एजुकेशन हब बना हमीरपुर

By:    नीलकांत भारद्वाज Dec 9th, 2020 12:10 am

हिमाचल प्रदेश में कोचिंग व एकेडमी का चलन बहुत पहले से जारी है, लेकिन अब वक्त के साथ इनकी जरूरत बढ़ने लगी है। 90 के दशक से इक्का-दुक्का अकादमियों के साथ शुरू हुआ सिलसिला अब सैकड़ों का आंकड़ा पार कर गया है। बड़ी नौकरी की ख्वाहिश लिए बाहर जाने वाले छात्रों के लिए ये अकादमियां कहीं न कहीं उनके लिए घर में तैयारी कर एचएएस-आईएएस-डाक्टर-इंजीनियर बनने की उम्मीद दे रही हैं। हिमाचल के एजुकेशन हब हमीरपुर में क्या है कोचिंग सेंटर्स का हाल, किन विषयों में दाखिले के लिए है सबसे ज्यादा मारामारी… बता रहे हैं                                                     नीलकांत भारद्वाज

हिम एकेडमी से 1993 में हुई शुरुआत

हमीरपुर में कोचिंग सेक्टर की शुरुआत देखें, तो सबसे पहले वर्ष 1993 में हिम एकेडमी कोचिंग इंस्टीच्यूट से इसकी शुरुआत हुई थी। करीब 27 साल में सैकड़ों बच्चों का भविष्य इस अकादमी ने संवारा। इस एकेडमी से निकले सैकड़ों बच्चे आज इंजीनियरिंग और हैल्थ जगत में अपना नाम चमका रहे हैं। उसके बाद भी धीरे-धीरे यहां कोचिंग संस्थान खुलते गए और आज करीब दो दर्जन कोचिंग इंस्टीच्यूट यहां स्थापित हैं। पिछले पांच वर्षों की बात करें, तो करीब एक दर्जन अकादमियां इसी समयावधि में खुलीं, जिन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया।

सबसे छोटे जिला में बहुत से संस्थान

हमीरपुर में कोचिंग अकादमियों की बात करें, तो यहां हिम एकेडमी, कौटिल्य कोचिंग क्लासेज, सुपर मैग्नेट कोचिंग इंस्टीच्यूट, चाणक्य, एस पठानिया, एक्मे, आर्यन्स, आईआईटीएन क्लासेज, अबेकस, आधार, एएस विद्यामंदिर, एम एंड एम, ग्रैविटी, स्पेक्ट्रम, एबीसी क्लासेज, दि मैग्नेट, ऑलमाइटी, आईबीटी कोचिंग, हिलीओस और निरवाणा कोचिंग अकादमियां प्रमुख हैं। इनमें जेईई, नीट, एनडीए, एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर और प्रशासनिक सेवाओं के लिए कोचिंग दी जाती है।

हिमाचल में सबसे बेहतर साक्षरता दर का खिताब अपने नाम करने वाले हमीरपुर जिला को एजुकेशन हब के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन यह भी सत्य है यह जिला रातोंरात शिक्षा का हब नहीं बना, बल्कि वर्षों का लंबा सफर और तपस्या के बाद हमीरपुर ने शिक्षा के जगत में अपनी पहचान बनाई। प्रदेश के सबसे छोटे जिले को एजुकेशनल हब बनाने में उन तमाम शिक्षण संस्थानों ने अहम भूमिका निभाई, जहां से पढ़ाई करके निकले छात्र-छात्राएं आज लगभग हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं।

एनआईटी हमीरपुर, पॉलिटेक्निकल कालेज और सैनिक स्कूल हमीरपुर के अलावा सैकड़ों सरकारी और निजी स्कूलों ने जहां बच्चों को शिक्षित किया, वहीं यहां की कोचिंग अकादमियों ने बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किया और उन्हें ऊंचे-ऊंचे मुकाम दिलाए। इन कोचिंग अकादमियों से निकले स्टूडेंट्स आज आईआईटी, एनआईआईटी, एम्स जैसे राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों के अलावा प्रशासनिक, सेना, पुलिस और अन्य विभागों में उच्च पदों पर सेवारत हैं।

