शिव महापुराण

By: Apr 17th, 2021 12:12 am

गतांक से आगे…

मेरे और भगवान विष्णु के इस चरित्र का जो मनुष्य प्रातः काल ध्यान करता है वह इस लोक में बड़े सुख और ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। मैं और भगवान विष्णु सहस्र वर्ष तक उस ज्योति पुंज का आदि व अंत खोजते रहे परंतु पार नहीं पा सके। हम दोनों वापस लौट आए, किंतु जिस स्थान से चले थे, उसको भी न पा सके। उस स्थान को खोजने में भी हमको सहस्रों वर्ष लग गए। तब मैंने सोचा कि मुझको उत्पन्न करने वाला कोई और ही शक्तिमान पुरुष है।

यह विचार उठते ही हम उस ज्योति पुंज के पास आ गए और मूर्खता के कारण उत्पन्न हुई शत्रुता का त्याग कर दिया। उसी समय आकाशवाणी हुई तुम दोनों ही योग करो। आकाशवाणी सुनकर हम दोनों ही योग करने लगे और दिव्य ज्योति को संबोधित करके प्रार्थना की कि हे प्रभु! आप शीघ्र ही हमें अपना वास्तविक रूप का दर्शन दीजिए। हमारी इस प्रार्थना को सुनने के पश्चात भगवान शिव की गंभीर वाणी सुनाई दी ॐ! ॐ तब उस शब्द को सुनकर मैंने यह विचार किया कि यह क्या है? उसी समय श्रीविष्णु जी ने उस ज्योतिपुंज के दक्षिण भाग में  सनातन आद्यवर्ण आकार को और उसके उत्तर भाग उकार को देखा। फिर मध्य में और अंत में ॐ को देखा। यह सब सूर्य मंडल और चंद्र मंडल की भांति स्थित थे।

जिनके आदि और अंत का कुछ भी पता न लगता था। वहां सत्यआनंद और परब्रह्म परायण का दृष्टिगोचर हो रहा था। अब हम इस बात पर विचार कर रहे थे कि हम नीचे तथा ऊपर जाकर आदि और अंत का पता लगाएं कि वहां पर एक परम ऋषि का अविर्भाव हो गया। उन परम ऋषि से विष्णु जी को पता चला कि ‘अकार,  उकार, मकार, नाद और बिंदु का अर्थ होता है कि प्रथम अक्षर ज्योति है। दूसरे अक्षर उकार ज्योति का मध्य है। अर्थ मात्रा नाद ज्योति का मस्तक और बिंदु लिंग की ज्योति है। इसके अतिरिक्त यह अर्थ भी होते हैं कि अकार से ऋग्वेद, उकार से यजुर्वेद और मकार से सामवेद और नाद से अथर्ववेद और बिंदु से ब्रह्म विद्या का स्वरूप। हर एक वेद ने दस-दस अर्थों से भगवान सदाशिव की स्तुति की है। ऋग्वेद रजोगुणी है, वह लिंग का दक्षिण वाला भाग है।

यजुर्वेद सत्वगुणी और लिंग का मध्य भाग है और सगुण अथर्ववेद का कहना है कि श्रीसदाशिव कुछ नहीं करते, जो कुछ भी होता है वह शक्ति की इच्छा से होता है। ऋग्वेद की उपमा जाग्रत यजुर्वेद की सुपन और सामवेद की सुश्पत्वों से दी जाती है। अथर्ववेद की पूरी अवस्था मानी जाती है इसके जानने के पश्चात जप करने से ही मोक्ष की प्राति होती है।                          – क्रमशः


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