एक अध्यापक के अनुकरणीय कार्य : हरिमित्र भागी, लेखक सकोह से हैं

By: हरिमित्र भागी, लेखक सकोह से हैं Dec 10th, 2020 12:05 am

महाराष्ट्र के शोलापुर जिले में एक गांव की राजकीय प्राथमिक पाठशाला में कार्यरत प्राथमिक अध्यापक रणजीत सिंह डिस्ले को विश्व का ग्लोबल पुरस्कार मिलना सारे देश के लिए गर्व का विषय है। इस देश को ऋषि-मुनियों का देश होने के कारण विश्व गुरु कहा जाता है। डिस्ले ने विश्व गुरु बनकर बता दिया कि वह सचमुच ऐसे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक ऋषि ने बड़े आत्मविश्वास से कहा है, ‘आप मुझे पांच वर्ष का बच्चा दो, उसके विचारों को न तो कोई मानव बदल सकता है, न देवता।’ अध्यापक के संस्कारों का बालक के जीवन पर प्रभाव जीवनभर रहता है।

इस युग में इस महान अध्यापक ने एक संदेश समाज के सभी वर्गों को जो दिया है, वह यह कि उन्हें पुरस्कार की जो राशि भारतीय मूल्य के अनुसार सात करोड़ से अधिक थी, उस राशि में से आधी राशि फाइनल में पहुंचे अपने अन्य नौ प्रतियोगियों को बांट देंगे क्योंकि उन्होंने भी इस क्षेत्र में बच्चों का जीवन संवारने में अपने आपको समर्पित किया है। कितनी सकारात्मक सोच है यह। गुरु नानक ने लिखा है, ‘किरत कर बंड के छक्क’। सचमुच में अध्यापक का सबसे बड़ा आभूषण संतुष्टि है। वह उस दीपक के समान है जो स्वयं जलकर समाज को रोशनी देता है। एक अध्यापक, विशेषकर प्राथमिक अध्यापक की आर्थिक स्थिति क्या होती है, यह सब जानते हैं। आज के दौर में इस भौतिकवादी युग में पैसे के लिए मानवीय रिश्ते तार-तार हो रहे हैं। ऐसे में 32 वर्षीय डिस्ले जो संदेश दे रहे हैं, वह यह है कि धनवान वे हैं जो दिल की गहराइयों से संतुष्टि रूपी धन लेकर चलते हैं। कई अध्यापकों को अपनी नौकरी के दौरान कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। वे विपरीत स्थितियों को भी अनुकूल बना लेते हैं।

चुनौती को अवसर में बदलकर वे समाज को संदेश देते हैं। छुट्टी के बाद भी कई अध्यापक बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते हैं। सादगी का जीवन जीकर वे जनजागरण का काम भी करते हैं। समाज के निर्माण में उनका योगदान बहुमूल्य है। श्री डिस्ले की नियुक्ति 2009 में हुई। पाठशाला का भवन जर्जर था तथा आसपास भारी गंदगी फैली थी। फिर उन्होंने स्कूल की मरम्मत करवाई। स्कूल के कल्याण के लिए उन्होंने कई कार्य किए। तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने उन्हें बधाई संदेश भेजा है। श्री डिस्ले का जीवन अन्य अध्यापकों के लिए प्रेरणा पुंज की तरह है। उनसे प्रेरणा लेकर हर कोई उन जैसी ऊंचाई को छू सकता है। श्री डिस्ले ने अपने कल्याणकारी कार्यों से अध्यापन व अध्यापक होने की सार्थकता को सिद्ध किया है। समाज को आगे ले जाने के लिए ऐसे ही अध्यापकों की देश को जरूरत है। अध्यापन को जो लोग मात्र व्यवसाय के रूप में देखते हैं, यह मिसाल उनके लिए भी एक सीख की तरह है।


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