पुस्तक समीक्षा : अनुभवों की अभिव्यक्ति है ‘अम्मा बोली’

By: Apr 25th, 2021 12:04 am

प्रख्यात कवि राजेंद्र कृष्ण ने अपनी ‘अम्मा’ की स्मृतियों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए अपने काव्य संग्रह ‘अम्मा बोली’ में शब्दों की पावन माला अर्पित की है। इस काव्य संग्रह में कई कविताएं संकलित हैं जो अनुभवों का खजाना लगती हैं। कविताओं के माध्यम से कवि ने मानव जीवन से जुड़े अनेक प्रश्नों का जवाब देने की कोशिश की है। सेतु प्रकाशन, पिट्सबर्ग (अमरीका) से प्रकाशित इस काव्य संग्रह की भाषा सरल है। राजेंद्र कृष्ण की मूल पुस्तक ‘अम्माज गॉस्पेल’ के इस हिंदी अनुवाद ‘अम्मा बोली’ में अनुवादक की भूमिका गीति त्यागी ने निभाई है। कोरोना महामारी में फैली अनिश्चितता व त्रासदी में अपनी दादी का आह्वान करने पर जो प्रतिक्रिया राजेंद्र कृष्ण को प्राप्त हुई, उसे इस पुस्तक में उन्होंने कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक में कवि ने अपनी अम्मा (दादी) के संदेशों को जिस प्रकार अभिव्यक्त किया है, वह अनुकरणीय है। कहीं अम्मा के उपदेश की मौलिक ऊर्जा स्वतः अभिव्यक्त हुई है और कहीं वह कवि और अम्मा की प्रश्नोत्तरी के रूप में है। भाषा और शिल्प के सौंदर्य के साथ-साथ इन रचनाओं का मूल भाव जीवन (और शायद उससे परे भी) के मूल्यों का बोध है। ये रचनाएं वैदिक काल से अम्मा के काल तक संकलित भारतीय विवेक का संकलन प्रतीत होती हैं। आशा है पाठकों को यह काव्य संग्रह पसंद आएगा।

-फीचर डेस्क

सामाजिक विसंगतियों को मुखर करता कहानी संग्रह

‘कान्ति की तपस्या’ कहानीकार शक्ति चंद राणा ‘शक्ति’ द्वारा लिखित आठ हिंदी कहानियों का प्रथम कहानी संग्रह है जिसमें उन्होंने लोक जीवन से लेकर शहरी परिवेश को अत्यंत सरल एवं सहज भाव से स्पर्श करने का सफल प्रयास किया है। और न केवल छुआ है, कहीं-कहीं उन कहानियों के कथानक के दुष्प्रभाव से सबक ग्रहण करने व समस्या के समाधान तक जाने का प्रयास किया है। पुस्तक की पहली कहानी कान्ति की तपस्या पुस्तक का शीर्षक कहानी के अनुरूप ही बन पड़ा है जिसमें एक मां के कांधों पर अपने इकलौते बेटे के जीवन को विषम परिस्थितियों में संवारने की चुनौती उत्पन्न होती है जिसे वह अपने संघर्षपूर्ण जीवन में सफलता से सामना करते अनेकोंनेक माताओं की श्रेणी में आ खड़ी होती है। कान्ति का किरदार अनुकरणीय बन जाता है।

दहेज में संस्कार कहानी में कहानीकार ने बेटियों को मायके से मिलने वाले दहेज की जगह उसे अपने संग उच्च स्तर के संस्कारों को लेकर आने के महत्व को उद्घाटित किया है जिससे उनके वैवाहिक जीवन को स्वर्ग तुल्य बनाने की अहम भूमिका होती है। यथार्थ का सामना कहानी न्यूक्लियर फैमिली की अवधारणा से ग्रसित एक अच्छी पढ़ी-लिखी सुशिक्षित युवती की है जो शादी के बाद अपने सास-ससुर को साथ न रखकर अकेले रहने को अधिमान देती है। लेकिन जब वही स्थिति उसके अपने माता-पिता के साथ आ खड़ी होती है तो उसका यथार्थ से सामना होने पर निर्णय बदलता है। मानवीय संवेदनाओं का अभाव दोनों कहानियों में कहानीकार द्वारा चित्रित करने का सफल प्रयास हुआ है। सेवा का मेवा ग्रामीण अंचल से उठाई गई सरल सहज कहानी है जो आज के विपरीत घर में बुज़ुर्गों को कबाड़ का सामान न मान पूरी मानवीय संवेदना, सेवा भाव को व्यक्त करती है।

रजनीगंधा का किरदार और पुलिस अधिकारी सूर्य किरण के माध्यम से बेलगाम बलात्कारियों को रास्ते पर लाने के लिए कहानीकार ने एक सरल उपाय ऐसे तत्वों के मन में दहशत पैदा कर लॉ एंड आर्डर को बनाए रखने की ओर इशारा किया है ताकि आए दिन होने वाली रेप जैसी घटनाओं को रोका जा सके। स्वर्ण कन्या बेटियों को बचाने और इस आपराधिक मानसिकता का शीघ्र समाधान ढूंढने की ओर कलमकार का प्रयास है जिसके लिए रूढि़वादी विचारधारा व अशिक्षा जि़म्मेदार है। कुल मिलाकर शक्ति चंद राणा द्वारा लिखे इस कहानी संग्रह की सभी आठ कहानियां एक सफल प्रयास भी है और ऐसा नहीं लगता कि यह कलमकार का पहला प्रयास है, अपितु ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक ने इसमें व्यक्त कथानक स्वयं जिये हैं। उन्होंने कुछ सामाजिक समस्याओं व विसंगतियों को इस कहानी संग्रह के माध्यम से मुखर करने का सफल प्रयास किया है। 96 पृष्ठों में प्रकाशित इस पुस्तक की कीमत 250 रुपए है।

-कमलेश सूद, साहित्यकार, पालमपुर


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