सड़क भले सरकारी है, पर जिंदगी हमारी है

देवभूमि में हर साल होने वाले हादसों के अध्ययन से यही कहा जा सकता है कि हिमाचल में सड़क दुर्घटना एक महामारी है। कोरोना की तरह इसके खिलाफ भी लड़ाई लड़नी जरूरी है। सरकार को सड़क हादसों को  रोकने के लिए कड़े नियम और कानून बनाने की जरूरत है। जो लोग यातायात के नियमों का पालन नहीं करते हैं, उन्हें समझाना असंभव है। अतः सरकार को चाहिए कि ट्रैफिक से जुड़े कानून बनाए और उन्हें तोड़ने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए…

सड़कों पर दुर्घटनाओं का होना अब एक आम बात है। हर दिन सड़क पर होने वाले हादसों में सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। नियमों की अनदेखी, वाहनों को तेज गति से चलाना और सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल न करना इन हादसों के पीछे के मुख्य कारण हैं। दुनिया भर में आज भी सड़क दुर्घटनाओं में हर साल हजारों लोगों की मौत होती है। देवभूमि हिमाचल को हादसों का प्रदेश भी कहा जाता है, लेकिन 2020 में इस छवि में थोड़ा सुधार हुआ है। हिमाचल प्रदेश में दस हजार किलोमीटर सड़क पर सफर खतरे से खाली नहीं है। प्रदेश की कुल सड़कों में से 30 फीसदी सड़कें खराब हैं। राज्य में सड़कों की खराब हालत हमेशा मुद्दा बनी है। राज्य में 2020 में 6 महीने में 856 सड़क हादसे हुए तथा 308 लोगों की मौत हुई। लॉकडाउन में सड़क हादसे कम हुए, लेकिन शुरुआती 6 महीनों में हुई दुर्घटनाओं को लेकर हिमाचल पुलिस ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वे चिंतित करने वाले हैं। लॉकडाउन के चलते हादसों में कमी जरूर आई है, लेकिन मरने वालों का आंकड़ा अब भी परेशान करने वाला है। कोरोना संकट के दौरान देश के बाकी राज्यों की तरह हिमाचल में भी लॉकडाउन और कर्फ्यू लगाया गया।

लॉकडाउन के वक्त आवाजाही सीमित रही और ज्यादातर गाडि़यों के पहिए थमे रहे। सरकार अपनी तरफ  से भरपूर कोशिश करती है, मगर इसमें लोगों का सहयोग भी होना जरूरी है। सड़क हादसों पर लगाम के लिए सड़क सुरक्षा सप्ताह शुरू किया गया है। इस दौरान एलईडी वाहन के माध्यम से सड़क सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक किया जाएगा। सड़क सुरक्षा सप्ताह में इस वर्ष का थीम ‘सड़क सुरक्षा, जीवन रक्षा’ है। एलईडी वाहन के माध्यम से जिले के विभिन्न चौक-चौराहों पर वीडियो दिखाकर लोगों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक किया जा रहा है। दुपहिया वाहन चालकों को चाहिए कि हमेशा हेलमेट पहन कर ही घर से निकलें और कार चालकों को हमेशा सीट बेल्ट का प्रयोग करना चाहिए। सड़क में वाहन चालकों और पैदल चलने वालों को ट्रैफिक के सभी नियमों का पालन करना चाहिए, तभी ऐसी दुर्घटनाएं हम रोक सकते हैं। इन सड़कों पर हिमाचल की बीस फीसदी आबादी रोजाना सफर करती है। पहाड़ी राज्य होने के नाते हिमाचल में सड़क हादसे काफी गंभीर होते हैं। ऐसे में खराब सड़कों पर सफर कितना सुरक्षित है, इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। हिमाचल में ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कें दुर्घटनाओं को खुला न्योता दे रही हैं। लोक निर्माण विभाग द्वारा तैयार की गई रूरल रोड मेंटिनेंस पॉलिसी में सड़कों की दयनीय हालत का जिक्र किया गया है। प्रदेश में दो तरह की सड़कें, कच्ची व पक्की (मेटल्ड-अन मेटल्ड रोड) हैं।

