संविधान की गरिमा कायम रखनी होगी: प्रो. वीरेंद्र कश्यप, पूर्व सांसद

By: प्रो. वीरेंद्र कश्यप, पूर्व सांसद Nov 26th, 2020 12:07 am

यहां ध्यान योग्य बात है कि कुल 299 सदस्यों में से 284 लोगों ने 26 नवंबर 1949 को यह संविधान अपने हस्ताक्षरों के साथ अपना लिया। हमारे संविधान के बारे में एक जानकारी यह भी है कि इसे पारित करते समय 145000 शब्दों का प्रयोग हुआ है। भारत के मूल संविधान को हिंदी और अंग्रेजी में प्रेम बिहारी नारायण राजयादा द्वारा इटैलिक स्टाइल में लिखा गया है जिसमें हर पृष्ठ को शांतिनिकेतन के कलाकारों, वेओहार राममनोहर सिन्हा और नंदलाल बोस द्वारा सजाया गया है। इसमें लगभग 64 लाख रुपए का कुल खर्च आया था…

संविधान मूल सिद्धांतों या स्थापित नजीरों का एक समुदाय है, जिससे कोई राज्य या अन्य संगठन अधिशासित होते हैं। भारत का संविधान हमारा सर्वोच्च विधान है जिसे 26 जनवरी 1950 को प्रभावी रूप से अपनाया गया परंतु इसे काफी लंबी चर्चा के पश्चात विश्व के विभिन्न देशों के विद्वानों को जानकर व उनकी भारत परिपे्रक्ष्य में विशेषताओं को मद्देनजर रखते हुए तैयार किया गया और 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा में पारित किया गया। अब हम उस दिवस को ‘‘संविधान दिवस’’ के रूप में गत 2015 से लगातार मनाते आ रहे हैं। 26 जनवरी को हम ‘‘गंणतत्र दिवस’’ के रूप में हर वर्ष सारे भारतीय देश व विदेशों में हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। हमारा यह संविधान विश्व का सबसे लंबा व लिखित संविधान है। जब 1946 में संविधान बनाने के लिए चुनाव हुआ तो उस समय संविधान सभा के 299 सदस्यों को चयनित किया गया और उसके अध्यक्ष डा. राजेंद्र प्रसाद जो बाद में हमारे प्रथम राष्ट्रपति बने; को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी और संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डा. भीमराव अंबेडकर को बनाया गया जोकि अंतरिम कैबिनेट में विधि मंत्री थे। लगभग 3 वर्षों के अथक प्रयासों से संविधान को तैयार करने में दो वर्ष 11 महीने 18 दिन का समय लगा था।

इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका डा. भीमराव अंबेडकर की रही और उन्हें भारतीय संविधान का प्रधान वास्तुकार व निर्माता कहा जाता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि-हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न लोकतांत्रिक गण राज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। परंतु 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना में तीन शब्दों- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया। संविधान पारित होने के समय (26 नवंबर 1949) को हमारे इस विधान में 395 अनुच्छेद थे जोकि 22 भागों में 8 अनुसूचियों द्वारा संग्रहित थे। अब 470 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियां हैं। अभी तक हम इन 70 वर्षों में अपने संविधान में 124 संशोधन कर चुके हैं। एक जानकारी भारतीय संविधान बारे देना जरूरी होगा कि इस संविधान को हाथ से लिखा गया है जिसमें एक प्रति हिंदी व दूसरी अंग्रेजी में है, परंतु संविधान को अपनाने से पहले संविधान सभा के ग्यारह सत्रों के माध्यम से 165 दिनों में यह लंबी चर्चा के बाद 7635 संशोधन जोकि सदस्यों ने या अन्यों ने दिए थे उनमें से 2473 को खारिज किया गया था।

यहां ध्यान योग्य बात है कि कुल 299 सदस्यों में से 284 लोगों ने 26 नवंबर 1949 को यह संविधान अपने हस्ताक्षरों के साथ अपना लिया। हमारे संविधान के बारे में एक जानकारी यह भी है कि इसे पारित करते समय 145000 शब्दों का प्रयोग हुआ है। भारत के मूल संविधान को हिंदी और अंग्रेजी में प्रेम बिहारी नारायण राजयादा द्वारा इटैलिक स्टाइल में लिखा गया है जिसमें हर पृष्ठ को शांतिनिकेतन के कलाकारों, वेओहार राममनोहर सिन्हा और नंदलाल बोस द्वारा सजाया गया है। इसमें लगभग 64 लाख रुपए का कुल खर्च आया था। यह बात सत्य है कि संविधान मसौदा समिति, जिसके अध्यक्ष डा. भीमराव अंबेडकर थे, ने बड़ी दिलचस्पी व लगन के साथ परिश्रम करके लगभग 60 विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन करके, उनमें जो भी भारतीय समाज व परंपराओं को मद्देनजर रखते हुए बेहतर था, उन्हें ही मसौदा समिति में रखने का प्रयास किया ताकि उस पर वृहद चर्चा के उपरांत उन्हें अपनाया जा सके। अधिकांश अनुच्छेद भारत शासन अधिनियम-1935 से ही लिए गए हैं जिनमें से लगभग 250 अनुच्छेदों को हमारे संविधान में सम्मिलित किया गया है। यह उल्लेखनीय है कि प्रारूप (मसौदा) समिति सात सदस्यों से बनाई गई थी, जिसके अध्यक्ष डा. भीमराव अंबेडकर थे, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि डा. अंबेडकर ने ही दिन-रात कड़ी मेहनत करके इस संविधान को बनाने में अपना भारी योगदान दिया।

जो सात सदस्यीय प्रारूप समिति बनी थी, उसमें डा. अंबेडकर के साथ अन्य सदस्यों में अलदी कृष्णास्वामी अय्यर, एन गोपालस्वामी, केएम मुंशी, मोहम्मद मादुल्लाह, बीएल मित्तर और डीपी खेतान सम्मिलित थे। परंतु लगभग सारे का सारा काम डा. अंबेडकर के कंधों पर था जैसा कि संविधान समिति के वरिष्ठ सदस्य टीटी कृष्णमाचारी ने अपने संविधान सभा में भाषण देते हुए कहा था कि डा. अंबेडकर पर ही संविधान को तैयार करने की जिम्मेदारी रही थी क्योंकि कुल सात सदस्यों में से अधिकांश सदस्य या तो पूरी तरह बैठकों में भाग नहीं ले सके, चाहे उनके स्वास्थ्य के कारण हों या अन्य कारणों से, पर अंबेडकर लगातार प्रारूप समिति के अध्यक्ष होने के नाते उन सभी का भार सहन करते रहे। 26 नवंबर का दिन देश में राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है, परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में जब राष्ट्र डा. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती मना रहा था तो संसद का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाया और अंबेडकर को श्रद्धांजलि के रूप में दो दिन संविधान पर चर्चा हुई और संविधान निर्माताओं को याद किया गया। डा. अंबेडकर तथा अन्य संविधान निर्माताओं को उनके योगदान के लिए व उनके विचारों और अवधारणाओं का प्रसार करने के लिए इस दिन को चुना गया है। हम सभी भारतीयों का दायित्व है कि भारतीय संविधान की गरिमा व सम्मान बनाए रखने के लिए वे सभी दायित्व निभाने हैं जिनकी इसके लिए जरूरत है।


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