अंतहीन ट्रेजिक कथा का श्रीगणेश : अशोक गौतम, ashokgautam001@Ugmail.com

By: अशोक गौतम Dec 9th, 2020 12:05 am

दो बातें एक साथ हुईं। इधर मैं साठ का होकर रिटायर हुआ तो उधर सर्दी आ गई एक दम। मौज मस्ती की सारी सरकारी कलई उतर जाने पर भी मन को दिलासा देते हुए रिटायर होने पर सोचा था कि ऑफिस की कुर्सी बहुत तोड़ी। अब आराम से घर पर मजे से पड़ा रहूंगा जब तक जिंदा हूं। न बीवी को शिकायत करने का मौका दूंगा न बच्चों को। न अब बॉस की किचकिच, न पीउन का गालियां देते जग में पानी भरना। पर रिटायरमेंट के बाद घरेलू मस्ती की सारी हवा चौथे दिन ही तब निकल गई जब हंसते हुए बात बात में बीवी घर के कायदे कानून समझाने लगी, ‘जितनी बार भी टॉयलेट जाओ, अपने हाथ साबुन से धोना या न पर टॉयलेट हारपिक से जरूर धोना।

ये तुम्हारे ऑफिस का टॉयलेट नहीं। मेरे घर का  टॉयलेट है। सबेरे उठो तो उठने से पहले बिस्तर ठीक कर लिया करो। थोड़े बहुत हाथ पांव हिलते रहेंगे तो शरीर की मूवमेंट बनी रहेगी वर्ना…’। पर मैं चुप रहा। रिटायर जो हो चुका था। सो,  हाथ पांव हिलाने की कोशिश में लग गया। जिसने साठ साल तक हाथ पांव न हिलाएं हों वे सठ साल के बाद हिलाने पर जम तो जाते ही हैं न! कल ज्यों ही सर्दी की पहली बारिश हुई तो मैंने आव देखा न ताव, अपनी रिटायरी औकात को भूल हड्डियों को सेंक देने के इरादे से मैं हीटर लगाने को ज्यों ही हुआ कि हीटर ऑन करने के स्विच पर मेरा हाथ जाता, हीटर से भी अधिक पसीना लाने वाली आवाज ने कान फोड़ते पूछा, ‘अब क्या कर रहे हो? खुराफात किए बिना नहीं रह सकते क्या? जब देखो इन हाथों को बेकार में हिलाते ही रहते हो।’ सच कहूं, अभी तो रिटायर हुए महीना भी नहीं बीता है। आपको ही बता रहा हूं कि जिस दिन मैं रिटायर हुआ था, उसके दूसरे ही दिन से ही उसमें मैंने एक खास किस्म का चेंज नोट किया है। ‘हीटर लगा रहा हूं। सर्दी की पहली बारिश मुबारक हो बेगम! आओ दोनों बुढ़ापे में हीटर के पास सर्दी की पहली बारिश सेलिब्रेट करते हैं।’ ‘साठ के हो गए पर मुई सेलिब्रेशन की आदत अभी तक नहीं गई। समझते क्यों नहीं कि अब तुम रिटायर हो गए हो। अब सरकार की तरफ से तुम कंडम घोषित हो चुके हो। बंद करो ये हीटर शीटर। अभी तो पूरी सर्दी पड़ी है। अभी से जो हीटर के पास बैठने लग गए तो दो महीने में ही हीटर और मीटर दोनों जला कर रख दोगे’, वह गरजी। खुदा करे, अब बिजली न गिरे। गिरे तो मुझ पर न गिरे। और मैं बिजली से बच गया।

अपने को लक्की मानते हुए तब मैंने चुपचाप हीटर बंद किया और रजाई में दुबक गया कुढ़ता, वर्तमान पर चिंतन करता, बीते दिनों पर प्रलाप करता। सच कहूं, आज मैं इतना साठ का होने पर खिन्न नहीं हूं जितना रिटायर होने पर खिन्न हूं। बीवी के साथ साथ अब मुझे अपनी उम्र पर बहुत गुस्सा आ रहा है कि मैं हुआ तो हुआ, पर साठ का क्यों हुआ? आह! वे भी क्या दिन थे। इधर सर्दी के महीने की केलेंडर पर आहट भर ही होती थी, डबल रॉड वाला हीटर अपने आगे पीछे जला रहता था दस से पांच बजे तक रेगुलर। कोई पूछने वाला नहीं, कोई टोकने वाला नहीं। जितनी मर्जी खुद को सेंकते रहे, जितना मन किया खुद को करारे करते रहो। न बिल की चिंता, न मीटर जलने का डर। हीटर जल गया तो दूसरे दिन ऑफिस जाते जाते ऑफिस के सारे काम छोड़ ले गए ऑफिस के नाम नया हीटर।  इस बहाने सौ दो सौ अपने भी अलग से  बना लिए।


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