शहनाज में कला की स्वाभाविक समझ थी…

By: शहनाज हुसैन Dec 12th, 2020 12:20 am

जीवन एक वसंत/शहनाज हुसैन, किस्त-56

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है 56वीं किस्त…

-गतांग से आगे…

‘जरा इसे देखना,’ एक सुबह पापा ने उनकी तरफ अखबार बढ़ाते हुए कहा। वर्गीकृत वाले पन्ने पर नीचे एक कोने में ड्रैस डिजाइनर के लिए एक विज्ञापन आया था। उसे देखते ही शहनाज की आंखें खुशी से चमकने लगीं और उन्होंने जल्दी से अपनी चाय खत्म की। वह इंटरव्यू उसी दिन होना था, और उनके पास जाया करने के लिए समय बिल्कुल नहीं था।  ‘टूटू मैं तैयार होने जा रही हूं,’ उन्होेंने जल्दी में कहा।  ‘तुम पक्का इसके लिए तैयार हो?’ उन्होंने अपनी बेगम से पूछा, लेकिन वह तो पहले ही तैयार होने के लिए भाग गई थीं। आखिरकार वह उनका पहला इंटरव्यू जो था। नारी कला मंदिर एक छोटा सा सेंटर था, जहां महिलाएं बच्चों के कपड़ों पर सिलाई और कढ़ाई किया करती थीं। हालांकि मेरी मां, बिल्कुल अप्रशिक्षित थीं, लेकिन उन्होंने ड्रैस डिजाइनर के लिए आवेदन दे ही दिया। ‘आप कैसे सोच सकती हैं कि आप बच्चों के कपड़े डिजाइन कर सकती हैं, जबकि आपने तो डिजाइनिंग का कोई कोर्स भी नहीं किया?’ कमेटी प्रमुख मिसेज माथुर ने पूछा। ‘कला से जुड़ी किसी भी चीज की मुझमें एक स्वाभाविक समझ है,’ उन्होंने दावा किया। ‘और आप जब तक मुझे परखेंगी नहीं, आप कैसे जान पाएंगी कि मुझमें क्या है।’ मिसेज माथुर उनके आत्मविश्वास पर मुस्कुरा उठीं। ‘मुझे जोश वाले युवा पसंद हैं,’ उन्होंने कहा। ‘ठीक है, शहनाज तुम कल से काम पर आ सकती हो।’ सुबह नौ से चार बजे तक उनका काम का समय था और पगार थी एक सौ पचहतर रुपए महीना। ‘अली साहब,’ मॉम ने नरमाई से कहा, ‘क्या आप मिसेज माथुर से दरख्वास्त कर सकते हैं कि मैं हर महीने पैसों के बजाय अपनी बेटी के कपड़े ले सकती हूं?’ ‘तुम्हें सैलरी नहीं चाहिए, शहनाज?’ उसने अविश्वास से पूछा। ‘हां,’ उनका जवाब था। ‘मैं दुनिया में किसी भी चीज से ज्यादा उसे सुंदर कपड़े पहनाना पसंद करूंगी।’ अली साहब का सख्त चेहरा नरम पड़ चुका था। पहली बार उन्हें नंबर के अलावा किसी चीज ने छुआ था। ‘मैं मैडम से पूछकर तुम्हें बताता हूं।’ अगर कोई पूछे कि उनकी कोई एक बात जो मैं कभी भूल नहीं पाऊंगी, तो वह यही बात है। हालांकि उस समय वह पैसों की तंगी के दौर से गुजर रहे थे, लेकिन उनके प्यार में कभी कोई कमी नहीं आई। मैं उनका ख्याल थी, उनकी प्रेरणा। मुझे यह सोचकर अच्छा लगता है कि जब भी वह कोई जिडाइन बनाती थीं, वह पहले उसमें मेरी कल्पना करती थीं। बचपन के फोटों में मैं हमेशा फैंसी पार्टी फ्रॉक पहने होती थी, जो फूली-फूली होती थी। मेरी डिजाइनर, मेरी मां को मैं सबसे हसीन तभी लगती होंगी।

 (ब्यूटीशियन शहनाज हुसैन की अगली कडि़यों में हम आपको नए पहलुओं से अवगत कराएंगे। आप हमारी मैगजीन के साथ निरंतर जुड़े रहें तथा इस सीरीज का आनंद उठाएं। शहनाज का जीवन अन्य लोगों के लिए प्रेरणा की तरह है। उनके जीवन संघर्ष से लोग काफी कुछ सीख सकते हैं।)


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