अंग्रेजी की उपेक्षा व्यावहारिक नहीं
-रूप सिंह नेगी, सोलन
खबरों की मानें तो प्रदेश सरकार प्रदेश में एक संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना का मन बना चुकी है और उचित जगह में जमीन की खोज में है। गौरतलब है कि सरकार ने अंग्रेजी को दूसरे स्थान से हटा कर हिंदी के बाद संस्कृत को दूसरी भाषा का स्थान दिया है। प्रदेश में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना का क्या औचित्य रहता है, यह तो सरकार ही जाने, क्योंकि यह न तो बोल-चाल की भाषा है और न ही बनने की कोई संभावना है।
यह सही है कि संस्कृत भाषा का पुराने समय में अहम स्थान रहा था, लेकिन विश्व भर में इस्तेमाल होने वाली अंग्रेजी भाषा को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अतः पहले की तरह अंग्रेज़ी भाषा को हिंदी के बाद दूसरे स्थान पर और संस्कृत को तीसरी भाषा का दर्जा देना उचित रहेगा। संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना करने के बजाय हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना क्यों न हो?
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