सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

By: Jul 24th, 2021 12:21 am

भगवान शिव के देशभर में असंख्य मंदिर हैं। इन सब में 12 ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्त्व है। सोमनाथ को प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। श्रावण में इसके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की खूब भीड़ लगती है। यह ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के सौराष्ट्र नगर में समुद्र तट के समीप स्थित है।

सोमनाथ का शाब्दिक अर्थ है सोम के देवता, जिसमें सोम का मतलब चंद्रमा से है। मान्यता है कि यह ज्योतिर्लिंग हर युग में यहां स्थित रहा है। इसके दर्शन मात्र से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसलिए विधि-विधान से इसकी पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याओं का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। लेकिन चंद्रदेव इन सत्ताइस पत्नियों में सबसे अधिक प्रेम रोहिणी से करते थे। जिससे उनकी अन्य पत्नियां नाराज और उदास रहती थीं। चंद्रमा के इस रवैये से परेशान होकर सभी ने अपने पिता दक्ष से शिकायत कर दी। राजा दक्ष ने चंद्रमा को हर तरह से समझाया, लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि चंद्रदेव रोहिणी से और अधिक प्रेम करने लगे थे। जिसकी वजह से राजा दक्ष ने चंद्रमा को क्षयग्रस्त हो जाने का श्राप दे दिया।

चंद्रदेव के क्षयग्रस्त होने से पृथ्वी का सारा कार्य प्रभावित होने लगा। हर जगह त्राहि-त्राहि का माहौल हो गया था। चंद्रमा अपने इस रोग से दुखी रहने लगे थे। इस समस्या से निपटने के लिए सभी देव और ऋषिगण उनके पिता ब्रह्माजी के पास गए। समस्या को जानकर ब्रह्माजी ने कहा कि चंद्रमा को मृत्युंजय मंत्र का जाप करना होगा। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ही उन्हें इस संकट से बाहर निकाल सकते हैं। इसके लिए पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाना होगा। ब्रह्म के निर्देशानुसार चंद्रदेव ने शिव की आराधना की शुरुआत कर दी। कठोर तपस्या करने के अलावा 10 करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जाप किया। चंद्रदेव की इस तपस्या से भगवान शिव बेहद प्रसन्न हो गए। भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। चंद्रदेव ने कहा कि प्रभु मेरे रोग का क्या होगा? शिव ने कहा तुम शोक मत करो। तुम्हारा श्राप खत्म हो जाएगा, लेकिन दक्ष के वचनों की रक्षा भी होगी। शिवजी के वरदान स्वरूप ही चंद्रमा कृष्णपक्ष में प्रतिदिन एक-एक कला क्षीण होता है और शुक्ल पक्ष में एक-एक कला बढ़ता है। इस तरह पूर्णिमा को अपने पूर्ण रूप में होता है।

श्राप मुक्त होने के बाद चंद्रदेव और देवताओं ने मिलकर मृत्युंजय भगवान से प्रार्थना की कि वो और माता पार्वती सदा के लिए प्राणियों के उद्धार के लिए यहां निवास करें। शिवजी ने प्रार्थना स्वीकार कर ली और ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वती जी के साथ यहां निवास करने लगे। इस ज्योतर्लिंग के दर्शन से जीवन में खुशहाली का आगमन होता है।


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