सबसे ज्यादा डिमांड में ये अकादमियां

इंजीनियरिंग और नीट की बात करें, तो हिम एकेडमी के अलावा कौटिल्य कोचिंग क्लासेज, सुपर मैग्नेट और चाणक्य सहित कुछ अकादमियां ज्यादा डिमांड में हैं। प्रशासनिक सेवाओं की बात करें, इसकी कोचिंग के निए आईबीटी, हिलीओस और निरवाणा मुख्य हैं। इसी तरह बैंकिंग सेक्टर के लिए आधार, ऑलमाइटी आदि प्रमुख हैं।

कौटिल्य क्लासेज ने पांच साल में दिए 42 एमबीबीएस

हमीरपुर स्थित कौटिल्य कोचिंग क्लासेज, जो कि नीट के लिए जानी जाती है, यह अपने पांच साल पूरे कर रही है। दिलचस्प बात यह है कि यह एकेडमी इन पांच वर्षों में 42 एमबीबीएस देश और प्रदेश को दे चुकी है, जो कि बहुत बड़ी बात है। यानी औसतन दस एमबीबीएस हर साल हमीरपुर की एक ही एकेडमी से निकलते रहे। इसके अलावा बीडीएस और बीएएमएस के आंकड़े लेने लगें, तो यह सैकड़ों में जाएंगे। यह तो एक ही एकेडमी की बात है। यदि यहां की सब अकादमियों की बात करें, तो दर्जनों बच्चे यहां से निकलकर आगे जा रहे हैं। हमीरपुर में प्रदेश के हर कोने से बच्चे आकर कोचिंग लेते हैं।

इकॉनोमी बूस्ट करने में मदद कर रहे छात्र

कोचिंग अकादमियों में आने वाले बच्चों का कनेक्शन कहीं न कहीं हमीरपुर शहर के कारोबार से भी जुड़ा रहता है। हर साल यहां कोचिंग लेने आने वाले सैकड़ों छात्रों का कनेक्शन डायरेक्ट या फिर इनडायरेक्ट शहर के कारोबार से जुड़ा रहता है। फिर चाहे होटल-ढाबे हों, कपड़ा व्यापारी हों या फिर किराने वाले। रोजमर्रा की वस्तुएं ये सैकड़ों बच्चे इन्हीं दुकानों से लेते हैं, जो कि यहां की इकॉनोमी को भी बूस्ट करता है।

जेईई-नीट पर अभिभावकों का ज्यादा ज़ोर

हमीरपुर में स्थापित इन अकादमियों में हालांकि हर तरह की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी बच्चों को करवाई जाती है, लेकिन देखा गया है कि जेईई और नीट पर ज्यादा फोकस अकादमियों का है। इसके पीछे वजह यह भी बताई जाती है कि हर तीसरा अभिभावक या तो अपने बच्चे को इंजीनियर बनाना चाहता है या फिर डाक्टर।

नौवीं से ही स्कूल के साथ कोचिंग

पहले यह होता था कि बच्चा जब जमा दो की परीक्षा पास करता था, तो उसके बाद अभिभावक उसे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग दिलवाते थे, लेकिन कुछ सालों से यह देखा जा रहा है कि नौवीं कक्षा से ही कोचिंग का ट्रेंड शुरू हो गया है। स्कूल से छुट्टी के बाद अधिकतर बच्चे सीधे कोचिंग अकादमियों में जाते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि जब वे अपनी जमा दो की परीक्षा पूरी करते हैं, तो सीधे प्रतियोगी परीक्षा में बैठने के काबिल हो जाते हैं।

