स्थानीय उत्पादों की चमक: डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री

By: डा. जयंतीलाल भंडारी, विख्यात अर्थशास्त्री Nov 16th, 2020 12:08 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

निःसंदेह अब चीन से और अधिक व्यापार घाटा कम करने के लिए चीन से आयातित कच्चे माल के देश में ही उत्पादन के लिए बनाई गई रणनीति को कारगर बनाया जाना होगा। साथ ही चीनी उत्पादों के स्थानीय विकल्पों को विकसित करने की डगर पर भी तेजी से आगे बढ़ा जाना होगा। निश्चित रूप से चीन से व्यापार घाटा और कम करने के लिए हमें उद्योग-कारोबार क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करना होगा। सरकार के द्वारा स्वदेशी उत्पादों को चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धी बनाने वाले सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू किया जाना होगा। उन ढांचागत सुधारों पर जोर दिया जाना होगा, जिसमें निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सके और उत्पादन संबंधी अकुशलता दूर हो सके। इसके साथ-साथ चीन से निकलती हुई वैश्विक कंपनियों को भारत की ओर आकर्षित करने के और अधिक कारगर प्रयास किए जाने होंगे…

यकीनन इस बार दीपावली और अन्य त्योहारों पर बाजार में स्थानीय उत्पादों की खरीदी का सुकूनभरा परिदृश्य उभरकर दिखाई दिया है। देश के करोड़ों उपभोक्ता दीपावली और अन्य त्योहारों के लिए खरीददारी करते समय स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देते हुए दिखाई दिए हैं। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी पिछले छह वर्षों से लगातार स्थानीय उत्पादों के उपयोग पर जोर देते हुए दिखाई दिए हैं। खासतौर से जैसे-जैसे चीन की भारत के प्रति आक्रमकता और विस्तारवादी नीति सामने आई, वैसे-वैसे उनके भाषणों के माध्यम से स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर देश भर में बढ़ती गई है। प्रधानमंत्री मोदी की स्थानीय उत्पादों के उपयोग की अपील को अंजाम तक पहुंचाने में देश के कोने-कोने में सभी प्रमुख मंत्रालय और दुकानदार तथा करोड़ों उपभोक्ता एकजुट हो गए हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है कि स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर का जोरदार असर भी दिखाई देने लगा है। पिछले कई वर्षों तक त्योहार के दिनों में देश के बाजारों में दुकानें सस्ते चीनी सामानों से भर जाती थीं, लेकिन इस बार त्योहारी बाजारों में चीनी सामानों की जगह स्थानीय सामानों की बहुतायत रही है। जहां रक्षाबंधन, जन्माष्टमी और गणेश चतुर्थी, नवदुर्गा और दशहरा जैसे त्योहारों में चीनी सामान बाजार में बहुत कम दिखाई दिए और चीनी सामानों की बिक्री में भारी कमी आई, वहीं दीपावली पर्व पर भारतीय बाजार से चीनी दीपक, चीन झालर और अन्य सजावट के चीनी सामान लगभग गायब दिखाई दिए। इसके अलावा देश के हर क्षेत्र में स्थानीय कारीगरों के द्वारा बनाई गई दीपावली की वस्तुएं क्षेत्रीय बाजारों में चमकते हुए दिखाई दी हैं। निःसंदेह देश के बाजारों में चीनी सामानों की कमी का जो परिदृश्य है, वह आंकड़ों में भी दिखाई दे रहा है।

वाणिज्य मंत्रालय के द्वारा प्रकाशित नए आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2020-21 के शुरुआती पांच महीनों अप्रैल से अगस्त में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा तेजी से घटकर करीब 12.6 अरब डॉलर का रह गया है। यह व्यापार घाटा वर्ष 2019-20 में करीब 22.6 अरब डॉलर, 2018-19 में करीब 23.5 अरब डॉलर और 2017-18 में करीब 26.33 अरब डॉलर था। जहां पिछले पांच-छह महीनों में भारत में चीन से आयात में बड़ी गिरावट आई है और भारत से चीन को निर्यात में बढ़ोतरी हुई हैं। जहां इस वर्ष 2020 के अप्रैल से अगस्त माह के बीच भारत में चीन से आयात में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 27.63 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं अप्रैल से अगस्त 2020 के बीच भारत से चीन को निर्यात में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 27 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। निश्चित रूप से जिस तरह से देशभर में चीनी सामान का बहिष्कार हो रहा है और सरकार जिस तरह चीनी सामान के आयात को नियंत्रित कर रही है, उससे चालू वित्त वर्ष 2020-21 में चीन से आयात में और कमी होगी तथा चीन के साथ देश के व्यापार असंतुलन में भी और कमी आएगी।

 इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश में कई वस्तुओं का उत्पादन बहुत कुछ चीन से आयातित कच्चे माल और आयातित वस्तुओं पर आधारित है। खासतौर से दवाई उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग तथा इलेक्ट्रिक जैसे कई उद्योग बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर आधारित हैं। यद्यपि भारत दवा के क्षेत्र में अग्रणी देश बनकर उभरा है, लेकिन देश दवा बनाने की मूल सामग्री बल्क ड्रग या एपीआई की जरूरतों की सामग्री के मामले में बहुत कुछ चीन से आयात पर निर्भर है। लेकिन पिछले छह-सात महीनों में देश के उत्पादक चीन से आयातित कुछ कच्चे माल को स्थानीय उत्पादों के आधार पर तैयार करने की डगर पर आगे बढ़े हैं। इसके साथ-साथ सरकार भी चीन से दवा तैयार करने में काम आने वाली एपीआई के घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और चीन से आयातित केमिकल्स के आयात को कम करने के लिए तेजी से आगे बढ़ी है। निःसंदेह अब चीन से और अधिक व्यापार घाटा कम करने के लिए चीन से आयातित कच्चे माल के देश में ही उत्पादन के लिए बनाई गई रणनीति को कारगर बनाया जाना होगा। साथ ही चीनी उत्पादों के स्थानीय विकल्पों को विकसित करने की डगर पर भी तेजी से आगे बढ़ा जाना होगा। निश्चित रूप से चीन से व्यापार घाटा और कम करने के लिए हमें उद्योग-कारोबार क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करना होगा। सरकार के द्वारा स्वदेशी उत्पादों को चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धी बनाने वाले सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू किया जाना होगा। उन ढांचागत सुधारों पर जोर दिया जाना होगा, जिसमें निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सके और उत्पादन संबंधी अकुशलता दूर हो सके। इसके साथ-साथ चीन से निकलती हुई वैश्विक कंपनियों को भारत की ओर आकर्षित करने के और अधिक कारगर प्रयास किए जाने होंगे।

 हम उम्मीद करें कि पूरे देश में इस समय जिस तरह दीपावली और अन्य त्योहारों पर लोग त्योहार से जुड़ी चीनी वस्तुओं- चीनी दीपक, चीनी झालर और सजावट के चीनी सामानों का बहिष्कार करते हुए दिखाई दिए हैं, उसी तरह भविष्य में और अधिक करोड़ों लोग चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्थानीय उत्पादों के उपयोग को जीवन का मूलमंत्र बनाएंगे। हम उम्मीद करें कि पूरे देश में और अधिक उद्यमी और कारोबारी आयातित चीनी कच्चे माल और आयातित चीनी वस्तुओं के स्थानीय विकल्प प्रस्तुत करेंगे। हम उम्मीद करें कि स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहन दिए जाने से देश में कुटीर और लघु उद्योगों को पुनर्जीवित करके बड़ी संख्या में रोजगार और स्वरोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकेंगे। ऐसे में निश्चित रूप से आत्मनिर्भर भारत ही चीन को आर्थिक टक्कर देने और चीन की महत्त्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण का एक प्रभावी उपाय सिद्ध होगा। अब चीन को यह भी समझ में आ जाना चाहिए कि ऐसे हालात के लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। अपनी विस्तारवादी आकांक्षाओं को दिखाकर उसने अपने एक महत्त्वपूर्ण कारोबार सहयोगी को खो दिया है। भारत अब तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। चीनी वस्तुओं का बहिष्कार, देशी सामानों का उपयोग तथा खरीददारी के जरिए भारत अपनी आत्मनिर्भर भारत की रणनीति पर आगे बढ़ रहा है। इसमें चीन को आर्थिक घाटा तथा भारत में कुटीर उद्योगों को मजबूती अवश्यंभावी है। भारत ने अपनी ताकत का एहसास चीन को करवा दिया है।


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