पक्की सड़कों की लंबाई 1557 किलोमीटर है, कच्ची सड़कों की लंबाई 9456 किलोमीटर है। सभी सड़कें वाहन योग्य घोषित की गई हैं। इन पर रूटीन में गाडि़यां भी चलती हैं। हालांकि वर्ष 2016 की तुलना में 2017 में 1.9 फीसदी कम मौतें हुईं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम इस पर खुश हो जाएं। आए दिन हम अपने आसपास रोड एक्सीडेंट की घटना देखते-सुनते या पढ़ते रहते हैं। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक यदि रोड एक्सीडेंट्स से होने वाली मौतों और दुर्घटनाओं को वर्तमान स्तर से घटा कर आधा कर लिया जाए, तब कुछ चुनिंदा देशों के जीडीपी में अगले 24 वर्षों तक 7 से 22 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है। साल 2020 में शुरुआती 6 महीनों में हर रोज एक से ज्यादा व्यक्तियों की मौत हुई है और हर 24 घंटे के भीतर 6 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। एक जनवरी से 30 जून 2020 तक 308 लोग सड़क हादसों में जान गंवा चुके हैं, 1272 लोग चोटिल हुए हैं, न जानें कितने लोग जिंदगी भर के लिए अपाहिज हुए हैं। इस अवधि में कुल 856 एक्सिडेंट के मामले सामने आए हैं। इस साल अब तक शिमला जिले में सबसे ज्यादा हादसे हुए हैं।

 इन शुरुआती 6 महीनों में शिमला में 155, कांगड़ा में 149, मंडी में 115, सिरमौर में 77, ऊना में 69, बद्दी-बरोटीवाला और नालागढ़ क्षेत्र में 64, कुल्लू जिले में 52, सोलन में 47, बिलासपुर में 45, हमीरपुर में 38, चंबा में 33, किन्नौर में 8 और लाहौल-स्पीति जिले में 4 हादसे हुए हैं। साल 2019 में कुल 2897 सड़क हादसे हुए, जिनमें 1199 लोग काल के गाल में समा गए और 4737 घायल हुए। 2018 में 3119 हादसों में 1168 लोगों की जान गई और 5444 चोटिल हुए हैं। साल 2017 में भी कुल 3119 दुर्घटनाएं हुईं जिसमें 1176 लोग मौत का शिकार हुए और घायलों की संख्या 5338 थी। साल 2016 की बात करें तो कुल 3156 हादसों में 1163 लोगों की मौत हुई और 5587 लोग घायल हुए। इन चार सालों का औसत देखें तो हर साल 1150 से ज्यादा लोगों की जान गई है और हर साल करीब 5 हजार लोग घायल हुए हैं। लॉकडाउन के दौरान जो हादसे हुए हैं, उनमें ओवर स्पीड मुख्य कारण निकल कर आया है। पहाड़ी क्षेत्रों की अपेक्षा हाईवे पर वाहनों के टकराने के ज्यादा मामले हैं। सड़कों की खस्ता हालत, ब्लैक स्पॉट, पैराफिट का न होना भी एक बड़ी वजह है। देवभूमि में हर साल होने वाले हादसों के अध्ययन से यही कहा जा सकता है कि हिमाचल में सड़क दुर्घटना एक महामारी है। कोरोना की तरह इसके खिलाफ भी लड़ाई लड़नी जरूरी है। सरकार को सड़क हादसों को  रोकने के लिए कड़े नियम और कानून बनाने की जरूरत है। जो लोग यातायात के नियमों का पालन नहीं करते हैं, उन्हें समझाना असंभव है। अतः सरकार को चाहिए कि ट्रैफिक से जुड़े कानून बनाए और उन्हें तोड़ने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।


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