पुस्तक समीक्षा : युद्ध क्षेत्र के अनुभव साझा करती किताब

By: -राजेंद्र ठाकुर Dec 13th, 2020 12:05 am

ब्रिगेडियर बीएस मेहता युद्ध क्षेत्र के अनुभव साझा करती किताब ‘दि बर्निंग शैफीज’ लेकर आए हैं। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखी गई यह किताब सैन्य रणनीति को भी उद्घाटित करती है। ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता ने भारतीय सेना की 45 कैवलरी में 15 जून 1966 को कमीशन प्राप्त किया। उन्हें कई सैन्य स्ट्राइक्स में भागीदारी का मौका मिला। वर्ष 1998 में उन्होंने गुजरात सरकार के साथ काम करने के लिए सेना से प्री मैच्योर रिटायरमेंट ले लिया।

गुजरात सरकार के साथ उन्होंने वर्ष 2001 तक काम किया। वह मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालयों के कुलपति भी रहे हैं। ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन तथा स्किल डिवेलपमेंट उनकी रुचि के अन्य विषय रहे हैं। वह सूरत के एक एनजीओ ‘जय जवान नागरिक समिति’ के सक्रिय सदस्य भी हैं। आजकल वह अमरीका में ‘महर्षि इन्वीसिबल डिफेंस फार पीस’ के महानिदेशक हैं। इस तरह उनके अनुभवों का क्षेत्र विशाल है। इन्हीं अनुभवों को उन्होंने इस किताब में पाठकों से साझा किया है।

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध क्यों हुआ, पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में जनजीवन किस तरह लाचार हो गया था, पाकिस्तानी फौज किस तरह वहां जनसंहार कर रही थी, ऐसी स्थिति में भारत के समक्ष क्या संकट पैदा हो गया, इन सब मसलों पर लेखक ने विस्तार से कलम चलाई है। 317 पृष्ठों पर आधारित इस पुस्तक का मूल्य 1060 रुपए है। पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई है, अतः इसे समझने के लिए अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है। यह इस किताब की एक सीमा है। पुस्तक में शहीदों के चित्र भी अंकित किए गए हैं।

कई सैन्य हलचलों से जुड़े चित्र भी इसमें दिए गए हैं। रणक्षेत्र में एक सैनिक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इस विषय पर भी किताब खुलासा करती है। 70 के दशक में पूर्वी पाकिस्तान में उभरी चिंताजनक स्थिति पर अलग पाठ इस घटनाक्रम की अहमियत को दर्शाता है। भारत की सफल कूटनीति को दर्शाती यह किताब सैन्य पराक्रम के कई किस्सों को अपने में समेटे है। यह किताब पाठकों को जरूर पसंद आएगी, ऐसी आशा है। युद्ध की स्थिति में कुशल रणनीति से मोर्चा कैसे फतह किया जा सकता है, इसका उद्घाटन पुस्तक में हुआ है। सैन्य अनुभवों पर बेहतर पुस्तक के प्रकाशन के लिए लेखक को बधाई है।

राजेंद्र ठाकुर


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