चंडीगढ़-कोटा के संस्थानों की बराबरी

भौगोलिक स्थिति देखी जाए तो एजुकेशन हब हमीरपुर को प्रदेश का सेंटर प्लेस होने का भी लाभ मिला है। यहां चंबा से लेकर किन्नौर, लाहुल-स्पीती और सिरमौर से भी बच्चे कोचिंग लेने के लिए पहुंचते हैं। हालांकि प्रदेश के कुछ बच्चे बाहरी राज्यों का भी रुख करते हैं, लेकिन पहाड़ी प्रदेश के बच्चों को बाहरी वातावरण में ढलना मुश्किल भी रहता है, जबकि यहां उनकी जरूरत को आसानी से समझा जा सकता है।

इसलिए अभिभावक भी अपने ही प्रदेश में कोचिंग लेने का ऑप्शन चुनकर उन्हें हमीरपुर में दाखिला दिलवाते हैं। कहीं न कहीं क्वालिटी की बात करें, तो प्रदेश में हमीरपुर जिला के कोचिंग इंस्टीच्यूट बहुत ही अच्छा रिज़ल्ट दे रहे हैं। चाहे बात नीट-जेईई की हो या सीबएसई ऑल इंडिया एग्जाम्स की, लगभग हर परीक्षा में हमीरपुर में पढ़ रहे छात्रों का नाम टॉप पर होता है। यही वजह है कि हमीरपुर के कोचिंग संस्थान कहीं न कहीं चंडीगढ़-दिल्ली और कोटा जैसे कोचिंग सेंटर्स की बराबरी कर रहे हैं। अभिभावकों का भरोसा बन गया है कि उन्हें बाहर न भेजकर हमीरपुर में भी अच्छी कोचिंग मिल सकती है। तो यह भी कहा जा सकता है कि हमीरपुर के कोचिंग सेंटर्स से कहीं न कहीं बच्चों की दिल्ली-चंडीगढ़ और कोटा की दौड़ तो कम हुई है।

सर्विस सेक्टर में आते हैं इंस्टीच्यूट लागू होते हैं बिजनेस वाले नियम

कोचिंग संस्थानों में नियमों की बात करें, तो इनके कायदे स्कूलों की तरह सरकारें निर्धारित नहीं करतीं। इसका कारण यह है कि यह सर्विस सेक्टर के दायरे में आते हैं। यानी ये टैक्सेबल होते हैं और जीएसटी के दायरे में आते हैं। इन्कम टैक्स भी देते हैं। कोचिंग अकादमियां 30 प्रतिशत इन्कम टैक्स और 18 प्रतिशत जीएसटी के स्लैब में आती हैं। इनकी कोई रेगुलर अथॉरिटी नहीं होती। इन पर वही नियम लागू होते हैं, जो नॉर्मल बिजनेस में होते हैं। अकादमियों में फैकल्टी योग्यतानुसार रखी जाती है, क्योंकि इन्हें बेहतर रिजल्ट देना होता है।

अब क्योंकि काफी अकादमियां खुल गई हैं, इसलिए कंपीटीशन भी ज्यादा है, ऐसे में हर किसी को बेहतर करने का चैलेंज रहता है। कोचिंग सेंटर्स की फीस निर्धारण का कोई मापदंड नहीं है। पूरे वर्ष का अलग पैकेज रहता है, जबकि क्रैश कोर्स के भी अलग-अलग से फीस पैकेज बनाए गए हैं। इसके अलावा कुछ संस्थानों में प्रति माह के हिसाब से भी फीस वसूली की जा रही है। कोचिंग सेंटर में फैकल्टी की भर्ती किए जाने के लिए भी कोई विशेष नियम नहीं हैं। संस्थान अपनी मर्जी से ही स्टाफ भर्ती करता है। हालांकि इस दौरान लिखित व मौखिक इंटरव्यू सहित क्लास डेमो की व्यवस्था भी किसी-किसी कोचिंग सेंटर में की गई है।

