रिजर्व बैंक की निगरानी जरूरी : डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री

By: डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री Nov 30th, 2020 12:10 am

वस्तुतः सरकारी बैंकों में धन जमा करना प्राइवेट बैंकों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। चूंकि प्राइवेट बैंक पर मालिकाना हक निजी हाथों में होता है, अतएव अगर निजी बैंक डूबता है तो उसकी भरपाई के लिए वित्तीय संसाधन भी सीमित होते हैं। जबकि दूसरी ओर सरकारी बैंक सरकार के अधीन कार्यरत होते हैं। अतएव सरकारी बैंक डूबता है तो सरकार के पास असीमित वित्तीय संसाधन और विकल्प मौजूद होते हैं और सरकार जहां विफल बैंक को बचाने की पूरी कोशिश करती है, वहीं बैंक डूबने की हालत में उसके घाटे की भरपाई के लिए भी तैयार खड़ी रहती है। इसके साथ-साथ लोगों के द्वारा एक से अधिक बैंक अकाउंट रखे जाने पर भी ध्यान देना चाहिए। एक से ज्यादा बैंकों में अकाउंट रखना लाभप्रद साबित हो सकता है…

हाल ही में तमिलनाडु के प्राइवेट सेक्टर के लक्ष्मी विलास बैंक की विफलता ने एक बार फिर भारतीय बैंकिंग सिस्टम पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। 25 नवंबर को केंद्र सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को बैंकिंग निगरानी व्यवस्था दुरुस्त करने की नसीहत देते हुए डीबीएस बैंक ऑफ  इंडिया लिमिटेड के साथ संकटग्रस्त लक्ष्मी विलास बैंक के विलय को मंजूरी दी है।

गौरतलब है कि वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज के मुताबिक संकटग्रस्त लक्ष्मी विलास बैंक का डीबीएस बैंक ऑफ  इंडिया लिमिटेड के साथ विलय किए जाने का निर्णय शीघ्रतापूर्वक सही समय पर उठाया गया सही कदम है। इस विलय से जहां एक ओर लक्ष्मी विलास बैंक के जमाकर्ताओं में धन की सुरक्षा संबंधी विश्वास बनेगा, वहीं दूसरी ओर डीबीएस को भारत में अपनी डिजिटल रणनीति के साथ पारंपरिक शाखा बैंकिंग को संपूर्ण बनाने में मदद मिलेगी और डीबीएस की व्यावसायिक हैसियत मजबूत होगी। डीबीएस को नए रिटेल और छोटे एवं मध्यम आकार के ग्राहक जोड़ने में मदद मिलेगी। डीबीएस की पूंजी पर इस विलय का असर बेहद कम होगा। ज्ञातव्य है कि लक्ष्मी विलास बैंक की आर्थिक हालात पिछले तीन साल से लगातार बिगड़ती जा रही थी और बैंक को लगातार घाटे का सामना करना पड़ रहा था। इतना ही नहीं, एक उपयुक्त योजना के बगैर और बढ़ते नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) के कारण बैंक का घाटा लगातार बढ़ता गया। लक्ष्मी विलास बैंक की मुश्किलें खासतौर से सितंबर 2019 में उस समय से शुरू हो गई थीं, जब रिजर्व बैंक ने इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस के साथ मर्जर के लक्ष्मी विलास बैंक के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। आरबीआई ने सितंबर 2019 में लक्ष्मी विलास बैंक को प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) फ्रेमवर्क में डाल दिया था।

पीसीए फ्रेमवर्क में डाले जाने की वजह से बैंक न तो नए कर्ज जारी कर सकता था और न ही नई ब्रांच खोल सकता था। उल्लेखनीय है कि लक्ष्मी विलास बैंक में विफलता की घटना सामने आने के बाद 17 नवंबर से केंद्र सरकार ने लक्ष्मी विलास बैंक पर एक महीने के लिए कई तरह की पाबंदियां लगा दी थी। रिजर्व बैंक ने लक्ष्मी विलास बैंक के निदेशक मंडल को भी हटाकर टीएन मनोहरन को 30 दिनों के लिए इस बैंक का प्रशासक नियुक्त किया। इसके बाद शीघ्रतापूर्वक 25 नवंबर को लक्ष्मी विलास बैंक का विलय डीबीएस बैंक ऑफ  इंडिया लिमिटेड के साथ किए जाने हेतु अनुमति दे दी गई है। साथ ही 27 नवंबर से लक्ष्मी विलास बैंक पर लगाई गई बंदिशें भी हटा ली गई हैं। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि लक्ष्मी विलास बैंक पर छाए मौजूदा संकट ने इसी वर्ष 2020 में मुश्किल में फंसे यस बैंक के साथ-साथ पिछले साल सितंबर 2019 में पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक में चल रहे कथित घोटाले की याद को भी ताजा कर दिया है। यदि हम बैंकिंग और वित्तीय असफलता के इन सभी मामलों को देखें तो पाते हैं कि वित्तीय गड़बड़ी की स्थितियां लगभग एक जैसी ही हैं। इन सभी संस्थाओं की वित्तीय स्थिति खराब होती गई, इनके एनपीए बढ़ते गए।

