साधन और साध्य

By: श्रीराम शर्मा Dec 12th, 2020 12:20 am

एक बार अकबर ने तानसेन से कहा था कि तेरा वीणावादन देखकर कभी-कभी मेरे मन में ख्याल उठता है कि कभी संसार में किसी आदमी ने तुझसे भी बेहतर बजाया होगा या कभी कोई बजाएगा? मैं तो कल्पना भी  नहीं कर पाता कि इससे श्रेष्ठतर कुछ हो सकता है। तानसेन ने कहा, क्षमा करें शायद आपको पता नहीं कि मेरे गुरु अभी जिंदा हैं और एक बार अगर आप उनकी वीणा सुन लें तो कहां वे और कहां मैं। बड़ी जिज्ञासा जगी अकबर को। अकबर ने कहा तो फिर उन्हें बुलाओ। तानसेन ने कहा, इसीलिए कभी मैंने उनकी बात नहीं छेड़ी।  क्योंकि वे यूं आते नहीं। उनकी मौज हो, तो जंगल में बजाते हैं, जहां कोई सुनने वाला नहीं। जहां कभी-कभी जंगली जानवर जरूर इकट्ठे हो जाते हैं सुनने को। वृक्ष सुन लेते हैं, पहाड़ सुन लेते हैं। लेकिन फरमाइश से तो वे कभी बजाते नहीं। वे यहां दरबार में न आएंगे। आ भी जाएं किसी तरह और हम कहें उनसे कि बजाओ, तो वे बजाएंगे नहीं। अकबर ने कहा, फिर क्या करना पड़ेगा, कैसे सुनना पड़ेगा? तो तानसेन ने कहा एक ही उपाय है। यह मैं जानता हूं कि रात तीन बजे वे उठते हैं, यमुना के तट पर आगरा में रहते हैं।

 हरिदास उनका नाम है। हम रात में चलकर छुप जाएं। दो बजे रात चलना होगा,क्योंकि कभी तीन बजे बजाए, चार बजे बजाए, पांच बजे बजाए, मगर एक बार (जरूर सुबह-सुबह स्नान के बाद वे वीणा बजाते हैं) तो हमें चोरी से ही सुनना होगा, झोपड़ी के बाहर छिपे रहकर सुनना होगा। शायद ही दुनिया के इतिहास में अकबर जैसे बड़े सम्राट ने चोरी से किसी की वीणा सुनी हो, लेकिन अकबर गया। दोनों छिपे रहे एक झाड़ की ओट में, पास ही झोपड़ी के पीछे। कोई तीन बजे स्नान करके हरिदास यमुना से आए और उन्होंने अपनी वीणा उठाई और बजाई। कोई घंटा कब बीत गया यूं जैसे पल बीत जाए! वीणा तो बंद हो गई, लेकिन जो राग भीतर अकबर के जम गया था वह जमा ही रहा। आधा घंटे बाद तानसेन ने उन्हें हिलाया और कहा कि अब सुबह होने के करीब है, हम चलें! कब तक बैठे रहेंगे। अब तो वीणा बंद भी हो चुकी। अकबर ने कहा, बाहर की तो वीणा बंद हो गई मगर भीतर की वीणा बजी ही चली जाती है। तुम्हें मैंने बहुत बार सुना,तुम जब बंद करते हो तभी बंद हो जाती है। यह पहला मौका है कि जैसे मेरे भीतर के तार छिड़ गए हैं और आज सच में ही मैं तुमसे कहता हूं कि तुम ठीक ही कहते थे कि कहां तुम और कहां तुम्हारे गुरु!

अकबर की आंखों से आंसू झरे जा रहे हैं। उसने कहा मैंने बहुत संगीत सुना। तेरे संगीत में और तेरे गुरु के संगीत में इतना भेद क्यों है? जमीन-आसमान का फर्क है। तानसेन ने कहा, कुछ बात कठिन नहीं है। मैं बजाता हूं कुछ पाने के लिए और वे बजाते हैं, क्योंकि उन्होंने कुछ पा लिया है। उनका बजाना किसी उपलब्धि की, किसी अनुभूति की अभिव्यक्ति है। मेरा बजाना तकनीकी है। मैं बजाना जानता हूं मैं बजाने का पूरा गणित जानता हूं मगर गणित! बजाने का अध्यात्म मेरे पास नहीं! और मैं जब बजाता होता हूं तब भी इस आशा में कि आज क्या आप देंगे? हीरे का हार भेंट करेंगे कि मोतियों की माला या मेरी झोली सोने से भर देंगे या अशार्फियों से? जब बजाता हूं तब पूरी नजर भविष्य पर अटकी रहती है, फल पर लगी रहती है। वे बजा रहे हैं, न कोई फल है, न कोई भविष्य, वर्तमान का क्षण ही सब कुछ है। उनके जीवन में साधन और साध्य में बहुत फर्क है। साधन ही साध्य है और मेरे जीवन में अभी साधन और साध्य में कोई फर्क नहीं है। बजाना साधन है, पेशेवर हूं मैं। उनका बजाना आनंद है, साधन नहीं, वे मस्ती में हैं।


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