भाई लालो की रोटी : डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसिपल
ईश्वर की उनके द्वारा की गई व्याख्या अतुल्य है। जैसा कि भगवान कृष्ण जी ने गीता में एक ईश्वर के बारे में कहा, उसी तरह गुरु नानक देव जी ने एक ओंकार के गूढ़ रहस्य को मनुष्यों के सामने विदित किया। गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं हमें सत्य एवं सामाजिक सद्भावना के मार्ग पर चलने का ज्ञान देती हैं। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारना आज के संदर्भ में ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है। गुरु नानक देव जी ने जो शिक्षा एवं संदेश समाज को दिया, वह आज भी हमारा मार्गदर्शक बना हुआ है। गुरु नानक देवजी ने जात-पात को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए ‘लंगर’ की प्रथा शुरू की थी। लंगर में सब छोटे-बड़े, अमीर-गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं…
इस वर्ष भी 30 नवंबर को सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का प्रकाश उत्सव कार्तिक पूर्णिमा को मनाया गया। मानव जाति को गुरु नानक देव की शिक्षाएं खुशहाली से जीने का मंत्र देती हैं। मान्यता है कि गुरु नानक देव जी अपने समय के सारे धर्मग्रंथों से भली-भांति परिचित थे। उनकी सबसे बड़ी सीख थी- हर व्यक्ति में, हर दिशा में, हर जगह ईश्वर मौजूद है। गुरु नानक को हिंदी, संस्कृत और फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने लोगों को बेहद सरल भाषा में समझाया कि सभी इनसान एक-दूसरे के भाई हैं। यह विचार आज के माहौल में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जब गुरु नानक जी ने विवाह के बाद समाज में फैली जात-पात, ऊंच-नीच की कुरीतियां दूर करने की ठानी तो वह जनता के बीच निकल पड़े। सबसे पहले गुरु नानक ने दक्षिण-पश्चिमी पंजाब का भ्रमण किया।
गुरु नानक देव जी एक बार भ्रमण के दौरान सैदपुर पहुंचे। सारे शहर में यह बात फैल गई कि एक परम दिव्य महापुरुष पधारे हैं। शहर का मुखिया मलिक भागो जुल्म और बेईमानी से धनी बना था। वह गरीब किसानों से बहुत ज्यादा लगान वसूलता था। कई बार उनकी फसल भी हड़प लेता था, जिससे कई गरीब किसान परिवार भूखे मरने को मजबूर थे। जब मलिक भागो को नानक देव जी के आने का पता चला तो वह उन्हें अपने महल में ठहराना चाहता था। लेकिन गुरु जी ने एक गरीब के छोटे से घर को ठहरने के लिए चुना। उस आदमी का नाम भाई लालो था। भाई लालो बहुत खुश हुआ और वह बड़े आदर-सत्कार से गुरुजी की सेवा करने लगा। नानक देव जी बड़े प्रेम से उसकी रूखी-सूखी रोटी खाते थे। जब मलिक भागो को यह पता चला तो उसने एक बड़ा आयोजन किया। उसने इलाके के सभी जाने-माने लोगों के साथ गुरु नानक जी को भी उसमें निमंत्रित किया। गुरुजी ने उसका निमंत्रण ठुकरा दिया। यह सुनकर मलिक को बहुत गुस्सा आया और उसने गुरुजी को अपने यहां लाने का हुक्म दिया। मलिक के आदमी नानक देव जी को उसके महल लेकर आए तो मलिक बोला, ‘गुरुजी मैंने आपके ठहरने का बहुत बढि़या इंतजाम किया था। कई सारे स्वादिष्ट व्यंजन भी बनवाए थे, फिर भी आप उस गरीब भाई लालो की सूखी रोटी खा रहे हो, क्यों।’ गुरुजी ने उत्तर दिया, ‘मैं तुम्हारा भोजन नहीं खा सकता क्योंकि तुमने गलत तरीके से गरीबों का खून चूस कर यह रोटी कमाई है। जबकि लालो की सूखी रोटी उसकी ईमानदारी और मेहनत की कमाई है।’
