महामारी के बीच कालाबाजारी पर रोक लगे

आज यदि भारत का हर व्यक्ति कालाबाज़ारी और जमाखोरी छोड़ दिल से अपने देशवासियों की कोरोना से जान बचाने  में अपना सहयोग देगा तो मात्र 2 से 3 महीनों में पूरा देश कोरोना मुक्त हो जाएगा…

कोरोना महामारी के दूसरे कहर ने पूरे देश को झकझोर दिया है। हर तरफ  डर का साया फैला हुआ है। आदमी आदमी से दूर हो गया है। इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि यहां जीने के लिए भी सांसें खरीदनी पड़ रही हैं। हमारे इस देश के हर शहर व कस्बे में ऑक्सीजन की भी कमी का शोरोगुल मचा है। चारों तरफ  ऑक्सीजन के लिए मारामारी इतनी बढ़ गई है कि हर कोई सरकार को सवालों के घेरे में लेना चाहता है। देश में ऑक्सीजन की समस्या को लेकर अपने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी भारत को इस किल्लत को लेकर खरी-खोटी सुनाई जा रही है। पहले जहां वैक्सीन को लेकर भारत की हर जगह तारीफ  हो रही थी, वहीं आज न्यूयॉर्क टाइम्स में भी ऑक्सीजन की कमी से हो रही भारतीयों की दयनीय दशा पूरे विश्व को दिखाई जा रही है जिससे सरकार ही नहीं, अपितु पूरे देश और देशवासियों को विदेशी जिल्लत का सामना करना पड़ रहा है। हमारे देश के राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश या हिमाचल, सभी को भीतर से झकझोरने वाली खबरें मिल रही हैं। इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने भी साफ-साफ शब्दों में कहा कि भारत में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है और प्रत्येक राज्य को ऑक्सीजन की भरपूर पूर्ति की जा रही है। इन सारी स्थितियों और परिस्थितियों के अंतर्गत सवाल यह उठता है कि अब सरकार पर विश्वास किया जाए तो समस्या कहां से उत्पन्न हो रही है? इसका उत्तर जानने के लिए कुछ परिचित व्यक्तियों के कुछ अनुभव आपके समक्ष रखूंगी जिसके बाद मुझे विश्वास है कि आपकी अंतरात्मा ही आपको सब सवालों के जवाब दे देगी।

 अभी जनवरी में एक परिचित बड़े व्यवसायी की पत्नी को कोरोना हो गया जिनके फेफड़ों में ज्यादा संक्रमण की वजह से उनकी जान चली गई। उनके सभी मित्रों ने उनकी पत्नी की मृत्यु से प्रभावित होकर ऑक्सीजन सिलेंडर अपने घर रख लिए ताकि भविष्य में ऐसी समस्या उनके साथ पेश न आए। यह एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक बड़े तबके की बात है जिन्होंने पैसे के दम पर 1-2 नहीं, बल्कि 4-5 ऑक्सीजन सिलेंडर अपने घर पर खरीद कर रख लिए हैं। सोचने का विषय यह है कि ऐसा अगर पांच से आठ लाख लोगों ने भी किया होगा तो कितनी जमाखोरी हो गई होगी? ऐसे में ऑक्सीजन सिलेंडर के उपलब्ध न होने पर केवल सरकार जिम्मेदार है या इन व्यक्तियों का स्वार्थ भी जिम्मेदार है जिन्हें केवल अपनी और अपने परिवार की चिंता है। यह सोचना सहज़ भी है क्योंकि पहले लॉकडाउन में भी इन लोगों ने केवल सालभर का राशन घर में भर कर गरीब को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया था। दूसरा अनुभव एक मित्र ने साझा किया था जिसका कोई परिचित प्राइवेट अस्पताल में भर्ती था क्योंकि सरकारी अस्पताल में जगह नहीं थी। उसे भी ऑक्सीजन की जरूरत थी और साथ में डॉक्टर ने किसी टीके का नाम लिखा था जिनमें से दोनों चीज़ें अस्पताल में उपलब्ध नहीं थी। एक तरफ  समय के साथ-साथ व्यक्ति की तबीयत ख़राब हो रही है जिससे उस व्यक्ति के परिवार के साथ-साथ वहां के मरीज़ भी घबराने शुरू हो गए हैं। जो ठीक होने की कगार पर है, वह डर कर ही जान गंवा रहा है। ऐसी स्थिति में अस्पताल का ही कोई कर्मचारी मरीज के भाई के पास आकर उसे विश्वास दिलाता है कि वह ये दोनों चीज़ें उन्हें उपलब्ध करवा सकता है, पर कीमत असली कीमत से कई गुना ज्यादा होगी।

