फायर कर्मियों को पंजाब की तरह वेतन कब?

कम वेतन के कारण फायर कर्मियों में हीनभावना आती है, जबकि उनका कार्य बहुत ही जोखिम भरा है। मुख्यमंत्री को स्वयं इस मसले का संज्ञान लेते हुए फायर कर्मियों को पंजाब की तरह वेतन तथा भत्ते देने का निर्णय लेना चाहिए, ताकि उनका मनोबल बना रहे…

पूरे भारत में 14 से 20 अप्रैल तक आग की रोकथाम, अग्नि सुरक्षा के उपाय एवं आग से होने वाले जानी व माली नुकसान को कम करने की जनसाधारण में जानकारी के लिए देश भर के अग्निशमन विभाग अग्निशमन जागरूकता सप्ताह के रूप में चलाते हैं ताकि प्रति वर्ष अरबों की संपत्ति को जलने से बचाया जा सके तथा आग का शिकार होने वाले लोगों व वन्य प्राणियों को बचाया जा सके। आग से उत्पन्न हुई अत्यधिक कार्बन, मोनो आक्साइड व अन्य जहरीली गैसों को रोका जा सके तथा देश का पर्यावरण समृद्ध बना रहे। यही नहीं, इसके जरिए देश के हर नागरिक को आग की रोकथाम की जानकारी देकर उसे इस सामाजिक जिम्मेदारी के लिए तैयार किया जाता है। यह रोचक बात है कि मौजूदा हिमाचल का शिमला शहर भारत का दूसरा शहर था जहां कोलकाता के बाद फायर सर्विस का आगाज हुआ। कोलकाता में 1881 में फायर सर्विस का उद्गम हुआ, जबकि शिमला में 1897 में रिज पर बनी एक मार्किट में अचानक आग लग गई थी। उस समय शिमला शहर भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी था। शिमला शहर को ब्रिटिश सरकार ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से बनाया था। यहां एक इमारत से दूसरी इमारत की पर्याप्त दूरी थी तथा पक्की नालियों तथा वैज्ञानिक तरीके से निकास व्यवस्था भी थी। शिमला शहर को मात्र 20 हजार लोगों के रहने के लिए बनाया गया था।

सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से होने के बावजूद आग को बुझाया नहीं जा सका। पूरी मार्किट राख के ढेर में बदल गई थी। आग को बुझाने के प्रयास में वायसराय के तीन सुरक्षा कर्मी भी आग में झुलस कर दम तोड़ गए। इसी घटना को अति गंभीरता से लेते हुए ब्रिटिश सरकार ने इंगलैंड की पद्धति पर शिमला शहर में हाईड्रैंट सिस्टम, आग बुझाने की प्रणाली को विकसित करने की ठानी। वायसराय के विशेष सुरक्षा कर्मी कैप्टन ब्रुक को इंगलैंड में आग बुझाने का प्रशिक्षण दिया गया, इंगलैंड से सारा सिस्टम लाया गया व शिमला शहर में 308 हाईड्रैंट लगाए गए जिसका सीधा संपर्क वाटर रिजर्वायर से था और वे 24 घंटे पानी से चार्ज रहते थे। यही नहीं, ब्रिटिश सरकार ने कमेटी के अधीन माल रोड पर फायर ब्रिगेड खोल दिया और उसकी दो छोटी शाखाएं छोटा शिमला व बालूगंज में खोल दीं जहां आग बुझाने के स्टीम इंजन भी रखे गए जो फायरमैनों द्वारा धक्का मारकर रेहड़ी से फायर सीन पर जाते थे। हौज व फायर के उपकरणों को ले जाने के लिए घोड़ा गाड़ी भी प्रयोग की जाने लगी। उसके बाद कुछ पुलिस स्टेशनों में पुलिस फायरमैन कांस्टेबल भी तैयार किए गए। रामपुर में पुलिस का फायर ब्रिगेड भी तैयार किया गया जो शिमला में आग दुर्घटनाओं की रोकथाम करता था। इसी तरह चंबा, सोलन व नाहन में अग्निशमन सेवाएं स्थापित करने का अपना इतिहास है। वर्ष 1972 में तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार ने प्रदेश में आग की घटनाओं की संभावनाओं को देखते हुए आत्मनिर्भर हिमाचल फायर सर्विस की स्थापना कर दी जिसमें पुलिस, म्युनिसिपल कमेटी और दूसरे जवानों को विलय कर दिया। उन्हें बढि़या वर्दी, अग्नि उपकरण तथा स्टेशन में एक-एक वाटर टैंडर उपलब्ध करवाए गए। स्टाफ को उस समय चंबा कमेटी में सबसे ज्यादा फायर स्टाफ का वेतन दिया जाता था। प्रदेश में उसी पद्धति पर वेतन दिया जाने लगा। वर्ष 1978 में पंजाब वेतन आयोग की सिफारिशें हिमाचल में भी लागू हो गईं।