स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज, पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक, दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड, येस बैंक और अब लक्ष्मी विलास बैंक, इन सभी के लिए आरबीआई की बैंकों और वित्तीय क्षेत्र की निगरानी की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए गए हैं। यह चिंताजनक है कि एक ओर पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक के मामले में रिजर्व बैंक समय पर धोखाधड़ी का पता ही नहीं लगा पाया, वहीं दूसरी ओर इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेस, येस बैंक तथा लक्ष्मी विलास बैंक के मामले में रिजर्व बैंक के द्वारा लंबे समय तक समस्या को सुलझाया नहीं गया।

यह भी उल्लेखनीय है कि येस बैंक के मामले में बैंक प्रबंधन के द्वारा बार-बार पूंजी जुटाने के प्रयासों पर भी रिजर्व बैंक के द्वारा उपयुक्त नियंत्रण नहीं किया जा सका। निश्चित रूप से लक्ष्मी विलास बैंक की विफलता के बाद एक ओर लोगों को यह सोचना होगा कि वे अब अपने धन को बैंकों में किस तरह सुरक्षित रख सकते हैं और दूसरी ओर सरकार तथा रिजर्व बैंक को सोचना होगा कि बैंकों पर निगरानी किस तरह बढ़ाई जाए? वस्तुतः सरकारी बैंकों में धन जमा करना प्राइवेट बैंकों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। चूंकि प्राइवेट बैंक पर मालिकाना हक निजी हाथों में होता है, अतएव अगर निजी बैंक डूबता है तो उसकी भरपाई के लिए वित्तीय संसाधन भी सीमित होते हैं।

जबकि दूसरी ओर सरकारी बैंक सरकार के अधीन कार्यरत होते हैं। अतएव सरकारी बैंक डूबता है तो सरकार के पास असीमित वित्तीय संसाधन और विकल्प मौजूद होते हैं और सरकार जहां विफल बैंक को बचाने की पूरी कोशिश करती है, वहीं बैंक डूबने की हालत में उसके घाटे की भरपाई के लिए भी तैयार खड़ी रहती है। इसके साथ-साथ लोगों के द्वारा एक से अधिक बैंक अकाउंट रखे जाने पर भी ध्यान देना चाहिए। सामान्यतया एक से ज्यादा बैंकों में अकाउंट रखना झंझट भरा काम माना जाता है, लेकिन पीएमसी बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक जैसे उदाहरण को देखकर लगता है कि एक से ज्यादा बैंकों में बैंक अकाउंट रखना लाभप्रद साबित हो सकता है। निःसंदेह लक्ष्मी विलास बैंक की असफलता से रिजर्व बैंक की निगरानी व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है।

इसमें कोई दोमत नहीं कि आरबीआई के पास निजी क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों की निगरानी के लिए पर्याप्त अधिकार हैं, लेकिन वह लक्ष्मी विलास बैंक तथा अन्य बैंकों के मामले में अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाया और न ही समुचित निगरानी कर सका। हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार ने 25 नवंबर को आरबीआई को बैंकिंग निगरानी व्यवस्था को दुरुस्त करने की जो नसीहत दी है, उसके मद्देनजर आरबीआई के द्वारा बैंकिंग निगरानी ढांचे की उपयुक्त समीक्षा की जाएगी और ऐसे नए कदम सुनिश्चित किए जाएंगे, जिससे बैंकिंग सेक्टर में लक्ष्मी विलास बैंक जैसी अन्य विफलता की घटनाएं न दोहराई जा सके। हम उम्मीद करें कि रिजर्व बैंक ऑफ  इंडिया के द्वारा ऐसे लोगों के खिलाफ  कड़ी कार्रवाई की जाएगी जो लोग बैंक कारोबार शुरू कर फर्जीवाड़ा करते हैं तथा बैंक को बर्बादी के कगार पर खड़ा कर देते हैं। इस समस्या का यही समाधान है।


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