पुरस्कृत साहित्यकारों की रचनाधर्मिता

By: May 2nd, 2021 12:04 am

डेंजर जोन : मेरी रचनात्मकता

मेरे द्वारा लिखित उपन्यास ‘डेंजर ज़ोन’ को हि. प्र. कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी, शिमला द्वारा 2015 के लिए कहानी, नाटक व उपन्यास विधा में पुरस्कार की घोषणा हुई है। किसी कृति को पुरस्कार की घोषणा होने से रचनाकार को प्रतीत होता है कि उसकी कृति का संज्ञान लिया गया है और उसे श्रेष्ठता के स्तर पर आंका गया है। इस उपन्यास अथवा कृति की संरचना में आठ वर्ष का समय लगा। कितनी बार लिखा, संशोधित किया, फिर लिखा। बीच में काट-छांट करते भी समय बीता। यहां तक कि अंतिम प्रूफ आने के बाद भी बीच में कुछ न कुछ जमा-घटाव होता रहा। फिर भी ऐसा डर कि क्या पता यह जो लिखा, जिसके बारे में लिखा, वह समाज की आंखों में खटकेगा भी कि नहीं। क्या यह वही यथार्थ है जो मैंने समझा और लिखा कि कहीं कुछ उसमें से छूट गया है। आज यदि कहूं तो बहुत कुछ अभी आगे लिखने को रह गया है। यह तो केवल एक भाग ही हुआ। डेंजर ज़ोन।

इस उपन्यास का यह शीर्षक पहले नहीं था। कुछ और था, क्योंकि कहानी तो एक संगीतकार दंपती के घर से आरंभ होती है। उनका मिलना और उनके संबंधों के बीच किसी और का आ जाना। यह सामान्य सी बात। शायद यह भावना भी रही कि संगीतकार और साहित्यकार नौ रसों के ज्ञाता होते हैं। संगीतकार तो और भी संवेदनशील। वह गायन हो या वादन। वे उन रसों से गुजरते कब निरस हो गए, पता ही नहीं चला। उनकी प्रेम विवाह की वह गांठ कब खुल गई, मालूम ही नहीं पड़ा। जीवन प्रवाह में दायित्व-बोझ को उठाते कब पत्नी धार्मिक बन गई और पति कब विपरीत दिशा में चला गया, मालूम नहीं पड़ा। बस इतना हुआ कि घर के स्वामी बाहर और बाहर के स्वामी (ये तथाकथित पीत अथवा भगवा वस्त्रधारी) भीतर जगह पा गए, यह भी समझ ही नहीं आया। जीवन दायित्व के निर्वाह में मिलने वाले वेतन का तोल भी उच्च-नीच करने लगा। और ऐसा लगा कि प्रेम कहीं खतरे में चला गया है। उपन्यास कथा इसी के साथ खत्म भी होनी चाहिए थी, परंतु कथानक की बांहें मुझे खींचती रही और नए आयाम देती रही। इस उपन्यास में कई मोड़ हैं। अंत में यही कहना चाहूंगा कि मैंने कतिपय आलोचकों (नाम नहीं लेना चाहता) को अपनी कुछ पुस्तकें भेजी भी थीं। परंतु वहां से पावती भी नहीं आई। मेरी कृति को पुरस्कार मिला, इससे खुश होना तो स्वाभाविक है। उम्र के इस पड़ाव पर आकर अति उल्लासित होना जंचता भी नहीं। परंतु इस बात का पक्षधर हूं कि अकादमी और भाषा विभाग द्वारा दिए जा रहे पुरस्कारों की यह परंपरा जारी रहनी चाहिए।


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