पंचभीष्म…कोरोना की भेंट चढ़ा पहला दिन

By: जिला संवाददाता—कांगड़ा Nov 27th, 2020 12:34 am

दस दर्जन भक्त भी नहीं पहुंच पाए मां जयंती के दरबार, आने वाले दिनों में बढ़ी भक्तों के आने की उम्मीद

ऐतिहासिक जयंती माता मंदिर कांगड़ा में पंच भीष्म मेले का पहला दिन कोरोना की भेंट चढ़ गया है। गुरुवार को महज 10 दर्जन श्रद्धालु भी यहां नहीं पहुंच पाए। मंदिर में लंगर भी न लगा। हालांकि स्थानीय प्रशासन ने यहां व्यवस्था बनाए रखने के लिए तमाम इंतजाम किए थे, लेकिन उनकी खास जरूरत नहीं  पड़ी क्योंकि कोरोना की वजह से  यहां लोग नहीं पहुंच पाए। अलबत्ता  पंच भीष्म मेलों के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती रही है  समझा जाता है कि आने वाले दिनों में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ सकती है। जयंती माता मंदिर में व्यवस्था को बनाए रखने के लिए यहां पुख्ता इंतजाम किए गए हैं । पुलिस का भी पहरा यहां लगाया है ताकि कोरोना के दृष्टिगत दिशा-निर्देशों की पालना करवाई जा सके।

एसडीएम अभिषेक वर्मा ने बताया कि मेलों के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। मंदिर को जाने के लिए करीब चार किलोमीटर की पैदल चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। पुजारी करनेश शर्मा ने बताया कि हालांकि गुरुवार को पहले दिन भीड़ काफी कम रही। लेकिन आने वाले दिनों में यहां भीड़ बढ़ सकती है। उल्लेखनीय है कि पिछले लंबे अरसे से कांगड़ा का वर्मा परिवार यहां व्यवस्था को देखता आया है। इस मर्तबा भी इस परिवार ने यहां लंगर की व्यवस्था करनी थी, लेकिन प्रशासन की अनुमति नहीं मिली। पिछले साल कांगड़ा परिवार सेवा दल ने भी मां के भक्तों के लिए यहां मंदिर के रास्ते में लंगर का इंतजाम किया था। इसके अलावा भी अन्य लंगर लगे थे।

लेकिन इस मर्तबा सन्नाटा है। उल्लेखनीय है कि जयंती माता के प्रति स्थानीय श्रद्धालुओं व आसपास के क्षेत्रों की काफी श्रद्धा और आस्था है। उल्लेखनीय है कि कार्तिक माह की एकादशी में पंच भीष्म का पर्व विशेषकर महिलाएं यहां वर्षों से मनाती आ रही हैं। इस दौरान पांच दिन व्रत रखा जाता है और मात्र फलाहार पर ही निर्भर रहना पड़ता है। तुलसी को गमले में लगा कर उसे घर के भीतर रखा जाता है तथा चारों और केले के पत्र लगाकर दीपक जला दिया जाता है। उसके उपरांत पांचवें दिन प्रतिपदा को पूजे हुए दीपक को बुझा दिया जाता है। इसी दीपक को पंच भीष्म  के दिन सात साल तक जलाया जाता है। यह पर्व भीष्म पितामाह की याद में होता है तथा गांवों की कन्याएं पांच दिन तक सुहाग गीत गाती हैं। कांगड़ा घाटी में पंच भीष्म  का मेला भी कांगड़ा के जयंती माता मंदिर में पांच दिनों तक लगता है। जो गुरुवार से शुरू हो गया है। गौरतलब है कि जयंती माता मंदिर से कांगड़ा का इतिहास भी जुड़ा है अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी कुछ समय इस मंदिर में व्यतीत किया था। मंदिर के विकास में वर्मा  परिवार का काफी योगदान है। मंदिर के गर्भ गृह में मेलों के दौरान दीये जलाने की परंपरा भी गुरुवार से निभाई जा रही है।


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