वैश्विक समस्या बन गया है भ्रष्टाचार: राजेंद्र मोहन शर्मा, रिटायर्ड डीआईजी

By: राजेंद्र मोहन शर्मा, रिटायर्ड डीआईजी Nov 23rd, 2020 12:07 am

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी

हिमाचल की बात करें तो अवैध खनन का परंपरागत धंधा अपनी जड़ें पूरी तरह फैला बैठा है। हिमाचल की खड्डों से रेत व बजरी बड़े-बड़े टिप्परों द्वारा दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान इत्यादि राज्यों में भेजी जा रही है। विपक्ष के विधायक भी इसलिए चुप रहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि जब उनकी बारी आएगी तो वे और भी बड़े पैमाने पर अपने गुर्गों से यह गोरखधंधा करवाएंगे। अवैध धंधों को रोकने के लिए एक पूरा खनन विभाग बना रखा है, मगर यह विभाग भी भ्रष्टाचार को रोक नहीं पा रहा…

भ्रष्टाचार आज किसी एक देश की नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की समस्या बन गई है। अमरीका जैसे संपन्न देशों में भी भ्रष्टाचार के कारण असमानताएं देखने को मिलती हैं। भारत जिसे सोने की चिडि़या से जाना जाता था, आज विश्व में भ्रष्टाचार के मामले में 80वें पायेदान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप हैं, जैसे सरकारी कर्मचारियों द्वारा घूस लेना, कालाबाजारी, सस्ते सामान को खरीद कर उसका भंडारण करना तथा ऊंचे दामों पर बेचना, चुनावों में वोटरों को रिझाने के लिए पैसे देना इत्यादि। आर्थिक, सामाजिक या फिर सम्मान, पद प्रतिष्ठा की लालसा के कारण भी व्यक्ति अपने आप को भ्रष्ट बना लेता है। इसी तरह हीनता या ईर्ष्या की भावना के कारण भी व्यक्ति दुराचार करता रहता है। जीवन का कोई भी क्षेत्र इसके प्रभाव से मुक्त नहीं है तथा यह संक्रामक रोग की तरह फैलता ही जा रहा है।

भ्रष्ट देशों की तालिका में कोलंबिया, मैक्सिको, घाना, म्यांमार, सऊदी अरब, ब्राजील व केन्या सबसे ऊंचे पायदान पर हैं। रूस व अमरीका जैसे संपन्नशील देश भी भ्रष्टाचार के क्रमशः 10वें व 23वें पायदान पर हैं। वेनेजुएला जैसे संपन्न देश में भ्रष्टाचार से उत्पन्न हुई स्थिति के कारण वहां के लोगों को दूसरे देशों में पलायन करना पड़ रहा है। इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि जब-जब भी धनाढ़्य लोगों व राजाओं ने आम लोगों के अधिकारों का हनन किया, तब-तब राजतंत्र विद्रोह व क्रांतियां हुई हैं और लोगों ने तख्ता पलटने जैसी घटनाओं को अंजाम दिया है। भ्रष्टाचार से जनता का सरकार पर विश्वास उठने लगता है तथा वे सरकार की नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने लगते हैं तथा इसका सीधा प्रभाव देश की आर्थिक व्यवस्था पर पड़ता है। असमानताएं बढ़ने लगती हैं, अमीर और गरीब की खाई बढ़ने लगती है।

