकिन कभी फंड की कमी, तो कभी अन्य कारणों के चलते प्रस्ताव सिरे नहीं चढ़ पाए। नगर निगम बन जाने के बाद अब इन सभी चुनौतियों से पार पाना चुने गए प्रतिनिधियों के लिए टेढी खीर साबित हो सकता है।

एमसी में ये पंचायतें होंगी शामिल

सोलन जिला प्रशासन द्वारा भेजे गए प्रस्ताव में आठ पंचायतों बसाल, शामती, कोठों, पड़ग, सलोगड़ा, सेरी, सपरून व आंजी के सेमी अर्बन क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इनमें सलोगड़ा पंचायत का दधोग गांव, सेरी पंचायत को बजड़ोल गांव, आंजी पंचायत का आंजी गांव, सपरून पंचायत का रबौण क्षेत्र, पड़ग पंचायत का बेर की सेर गांव, शामती पंचायत के दो वार्ड, कोठों पंचायत के दो वार्ड और बसाल पंचायत के दो वार्ड, कथेड़ व बांवरा गांव सहित बसाल स्थित हेलिपैड तक सड़क के ऊपर व नीचे के क्षेत्र को शामिल किया जाएगा।

यहां अभी बहुत काम होने बाकी

सोलन शहर की बात करें, तो बढ़ती आबादी के चलते नगर परिषद लोगों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयासरत रही है, लेकिन फिर भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अभी भी बहुत कार्य होने बाकी हैं। यही क्षेत्र नगर निगम बनने के बाद भी प्रमुख चुनौतियों के रूप में खड़े रहेंगे। इनमें सबसे प्रमुख है शहर की पेयजल व सीवरेज व्यवस्था। शहर में पेयजल वितरण का जिम्मा तो नगर परिषद संभालती है, लेकिन उसे पानी के लिए जलशक्ति विभाग पर निर्भर रहना पड़ता है। चाहे कोई भी मौसम हो, शहरवासियों को पेयजल की दिक्कत से दो-चार होना ही पड़ता है। यही हाल सीवरेज व्यवस्था का भी है। शहर के वार्डों की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए अभी तक सीवरेज व्यवस्था भी अधिकांश क्षेत्रों में अधर में ही है। कूड़ा निष्पादन भी सबसे बड़ी समस्या है। शहर में प्रतिदिन 20 टन से अधिक कचरा निकलता है, जिसके निष्पादन को लेकर कूड़ा संयंत्र की दरकार है। नगर परिषद द्वारा पिछले वर्ष ही इसे लेकर गुजरात की एक कंपनी से बात की गई थी, लेकिन अभी तक उस पर कोई सकारात्मक कार्रवाई नहीं हो पाई है।

निगम के लिए 17 वार्ड प्रस्तावित

निगम में कुल 17 वार्ड होंगे और इसे लेकर उपायुक्त सोलन ने डिलिमिटेशन की प्रक्रिया को लेकर नोटिस भी जारी कर दिया है। इसे लेकर पांच नवंबर तक सुझाव व आपत्तियां मांगी गई हैं। नए प्रस्तावित वार्डों में रबौन-आंजी वार्ड नंबर एक, देउंघाट वार्ड दो, रेलवे स्टेशन वार्ड नंबर तीन, कथेड़ बाइपास वार्ड 4, बसाल-कथेड़ वार्ड 5, चंबाघाट-सलोगड़ा वार्ड 6, मोहन पार्क वार्ड 7, जवाहर पार्क वार्ड 8, ठोडो ग्राउंड वार्ड 9, जौणाजी रोड वार्ड 10, ब्वॉयज स्कूल-टैंक रोड वार्ड 11, आफिसर कॉलोनी रोड वार्ड 12, डिग्री कालेज-शामती वार्ड 13, पटराड़-तहसील कार्यालय वार्ड 14, सन्नी साइड वार्ड 15, क्लीन वार्ड 16 व हाउसिंग बोर्ड वार्ड 17 होगा। इनमें जनसंख्या के हिसाब से सबसे बड़ा वार्ड 7 होगा और सबसे कम आबादी वाला वार्ड नंबर 8 होगा।

