साइलेंट किलर है वायु प्रदूषण: डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसिपल

By: डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसिपल Nov 4th, 2020 12:08 am

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसिपल

भारत अपने नागरिकों को स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूषण मुक्त वायु तथा जल उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारे देश के संविधान में पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार की बात कही गई है। साथ ही भारतीय संविधान में कहा गया है कि यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार कार्य करेगा। क्या हम ऐसा कर रहे हैं? शायद उतना नहीं जितना चाहिए। वास्तव में हम में से अनेक वायु प्रदूषण से होने वाले सेहत और अन्य नुकसानों के प्रति पूरी तरह सजग नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में देश में लगभग 12.4 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियों से हुई। ऐसे में जरूरी है कि वायु प्रदूषण सहित अन्य सभी प्रकार के प्रदूषणों से स्थायी तौर पर राहत देने वाले उपायों को अपनाया जाए…

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए एक नया कानून बनाया है, जो कि तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में प्रदूषण से निपटने के लिए एक कानून बनाने का आश्वासन दिया गया था। सरकार की ओर से दिए आश्वासन के बाद यह अध्यादेश लाया गया, जो एनसीआर में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए एक स्थायी निकाय स्थापित करने का भी प्रस्ताव करता है। इस वक्त वायु प्रदूषण सबसे बड़ी वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक है।

वायु प्रदूषण भारत में भी चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है। एक तरफ वायु प्रदूषण को रोकने के लिए दुनिया की सरकारें जहां अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं, वहीं देश में वायु प्रदुषण से जुड़े कानूनी प्रावधानों को और कड़ा किया जा रहा है। दूषित हवा के जनक वायु प्रदूषण ने इनसानी सेहत को बहुत गहरा नुक्सान पहुंचाया है। एक अंतरराष्ट्रीय शोध में कोरोना वायरस महामारी से होने वाली मौतों के पीछे जहरीली हवा का भी फैक्टर जुड़ गया है। वैज्ञानिकों ने एक नए अध्ययन में दावा किया है कि दुनियाभर में कोविड-19 से हुई करीब 15 प्रतिशत मौतों का संबंध लंबे समय तक वायु प्रदूषण वाले माहौल में रहने से है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि यूरोप में कोविड-19 से हुई मौतों में करीब 19 प्रतिशत, उत्तरी अमरीका में हुई मौतों में से 17 प्रतिशत और पूर्वी एशिया में हुई मौतों के करीब 27 प्रतिशत का संबंध वायु प्रदूषण से है। जर्मनी के मैक्स प्लांक रसायन विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता भी इस अध्ययन में शामिल थे। जर्नल ‘कार्डियोवस्कुलर’ में प्रकाशित अध्ययन में कोरोना वायरस से हुई मौतों के संबंध में विश्लेषण किया गया और दुनिया के विभिन्न देशों में वायु प्रदूषण से संबंध का पता लगाया गया। अध्ययन टीम ने कहा कि कोविड-19 से जितनी मौत हुई और इसमें वायु प्रदूषण की वजह से आबादी पर बढ़े खतरों का विश्लेषण किया गया।

इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं ने कहा कि निकाला गया अनुपात वायु प्रदूषण और कोविड-19 मृत्यु दर के बीच सीधे जुड़ाव को नहीं दिखाता है। हालांकि वायु प्रदूषण के कारण बीमारी की गंभीरता बढ़ने और स्वास्थ्य संबंधी अन्य जोखिमों के बीच प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संबंधों को देखा गया। शोधकर्ताओं ने वायु प्रदूषण और कोविड-19 के संबंध में अमरीका और चीन के पूर्व के अध्ययनों का इस्तेमाल किया। वर्ष 2003 में सार्स बीमारी से जुड़े आंकड़ों का भी इसमें इस्तेमाल किया गया। अध्ययन करने वाली टीम ने हवा में पीएम 2.5 जैसे अति सूक्ष्म कणों की मौजूदगी वाले माहौल में ज्यादा समय तक रहने के संबंध में एक मॉडल का विश्लेषण किया।

 महामारी के बारे में जून 2020 के तीसरे सप्ताह तक के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया और शोधकर्ताओं ने कहा कि महामारी खत्म होने के बाद इसके बारे में व्यापक विश्लेषण करने की जरूरत होगी। अलग-अलग देशों के अनुमानों से पता चलता है कि चेक गणराज्य में वायु प्रदूषण का 29 प्रतिशत, चीन में 27 प्रतिशत, जर्मनी में 26 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड में 22 प्रतिशत और बेल्जियम में 21 प्रतिशत का योगदान है। विशेषज्ञों के अनुसार जो लोग वायु प्रदूषण में रहते हैं, उनके फेफड़ों और रक्त वाहिकाओं में बहुत छोटे प्रदूषणकारी कण फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे फेफड़ों में सूजन और गंभीर ऑक्सीडेटिव तनाव होता है, जो शरीर में रक्त कोशिकाओं और ऑक्सीडेंट कणों के बीच संतुलन को नुकसान पहुंचाता है। इससे धमनियों की आंतरिक परत, एंडोथेलियम को नुकसान होता है और धमनियों में सिकुड़न और अकड़न होती है। कोरोना वायरस भी फेफड़ों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है जिससे रक्त वाहिकाओं को समान रूप से क्षति होती है। अगर कोविड-19 वायरस संक्रमण के साथ वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं तो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

 विशेष रूप से हृदय और रक्त वाहिकाओं में, जिससे कोरोना वायरस का जोखिम अधिक बढ़ जाता है। वायु प्रदूषण की रोकथाम के कुछ उपाय बहुत जरूरी हैं। उदाहरण के तौर पर प्रदूषणकारी उद्योगों के लिए शहरी क्षेत्र से दूर अलग से क्लस्टर बनाना, ऐसी तकनीक इस्तेमाल करना जिससे धुएं का अधिकतर भाग अवशोषित हो जाए और अवशिष्ट पदार्थ व गैसें अधिक मात्रा में वायु में न मिलने पाएं, वाहनों में ईंधन से निकलने वाले धुएं पर नियंत्रण, धुआं रहित चूल्हे व सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन, जीवाश्म ईंधन का न्यूनतम इस्तेमाल, वनों की अनियंत्रित कटाई पर रोक लगाने के साथ निरंतर चलने वाले वृक्षारोपण कार्यक्रम इत्यादि शामिल किए जा सकते हैं। भारत अपने नागरिकों को स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूषण मुक्त वायु तथा जल उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारे देश के संविधान में पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार की बात कही गई है। साथ ही भारतीय संविधान में कहा गया है कि यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार कार्य करेगा। क्या हम ऐसा कर रहे हैं? शायद उतना नहीं जितना चाहिए। वास्तव में हम में से अनेक वायु प्रदूषण से होने वाले सेहत और अन्य नुकसानों के प्रति पूरी तरह सजग नहीं हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में देश में लगभग 12.4 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियों से हुई। ऐसे में जरूरी है कि वायु प्रदूषण सहित अन्य सभी प्रकार के प्रदूषणों से स्थायी तौर पर राहत देने वाले उपायों को अपनाया जाए। वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का काम केवल सरकार और सिर्फ  कानून का नहीं है। वायु प्रदूषण एक साइलेंट किलर है। इसे रोकने के लिए प्रत्येक नागरिक को वायु प्रदूषण न फैलने देने की अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सहयोग करना होगा। तभी हम एक स्वच्छ वातावरण का निर्माण कर पाएंगे और बीमारियों से बच पाएंगे।

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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