इस समय अगर हम भारत की बात करें तो केवल 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की 70 प्रतिशत संपदा है। यह ठीक है कि आय की असमानता होने के अन्य भी कई कारण हैं, मगर भ्रष्टाचार इसका एक मुख्य घटक है। राजनीतिक पार्टियों का मूल उद्देश्य सत्ता पर कायम रहना होता है तथा वे गरीब को राहत देने के नाम पर अपने सर्मथकों की टोली खड़ी कर लेती हैं। यह सच है कि भारत महाशक्ति बनने के करीब है, परंतु भ्रष्टाचार के कारण हम इससे दूर होते जा रहे हैं। भारत में आज से 7-8 वर्ष पहले घोटालों की भरमार लगी हुई थी। उदाहरणतः बोफोर्स घोटाला, अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाला, अनाज व चारा घोटाला, मुरिया, सत्यम स्टैंप, कॉमनवैल्थ व कोयला खादान घोटाला इत्यादि, जिन्होंने देश की आर्थिक स्थिति को तहस- नहस कर दिया था। यह ठीक है कि मोदी जी ने अपने मंत्रियों पर अपने अनुशासन के जरिए लगाम लगा कर देश में कोई भी बड़ा घोटाला नहीं होने दिया, मगर निचले स्तर पर हर विभाग में यह बीमारी दीमक की तरह अर्थव्यवस्था को चाट रही है तथा आम लोगों को अपने किसी भी सरकारी काम के लिए कम या अधिक, किसी न किसी रूप में घूस देनी पड़ रही है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में लगभग 25 प्रतिशत माल का रिसाव हो जाता है। गरीबों के उत्थान के लिए मनरेगा जैसी योजनाओं में घोटाला किया जा रहा है। लोक निर्माण विभाग व अन्य ऐसे विभाग जिनका काम इमारतें व सड़कें बनाना है, धड़ल्ले से सरकारी धन को लूट रहे हैं।

हिमाचल की बात करें तो अवैध खनन का परंपरागत धंधा अपनी जड़ें पूरी तरह फैला बैठा है। हिमाचल की खड्डों से रेत व बजरी बड़े- बड़े टिप्परों द्वारा दूसरे राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान इत्यादि राज्यों में भेजी जा रही है। विपक्ष के विधायक भी इसलिए चुप रहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि जब उनकी बारी आएगी तो वे और भी बड़े पैमाने पर अपने गुर्गों से यह गोरखधंधा करवाएंगे। अवैध धंधों को रोकने के लिए एक पूरा खनन विभाग बना रखा है, मगर यह विभाग तो इस अवैध धंधे को और सुविधाजनक बनाने में जुटा रहता है। खड्डों व नदियों के सीने इस तरह छलनी किए जा रहे हैं कि इसका बदला तो कुदरत केवल बाढ़ों व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से ही लेकर हटेगी।

केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार रूपी दैत्य की नाक में नुकेल डालने के लिए काफी प्रयास किए हैं जिनका विवरण इस प्रकार से है ः सूचना का अधिकार अधिनियम (2005), लोकसेवा अधिकार कानून (2009), भ्रष्टाचार निरोधक कानून (1988), बेनामी लेन-देन अधिनियम, चुनाव सुधार, लोकपाल अधिनियम (2014), मनी लांड्रिंग एक्ट तथा केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन इत्यादि कई कदम उठाए गए हैं। इस सबके बावजूद व्यापारी वर्ग टैक्स चोरी के कई तरीके अपना कर सरकार को चूना लगा रहा है। मेरा मानना है कि मोदी जी का भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना तभी साकार होगा जब उनकी सरकार के अपने सभी साथी तथा राज्यों में, विशेषतः अपनी पार्टी के शासित राज्यों के सभी मंत्री व विधायक अपने आचरण में सुधार लाकर दूसरों के लिए मिसाल प्रस्तुत करेंगे। राजनीतिज्ञों व कानून को कार्यान्वित करने वाली संस्थाओं की जहां एक तरफ  आपसी सांठ-गांठ की बेडि़यों को तोड़ना आवश्यक है, वहीं सतर्कता विभाग को भी और स्वतंत्र बनाने की आवश्यकता है जिसके लिए मोदी जी को कुछ और सख्त कदम उठाने की जरूरत है। इकबाल द्वारा कही गई इन पंक्तियों पर गौर करना आवश्यक है ः ‘बर्बाद गुलिस्तां करने को तो एक ही उल्लू काफी था। हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए गुलिस्तां क्या होगा?’


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