कहीं मिला साथ, कहीं विरोध की आवाज

सोलन नगर परिषद को नगर निगम बनाए जाने को लेकर कई ऐसे मुद्दे हैं, जिस कारण सरकार ने इस ओर रुचि दिखाई है। सोलन प्रदेश का नहीं, बल्कि उत्तरी भारत का सबसे तेजी से विकसित हो रहा शहर है। सोलन को एजुकेशन हब के नाम से जाना जाता है और इसके आसपास कई नामी विश्वविद्यालय व कालेज स्थापित हैं। परवाणू से शिमला तक फोरलेन का कार्य चल रहा है, जो कि सोलन से होकर ही जाएगा। वहीं, चंडीगढ़ से कम दूरी और रेलमार्ग का होना भी सोलन के पक्ष में रहा है। इसके अलावा सोलन को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। इन सभी बातों के चलते सोलन को नगर निगम बनाए जाने की योजना सिरे चढ़ पाई है। जनसंख्या की बात करें, तो सरकार पहले ही नगर निगम के लिए 40 हजार की जनसंख्या का मापदंड तय कर चुकी है, जिसे सोलन लगभग पूरा करता है और आसपास की पंचायतों के सेमी अर्बन एरिया को शामिल करन के बाद आबादी अधिक हो जाएगी।

फिर 2017 में संघर्ष समिति भी बनी

सोलन नगर निगम की मांग की प्रमुखता देखते हुए जुलाई, 2017 में शहरवासियों ने नगर निगम संघर्ष समिति का गठन किया था। इसमें लगभग सभी पार्टियों के नुमाइंदे शामिल हैं, हालांकि वे सभी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोलन को नगर निगम बनाए जाने के लिए प्रयासरत रहे। समिति की ओर से पिछले तीन साल से लगातार अपने स्तर पर व शहरवासियों के साथ मिलकर कई अनोखे प्रयास किए गए। इनमें सर्वप्रथम करीब आठ हजार लोगों के हस्ताक्षर करवाना, वहीं समय-समय पर मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों से मिलना शामिल हैं। इसके अलावा करीब 750 स्टिकर बनाकर नगर निगम बनाए जाने की मांग करना और शहरवासियों की ओर से मुख्यमंत्री को करीब 450 पोस्टकार्ड भिजवाना भी शामिल है। नगर निगम संघर्ष समिति के संयोजक कुल राकेश पंत ने कहा कि तीन वर्षों से सोलन को नगर निगम का दर्जा दिलाए जाने के लिए प्रयासरत रहे हैं। सोलन की जनता के सहयोग से यह संघर्ष रंग लाया है।

ग्रामीणों को मंजूर नहीं नगर निगम

नगर निगम बनाए जाने को लेकर सोलन की आठ पंचायतों के क्षेत्रों को शामिल करने की अटकलों के बाद ग्रामीणों ने इसका विरोध जताना शुरू कर दिया था। जिला मुख्यालय में इसे लेकर प्रदर्शन भी किए गए थे। नगर निगम पर मुहर लग चुकी है और पंचायतों के किन-किन क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा, इसकी तस्वीर भी लगभग साफ हो चुकी है, लेकिन ग्रामीण अभी भी इसका विरोध जता रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी कृषि योग्य भूमि निगम में मिलने के बाद बर्बाद हो जाएगी और उस पर भू-माफिया कब्जा कर लेगा। हालांकि सरकारी नुमाइंदों व स्थानीय नेताओं का कहना है कि नगर निगम के लिए केवल सेमी अर्बन एरिया को ही शामिल किया जा रहा है, जबकि कृषि योग्य भूमि पहले की तरह पंचायत क्षेत्र में ही रहेगी।

 

चुनौतियों से निपटने के लिए ही काम कर रही सरकार

सुरेश भारद्वाज, शहरी विकास मंत्री

दिव्य हिमाचल — बढ़ते शहरीकरण की चुनौतियां क्या-क्या हैं? और उनके समाधान क्या क्या हैं?

सुरेश भारद्वाज — दो तरह की चुनौतियां हैं। एक तो जो आज हमारे सामने है, दूसरी जो आने वाले सालों में सामने होगी। देश में नरेंद्र मोदी और प्रदेश में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिए काम कर रही है। हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है और शहरीकरण के चलते रहने के लिए मकान, आने-जाने के लिए संसाधन (ट्रांसपोर्ट) व अन्य मूलभूत सुविधाएं जुटाना अन्य राज्यों से मुश्किल काम हैं। स्मार्ट सिटी और अमृत मिशन के माध्यम से इन चुनौतियों से पार पाने के प्रयास किए जा रहे हैं। शिमला शहर का कायाकल्प हो रहा है तथा दूसरी स्मार्ट सिटी धर्मशाला पर भी ध्यान दिया जा रहा है। अन्य योजनाओं के माध्यम से मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान दिया जा रहा है, जिससे आने वाली चुनौतियों का सामना किया जा सके।

दिव्य हिमाचल — पूरे प्रदेश में ही निर्माण अव्यवस्थित सा है, उसे देखते हुए शहर और गांव के बीच मानवीय गतिविधियों को कैसे व्यवस्थित करेंगे?

