देव बशनीरा के दर लक्ष्मी-ब्रह्मा

By: Apr 14th, 2021 12:55 am

देवी-देवताओं ने सैंज घाटी की रक्षा को किया देव मंथन, रस्सी से खींचकर चोटी पर पहुंचाए आराध्य

निजी संवाददाता — सैंज
सैंज घाटी के कनौन में बैसाखी के मेले मेें देव परंपरा की अनूठी मिसाल देखने को मिली। ऊंची चोटी पर स्थित बनशीरा को जहां वनों की रक्षा का जिमा है वहीं सैंज घाटी की जनता की रक्षा का जिम्मा भी ऋषि ब्रह्मा ने बनशीरा के हाथों में दिया है। क्षेत्र की रक्षा व प्राकृतिक आपदओं को टालने के लिए मंगलवार को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा व भगवती ने योद्धा देवता बनशीरा के साथ देव मंथन किया। घाटी के आराध्य देव ऋषि ब्रह्मा व देवी भगवती के रथों को हजारों श्रद्धालुओं ने रस्सी से खींच कर ऊंची चोटी पर स्थित बनशीरा देवता के मंदिर पर पहुंचाया। अपने अंगरक्षक देवता बनशीरा के साथ देवी भगवती व ऋ षि ब्रह्मा ने वर्ष भर में घटने वाली प्राकृतिक अपदाओं के बारे में मथन कर भविष्यवाणी कर हारियनों को सचेत किया। उल्लेखनीय है कि मंगलवार को देवता ब्रह्मा ऋषि के रथ को पूरे लाव-लशकर के साथ मंदिर से बाहर निकाला और देव खेल का निर्वाह कर देव हारियानों ने देवता के स्वर्ण रथ को रस्सी से खींच कर साथ लगते गांव कछैणी में देवी भगवती के मंदिर पहुंचाया। कछियानी मंदिर में ऋषि ब्रह्मा व भगवती महामाई का मिलन हुआ और औ दर्शन के लिए आए हुए सैकड़ों लोगों ने माता भगवती महामाई का आशीर्वाद लिया। बता दें कि आज के दिन महामाई भगवती का जन्म दिवस भी होता है और ऐसे में भूत, प्रेत, पिशाच व अन्य बुरी आत्माओं से प्रभावित महिलाओं का देवी देव शक्ति से इलाज कर स्वस्थ करती हैं, वही सैकड़ों महिलाओं ने पुत्र प्राप्ति के लिए भी माता भगवती के दरबार में हाजिरी लगाई। मान्यता है कि माता लक्ष्मी पुत्र प्राप्ति का भी वरदान देती हैं और भूत-प्रेत की नजर से प्रभावित महिलाओं पुरुषों का भी देव कार्य विधि से इलाज कर स्वस्थ करवाती हैं। देव मिलन कर पुन: देवी-देवता के रथ को रस्सी खींचते हुए हजारों श्रद्धालुओं ने ऊंची चोटी पर बनशीरा देवता के मंदिर पहुंचाया। वहां पर देव हारियानों ने जंगल की लचकदार लकडिय़ों से एक गोल रिंग बनाया, जिसे स्थानीय भाषा में चैचा कहते हैं। बाद में देव आज्ञानुसार देवी व देवता के हारियन आपस में रस्साकशी की। वहीं, अंत में इसे एक ही व्यक्ति सैकड़ों लोगों में से छुड़ा कर ले जाता है। मान्यता है कि बनशीरा देवता उस व्यक्ति को पुत्र वरदान देता है। देव प्रक्रिया संपंन होने के बाद देव हारियानों ने कुल्लवी नाटी का आयोजन किया।

बैसाखी मनाई
बंजार। सराज धाटी की कई पंचायतों में बैशाख मास के आरंभ होते ही बैसाखी मेले का आयोजन किया गया। हर वर्ष बैसाखी मेले के अवसर पर घाटी के देवी-देवता देवालयों से वाद्य यंत्रों की थाप पर सुंदर लाव-लशकर में सजा देवता की सौह अर्थात मैदान में उपस्थित करके मेलों का आयोजन किया जाता है। कारकूनों का कहना है कि यह मेले स्थानीय देवी-देवताओं के लिए समर्पित होते हैं। इस मौके पर श्रद्धालु अपने-अपने आराध्य देव के सामने नतमस्तक होकर अपनी-अपनी मुरादों को मांगते हैं। अंत में देवी-देवता की आज्ञा पाकर देवी-देवता के गूर को खेल आती है। वह भविष्य में होने वाली घटनाओं को बता कर लोगों को अवगत करते हैं।


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