क्या कहते हैं अभिभावक

कोचिंग लेकर आईआईटी रोपड़ में पढ़ रही बेटी मेरी बेटी ज्योति धीमान ने सुपर मैग्नेट से कोचिंग ली है। उसका चयन कम्प्यूटर साइंस में आईआईटी रोपड़ के लिए हुआ है। मेरा मानना है कि प्रतियोगी परीक्षा के लिए एनसीईआरटी के अलावा बाहरी स्टडी की भी जरूरत रहती है, जो कि कोचिंग से पूरी हो जाती है                                —सुषमा धीमान, अभिभावक

बच्चों को स्कूल में नहीं मिलती करियर गाइडेंस

मेरी बेटी इशिका रानी का एनआईईटी हमीरपुर में इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्युनिकेशन के लिए सिलेक्शन हुआ है। स्कूल में बच्चे शिक्षित तो होते हैं, लेकिन करियर के लिए जो गाइडेंस नहीं मिल पाती, ऐसे में कोचिंग ही एक बेहतर विकल्प होता है

—रंजू कुमारी, अभिभावक

अकादमियों में ही मिलते हैं एग्जाम क्रैकिंग टिप्स

मेरे बेटे अंशुल का चयन बिलासपुर स्थित एम्स में हुआ है। कौटिल्य से उसने नीट की कोचिंग ली थी। दरअसल अकादमियों में बच्चों को प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के साथ यह भी सिखाया जाता है कि क्या नहीं पढ़ना है, जो कि मेरे हिसाब से बेहद जरूरी होता है                                                                                                              —सुषमा रानी, अभिभावक, रैहन कांगड़ा

चंडीगढ़ क्यों जाना, यहां बेस्ट एकेडमीज़ हैं

मेरे बेटे साहिल का चयन एनआईईटी हमीरपुर के लिए हुआ है। इसने हिम अकादमी से कोचिंग ली थी। हालांकि मैं इसे चंडीगढ़ भेजना चाहता था, लेकिन बेटे ने कहा कि यह बेस्ट एकेडमी है। आजकल कंपीटिशन इतना है कि कोचिंग के बगैर एग्जाम क्रैक कर पाना आसान नहीं है

                                   —दिनेश कुमार, अभिभावक, एक्स सर्विसमैन

कंपीटिशन के हिसाब से तैयार करते हैं सेंटर

स्कूलों का फोकस बच्चों की परसेंटेज पर रहता है, जबकि कोचिंग अकादमियों के सामने चैलेंज बच्चे को प्रतियोगी परीक्षा क्वालिफाई करवाने का रहता है। कंपीटिशन के हिसाब से बच्चे की तैयारी करवाई जाती है। मेरी बेटी शगुन ने नीट क्लीयर किया, उसने हिम अकेडमी से कोचिंग ली थी                                                         —अश्वनी ठाकुर, अभिभावक

जो अकादमियों में नहीं जा सकते, सरकारी स्कूलों के उन होनहारों के लिए कायाकल्प प्रोग्राम

हमीरपुर की पहचान क्योंकि शिक्षा हब के रूप में प्रदेश भर में है, इसे देखते हुए दो वर्ष पूर्व जिला प्रशासन की ओर से यहां सरकारी स्कूलों के होनहार बच्चों के लिए कायाकल्प कार्यक्रम भी शुरू किया गया था। इसमें उन बच्चों को जेईई और नीट की कोचिंग दी जाती है, जो कि आर्थिकी के अभाव में कोचिंग लेने के लिए अकादमियों में नहीं जा पाते। जिलाभर के सैकड़ों बच्चों को कायाकल्प कार्यक्रम के तहत स्कूलों में जाकर शनिवार और रविवार को कोचिंग दी जाती रही। इसका परिणाम यह हुआ कि इस बार जेईई और नीट क्वालिफाई करने वाले बहुत से बच्चे सरकारी स्कूलों से भी निकले। इनमें नवोदय विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय और हमीरपुर के सरकारी स्कूलों के कुछ बच्चे शामिल हैं। इससे एक बात तो स्पष्ट होती है कि कोचिंग के बिना कंपीटिशन एग्जाम क्रैक कर पाना सरल नहीं है।