सुरेश भारद्वाज —  जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है, गांव से शहर की ओर मानवीय गतिविधियां बढ़ रही हैं। सभी चाहते हैं शहर या शहर के नजदीक उनकी रिहायश हो। ऐसी परिस्थिति में अव्यवस्थित निर्माण हुआ है। अब प्रयास यह है कि भविष्य में ऐसा न हो। जिन जगहों पर शहरीकरण हो रहा है, वे प्लानिंग एरिया के अधीन लाए जाते हैं, ताकि सुव्यवस्थित निर्माण सुनिश्चित करवाया जा सके।  दूसरी बात, अब गांवों में भी पहले से बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं। ऐसे में असंतुलन होने की कोई संभावना नहीं है।

दिव्य हिमाचल — बढ़ते शहरीकरण के बीच शहरी विकास विभाग का स्वरूप, शक्तियां और आम बजट में वित्तीय आबंटन क्या बढ़ेगा ?

भारद्वाज — यह जरूर है कि बढ़ते शहरीकरण के साथ-साथ विभाग की जिम्मेदारियां भी बढ़ी हैं।  जहां तक स्वरूप और शक्तियों की बात है, इन्हें बदलने या बढ़ाने से पहने इनका सही उपयोग करना प्राथमिकता है और हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। 15वें वित्तायोग में शहरी निकायों के लिए पर्याप्त बजट का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त स्मार्ट सिटी अमृत व अन्य योजनाओं में बजट का प्रावधान है। केंद्र सरकार की योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू करना प्राथमिकता रहेगी।

दिव्य हिमाचल —  आगामी बजट में आप क्या-क्या प्रस्ताव लाना चाहेंगे? अब तक क्या नई जरूरतें महसूस हुई हैं?

भारद्वाज — आम जनता और जनप्रतिनिधियों से फीडबैक ली जा रही है। आपके माध्यम से भी मैं अपील करता हूं कि आम जनता अपने सुझाव दे। बजट के लिए अभी चर्चा होनी है और लोकहित में कदम जरूर उठाए जाएंगे। जहां तक नई जरूरतों की बात है, नए नगर निगम, नगर पंचायतों का गठन हुआ है, वहां भी लोगों को सुविधाएं मिलें, योजनाएं सुचारू रूप से चलें, इस पर गौर होगा। 

दिहि — टीसीपी कानून को किस तरह और मजबूत करेंगे? साडा एरिया टीसीपी का क्या प्रारूप और प्रक्रिया होगी?

भारद्वाज — मैं समझता हूं कानून को मजबूत होने के साथ-साथ सरल भी होना चाहिए। यह तय है कि कानून को सख्ती से लागू किया जाएगा और यदि कोई जटिलताएं हैं, तो उन्हें दूर किया जाएगा। मेरी प्राथमिकता एक पारदर्शक व्यवस्था बनाना है।  इसके लिए तकनीक का सहारा लिया जाएगा और जनता को अपने काम लिए लिए दफ्तरों के चक्कर न काटने पड़ें। इस पर काम होगा। जहां तक साडा एरिया की बात है, इसके लिए सरकार नए सिरे से विचार करेगी। एक प्लानिंग क्षेत्रों के लिए एक कैबिनेट सब कमेटी भी बनी है। सरकार आम जनता को राहत देने के पक्ष में है।

दिहि — शहरों में सबसे बड़ी समस्या कूड़ा-कचरा प्रबंधन की है, इसका क्या समाधान होगा और इसके लिए क्या कर रहे हैं?

भारद्वाज— कचरा प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। प्रदेश के 30 शहरों के 5,000 रेहड़ी फड़ीधारकों को ठोस कचरा प्रबंधन के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। इसके अतिरिक्त ठोस कचरा प्रबंधन से संबंधित एडवोकेसी और कम्युनिकेशन रणनीति भी तैयार कर की गई है और सभी शहरी निकायों को इसका प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए गए हैं। नई तकनीकों का सहारा लेकर व्यवस्था को चाक चौबंद किया जा रहा है और आधुनिक कचरा संवर्धन प्लांट लगाने के प्रावधान किए जाएंगे। शहरों में कूड़ा उठाने की यंत्रीकृत व्यवस्था की गई है।


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