 एक तरफ  मौत की तरफ  बढ़ता भाई और एक तरफ यह कालाबाजारी, आखिर एक आम आदमी किसे चुनेगा। 1200 रुपए का टीका वह व्यक्ति 30 हजार रुपए में उपलब्ध करवाता है। एक ऑक्सीजन सिलेंडर 65 हजार रुपए में। अब एक प्रश्न जो मैं आप सबसे पूछना चाहती हूं, उस व्यक्ति के पास ऑक्सीजन सिलेंडर और वह इंजेक्शन कहां से आया जो अस्पताल प्रशासन के पास भी उपलब्ध नहीं है? क्या इसके पीछे केवल वो व्यक्ति है या हर वो डॉक्टर, हर वो केमिस्ट या हर वो अस्पताल प्रशासन भी है जो इस महामारी में लोगों की जान खरीदने और बेचने का खेल खेलने में लगे हैं। क्या ये व्यक्तिगत स्वार्थ भी इन व्यक्तियों की मौत का जिम्मेदार नहीं? हमारे देश में अक्सर कहा जाता है ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत।।’ और एक तरफ  ये स्वार्थ सिद्धि हेतु जमाखोरी और कालाबाजारी! हम भारतीयों की सबसे बड़ी समस्या ये दोगला रवैया है। यहां हर व्यक्ति चाहता तो है कि घर-घर से भगतसिंह निकले, पर मन ही मन उम्मीद की जाती है कि वो भगतसिंह अपने नहीं, पड़ोसी के घर से निकले। इसी तरह जब बात खुद पर या अपने परिवार पर आती है तो लोगों को बड़ी संख्या में ऑक्सीजन सिलेंडर की जमाखोरी करना गलत नहीं लगता, पर जब बात दूसरे के घर की हो तो इसे सरकार का कमजोर रवैया घोषित कर दिया जाता है और जम कर सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना शुरू हो जाती है। पिछले एक साल से बहुत से व्यक्तियों को करोड़ों दान करते देखा, समाजसेवा करते देखा और कोरोना को ठीक होते हुए भी देखा।

 इस समय तो इस महामारी कोरोना ने  इतना भयानक रूप धारण कर लिया है कि लोग अपनों से ही डर रहे हैं, लेकिन इस बीमारी का पूरा लाभ निजी अस्पतालों के कर्मचारी, जमाखोरी करने वाले केमिस्ट या ये दोगले लोग ले रहे हैं जिन्होंने अपना स्वार्थ तो सिद्ध कर लिया, पर अपने हर देशवासी भाई को संसाधनों के अभाव का नाटक कर मरने के लिए छोड़ दिया है। इससे साफ  होता है कि इन व्यक्तियों की वजह से कोरोना और ज्यादा विशाल रूप धारण कर रहा है। आज यदि भारत का हर व्यक्ति कालाबाज़ारी और जमाखोरी छोड़ दिल से अपने देशवासियों की कोरोना से जान बचाने  में अपना सहयोग देगा तो मैं दावे से कह सकती हूं कि मात्र 2 से 3 महीनों में पूरा देश कोरोना मुक्त हो जाएगा और हम सभी अपने खुशहाल जीवन में फिर से लौट आएंगे। आज के समय में आपकी ईमानदारी ही देश के लिए सबसे बड़ी समाजसेवा होगी। मैं उन सब कालाबाजारियों व जमाखोरों से कहना चाहती हूं कि आप कोई दान न करें, किसी की सहायता भी न करें, पर आपसे निवेदन है कि देश को बचाने और यहां की गरीब जनता को इस बीमारी से मुक्त करवाने के लिए जो उपकरण, जो दवाई और ऑक्सीजन जिस पर आम व्यक्ति से लेकर हर तबके के व्यक्ति का हक है, उन्हें बिना किसी स्वार्थ के उन तक पहुंचने दें। इस संकट की घड़ी में यही आपका सबसे बड़ा योगदान होगा। इसी के साथ सभी राजनीतिक दलों को अपने स्वार्थ किनारे रखकर जनता के मन से संसाधनों की कमी का डर निकालने व कालाबाजारी रोकने की कोशिश करनी चाहिए।

साक्षी शर्मा

लेखिका शिमला से हैं


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