 परंतु फायर सर्विस में वेतन आयोग लागू नहीं हुआ। उसके बाद 1986, 1996, 2006 में पंजाब वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं की गईं। जब-जब कर्मचारियों ने इसके बारे में आवाज उठाई तो हिमाचल के गृह विभाग और वित्त विभाग ने मामला दबा दिया कि पंजाब में विभाग कमेटियों के अधीन है और फायर कर्मियों को पंजाब का वेतन आयोग लागू नहीं हो सकता। बड़ी हैरत की बात है कि पंजाब की कमेटियों के कर्मचारियों का वेतन भी पंजाब सरकार का वेतन आयोग तय  करता है और पंजाब की कमेटियों का तय वेतन हिमाचल की कमेटियों के दूसरे कर्मचारियों को दिया जाता है जिसमें कोई भी कैटेगरी हो। तो वेतन हिमाचल के फायर कर्मियों पर लागू क्यों नहीं किया गया? हिमाचल के कर्मचारियों को पंजाब वेतन आयोग पर ही वेतन व भत्ते मिलते हैं। कमेटियों के मिनिस्ट्रियल कर्मचारियों, इंजीनियर्स तथा दूसरे कर्मचारियों का वेतन दूसरे सरकारी विभागों के साथ बराबर है तो फायर कर्मियों के साथ अन्याय क्यों? यूं तो प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रदेश के गृह मंत्री भी हैं और पुलिस, जेल, फायर ब्रिगेड, होम गार्ड्स, प्रोसीक्यूशन विभाग, सब गृह  विभाग के अधीन आता है। परंतु फायर ब्रिगेड को छोड़कर सबको पंजाब वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार वेतन मिलता है तो फायर कर्मचारियों से यह अन्याय क्यों? जब समय-समय पर इसके बारे में जानकारी ली गई तो यह तर्क दिया गया कि अग्निशमन विभाग के स्केल प्रदेश के पुलिस, होम गार्ड्स के विभाग से बराबर किए गए हैं।

 जब इस विषय पर आरटीआई ली गई तो गृह विभाग ने साफ मना किया कि पुलिस के आरएमपी रूल और हैं और ट्रेनिंग और है तथा पुलिस के स्केल फायर सर्विस को नहीं दिए जा सकते। होम गार्ड्स में मात्र दो कैटेगरी जिसमें सब फायर आफिसर तथा स्टेशन फायर आफिसर हैं, जिनका स्केल होम गार्ड्स के प्लाटून कमांडर तथा कंपनी कमांडर के बराबर है। शेष डिवीजनल फायर आफिसर तथा चीफ फायर आफिसर का स्केल होम गार्ड्स की किसी कैटेगरी के साथ बराबर नहीं किया गया। कुल मिलाकर विभाग के कर्मचारियों को न पंजाब की फायर सर्विस का स्केल, न पुलिस का स्केल, न होम गार्ड्स का स्केल है, जबकि फायर सर्विस के कर्मचारियों का नेचर आफ वर्क, राष्ट्रीय अग्निशमन विद्यालय से परिशिक्षण एक है। यहां दूसरे प्रदेशों के अग्निशमन कर्मचारियों से कम वेतन दिया जाता है, जबकि आग में काम करने से धुएं और जहरीली गैसों के दुष्प्रभावों से प्रदेश के फायर कर्मियों की लंग कैंसर व किडनी फेलर से अधिक मौते हुई हैं जिसके कई उदाहरण हैं। इस विषय पर कर्मचारी यूनियन तथा फायर एसोसिएशन द्वारा दायर की गई याचिकाएं उच्च न्यायालय के विचाराधीन हैं। कम वेतन के कारण फायर कर्मियों में हीनभावना आती है, जबकि उनका कार्य बहुत ही जोखिम भरा है। मुख्यमंत्री को स्वयं इस मसले का संज्ञान लेते हुए फायर कर्मियों को पंजाब की तरह वेतन तथा भत्ते देने का निर्णय लेना चाहिए, ताकि उनका मनोबल बना रहे।


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