पीजी चलाकर लोगों को मिल रहा रोजगार

हमीरपुर में कोचिंग अकादमियों ने न केवल बच्चों को भविष्य संवारा है, बल्कि इन अकादमियों के दम पर दर्जनों पीजी शहर में चल रहे हैं। दूरदराज के बच्चे इन पीजी में रहते हैं। हालांकि इस बार कोरोना के कारण पीजी संचालकों को बड़ी मार पड़ी है। वे भी इंतजार कर रहे हैं कि कब कोरोना से बाहर निकलें और उनका कारोबार फिर शुरू हो।

    सरकार ने आज तक नहीं चलाया कोई ऐसा प्रोग्राम

 शिक्षा के अलावा बच्चों के लिए करियर गाइडेंस का भी बड़ा रोल होता है। सरकार की ओर से आज तक ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं चलाया गया, जिसमें बच्चे को बताया जा सके कि उसने आगे क्या करना है और कैसे करना है। ऐसे में कोचिंग अकादमियां मौजूदा समय में अहम रोल अदा कर रही हैं                                —केडी शर्मा, रि. ज्वाइंट डायरेक्टर हायर एजुकेशन

स्कूल भी दें एक्स्ट्रा टाइम

पढ़ाई स्कूलों में भी अच्छी होती है, पर यदि बच्चों पर एक्स्ट्रा टाइम डिबोट किया जाए, तो कोचिंग अकादमियों में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आज बहुत सारे बच्चे डायरेक्ट स्कूलों से भी निकल रहे हैं। कोचिंग अकादमियों में बच्चों को एग्जाम क्रैक करना सिखाया जाता है                                                                                                      —एचएस जम्वाल, रि.प्रिंसीपल

सवाल सिर्फ पास होने का नहीं

अकादमियां बच्चों को शिक्षित ही नहीं करती, बल्कि उन्हें लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करती हैं। राष्ट्र स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बच्चों को थोड़े समय में तैयार करना इतना सरल नहीं होता। यहां सवाल पास होने का नहीं होता, बल्कि बच्चे को उसकी मंजिल तक पहुंचाने का होता है। अभिभावकों का भरोसा कायम रखना बहुत बड़ी चुनौती होती है

—आरसी लखनपाल, प्रसिद्ध शिक्षाविद

बच्चा होनहार है, तो बिना कोचिंग भी निकलेगा

देखिए जो बच्चा होनहार होगा, वह निकल ही जाएगा। स्कूलों से भी डायरेक्ट निकलकर बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं में खुद को साबित कर रहे हैं। जहां तक अकादमियों की बात है, तो यह चैनेलाइजेशन करने वाली हैं। बच्चा जब यहां पहुंचता है, तो उसमें दूसरे बच्चों को देखकर कंपीटीशन की भावना आ आती है

सुरेंद्र पाल शर्मा, रिटायर्ड प्रिंसीपल

स्कूलों के पास वक्त ही नहीं

आज कोचिंग अकादमियां इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हो गई हैं, क्योंकि प्रतियोगी परीक्षाओं में जिस तरह के सवाल आते हैं, उन्हें क्रैक करने के लिए स्कूली शिक्षा के अलावा भी तैयारी की जरूरत होती है। स्कूलों के पास इतना टाइम है नहीं कि वे एकस्ट्रा टाइम बच्चों पर डिबोट कर सकें                                                                      —एमएल शर्मा, रिटायर्ड डिप्टी डायरेक्टर


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