गुरुजी की यह बात सुनकर मलिक भागो आग-बबूला हो गया और गुरुजी से इसका सबूत देने को कहा। गुरुजी ने लालो के घर से रोटी का एक टुकड़ा मंगवाया। फिर शहर के लोगों के भारी जमावड़े के सामने गुरुजी ने एक हाथ में भाई लालो की सूखी रोटी और दूसरे हाथ में मलिक भागो की चुपड़ी रोटी उठाई। दोनों रोटियों को जोर से हाथों में दबाया तो लालो की रोटी से दूध और मलिक भागो की रोटी से खून टपकने लगा। भरी सभा में मलिक भागो अपने दुष्कर्मों का सबूत देख पूरी तरह से हिल गया और नानक देव जी के चरणो में गिर गया। गुरु जी ने उसे भ्रष्टाचार से कमाई हुई सारी धन-दौलत गरीबों में बांटने को कहा और आगे से ईमानदार बनने को कहा। मलिक भागो ने वैसा ही किया।
इस प्रकार गुरुजी के आशीर्वाद से मलिक भागो का एक तरह से पुनर्जन्म हुआ और वह ईमानदार बन गया। यह देखकर सभी भौंचक्के रह गए। आज विश्व में मलिक भागो को अनेक लोग अपना आदर्श मान चुके हैं और एक बार फिर भाई लालो जैसे ईमानदार और मेहनतकश लोग दोबारा गुरु नानक देव की तलाश में हैं। बाबा गुरु नानक देव जी विश्व के आध्यात्मिक जगत के लिए युगों-युगांतर तक जीवन मूल्यों के प्रतीक बने रहेंगे।
ईश्वर की उनके द्वारा की गई व्याख्या अतुल्य है। जैसा कि भगवान कृष्ण जी ने गीता में एक ईश्वर के बारे में कहा, उसी तरह गुरु नानक देव जी ने एक ओंकार के गूढ़ रहस्य को मनुष्यों के सामने विदित किया। गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं हमें सत्य एवं सामाजिक सद्भावना के मार्ग पर चलने का ज्ञान देती हैं। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारना आज के संदर्भ में ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है। गुरु नानक देव जी ने जो शिक्षा एवं संदेश समाज को दिया, वह आज भी हमारा मार्गदर्शक बना हुआ है। गुरु नानक देवजी ने जात-पात को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए ‘लंगर’ की प्रथा शुरू की थी। लंगर में सब छोटे-बड़े, अमीर-गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में उसी लंगर की व्यवस्था चल रही है, जहां हर समय हर किसी को भोजन उपलब्ध होता है। इसमें सेवा और भक्ति का भाव मुख्य होता है। गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को दस उपदेश दिए जो कि हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगे। गुरु नानक जी की शिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनंत, सर्वशक्तिमान और सत्य है। वह सर्वत्र व्याप्त है। नाम-स्मरण सर्वोपरि तत्त्व है और नाम गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत है। उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन की दस शिक्षाएं दीं, जो इस प्रकार हैं- ईश्वर एक है। सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है। ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता। ईमानदारी से और मेहनत करके उदरपूर्ति करनी चाहिए। बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं। सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए। मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है, पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है। गुरु नानक जी ने अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, धर्मसुधारक, देशभक्त और कवि के गुण समेटे हुए थे। समूची मानवता के लिए श्री गुरु नानक देव की शिक्षाएं बहुमूल्य मार्गदर्शन हैं, जिन्हें अपनाकर मनुष्य अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। यह अटूट और परम सत्य रहेगा कि गुरु नानकदेव जी ने अपनी शिक्षा से लोगों में एकता और प्रेम को बढ़ावा दिया। अब सवाल यह है कि ऐसा अब क्यों नहीं हो रहा?
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