मातृभाषा पर संकट अपनी बोलियों के लिए…

By: Aug 1st, 2021 12:04 am

कुशल कुमार, मो.-9869244269

‘पहल’ में छपे एक लेख के अनुसार 70 साल में हलाक हुई 300 जुबानें, एक सौ छियानवे बोलियां निशाने पर हैं। सच में यह बहुत बड़ा सांस्कृतिक संकट है। दिन-प्रतिदिन छोटी होती जा रही इस दुनिया में हमारे लिए अपनी मां बोलियों की भाषायी विरासत को सहेजना मुश्किल होता जा रहा है। पिछली सदी तक हम सबके पास अपनी-अपनी अलग स्वतंत्र दुनिया होती थी और उस दुनिया के पास और कुछ हो न हो, अपनी एक बोली-भाषा जरूर होती थी। अब एक होने के लिए मरी जा रही इस दुनिया में हम इतनी भाषाओं का क्या करें। आचार डालें। जहां तक भाषाओं की बात है, हमारे बोलने, सीखने से मरने तक भाषाएं हमारे साथ रहती हैं।

जिस तरह हमारी सांसें रुकती हैं और हम मर जाते हैं, उसी तरह जब हम हमारी भाषाओं में जीना छोड़ देते हैं तो उनकी भी सांसें रुक जाती हैं और वे भी मर जाती हैं। एक भाषा जो हमें अपनी मां के दूध के साथ मिलती है, उसे मातृभाषा कहा जाता है। आज के समय में मातृभाषा या अपनी भाषा को जीना एक बहुत ही बड़ा ऐश्वर्य है जो हमारे जैसे हर किसी ऐरे-गैरे के बस की बात नहीं है। हमें मां के दूध के साथ हिमाचली पहाड़ी बोली मिली थी, हमने जैसे-तैसे उससे निभा ली। हमारी संतानों से निभ नहीं पा रहा है क्योंकि हमने उन्हें मां के दूध के साथ हिंदी का दूध भी जन्म से ही पिलाना आरंभ कर दिया था। अब हिंदी के दूध के साथ अंग्रेजी के शक्तिवर्धक चूर्ण वाला दूध ज्यादा पिलाया जा रहा है। ऐसे में हिंदी भी अटक-अटक कर जी रही है, अंग्रेजी के तड़के के बिना हिंदी के अखबार तक नहीं निकल पा रहे हैं। हिंदी के पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी के बिना बात पूरी नहीं कह पाते हैं, उन्हें अंग्रेजी का सहारा लेना ही पड़ता है। अब तो प्रसार और मनोरंजन माध्यमों ने अंग्रेजी के इतने शब्द पिला दिए हैं कि कोई भी औसत भारतीय अंग्रेजी शब्दों के बिना इस देश की कोई भी भाषा नहीं बोल पाता है। एक यूट्यूबर देवदत पटनायक से बातचीत कर रहा था। मेरा दिश-दिश देट-देट है। मेरा और है के बीच पूरे भारी-भारी अंग्रेजी शब्द, वह बेचारा चाह कर भी हिंदी नहीं बोल पा रहा था। हालांकि पटनायक जी बिना किसी दूसरी भाषा की बैसाखी के सादी हिंदी में ही बोल रहे थे।

हम सबने बचपन में बिल्लियों और बंदर की कहानी पढ़ी है, जिसमें दो बिल्लियां अपनी रोटी का बंटवारा करने बंदर के पास जाती हैं। बंदर रोटी के दो टुकड़े करता है, उसे एक टुकड़ा बड़ा लगता है तो उससे थोड़ा वह खा लेता है। फिर देखता है तो दूसरा टुकड़ा बड़ा लगता है तो उससे थोड़ा खा लेता है। अब मामला ऐसा है कि आजादी के बाद से हमारी सभी भाषाओं को अंग्रेजी का बंदर थोड़ा-थोड़ा करके खाता जा रहा है। हमारे भारतीय भाषाओं के हितचिंतकों को भी अपनी-अपनी भाषाओं की उतनी चिंता नहीं है, जितनी चिंता इस बात की रहती है कि कहीं देश की किसी दूसरी भाषा को बड़ा टुकड़ा न मिल जाए। भारत सरकार ने हमारी भाषाओं के विकास और संरक्षण के लिए एक आठवीं अनुसूची बनाई है, जिसमें इस समय हिंदी समेत 22 भाषाएं शामिल हैं और 39 भाषाओं के आवेदन विचाराधीन हैं। इसमें एक मजे की बात यह है कि अंग्रेजी इस देश की सर्वाधिक विकसित होती भाषा है, जो इस अनुसूची में नहीं है। वह 39 भाषाओं वाली प्रतीक्षा सूची में है। वैसे अंग्रेजी का दर्जा इस देश में सूचियों-अनुसूचियों से बहुत ऊंचा है।

उसे इस आडंबर की कोई जरूरत नहीं है। वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजी और शहरीकरण के चलते बोलियां मुख्यधारा से बाहर होकर सिमटती जा रही हैं। इनको बोलने और चाहने वालों को लगता है कि आठवीं अनुसूची में आने से उनकी भाषाओं को मान्यता और पहचान मिल जाएगी, जिससे सरकारी स्तर पर उपयोग होने से उनकी भाषाओं के विकास और प्रसार के द्वार खुल जाएंगे और वे अपने पूर्वजों की भाषायी विरासत को सहेज पाएंगे। इसलिए हिमाचल की पहाड़ी भाषा के साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में बोली जाने वाली बोलियों और भाषाओं को इस आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के आंदोलन चलाए जा रहे हैं। अब आठवीं अनुसूची कोई जादुई चिराग नहीं है, जिसके घिसते ही इन बोलियों-भाषाओं के सारे संकट दूर हो जाएंगे। इस मामले में यह भी देखना प्रासंगिक होगा कि जो 22 भाषाएं आठवीं अनुसूची में हैं, उनका कितना विकास हो रहा है। सामाजिक और राजनीतिक दबाव के चलते मराठी, तमिल, बंगाली आदि संपन्न भाषाओं में सरकारी काम कुछ हो रहा है, परंतु शिक्षा, सामाजिक और पारिवारिक बोलचाल में तो हिंदी सहित इन सभी की गाड़ी पीछे ही जा रही है। भाषाओं के मामले में हमारी स्थिति उस इनसान जैसी है जो पत्नी और मां के बीच बुरी तरह फंसा है। पत्नी को तो छोड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता है और मां का क्या किया जाए, समझ में नहीं आता है। अंततः मां को अपने हाल पर छोड़ कर बंदा पत्नी के साथ हो लेता है। कभी कभार जाकर मां का हाल पूछ आता है, पैसे-बीसे भेज कर अपराध बोध से मुक्त होता रहता है। पत्नी भले मां का गला घोंट दे, उसे पूरी छूट है, पर उसकी मां को दूसरा कोई कुछ नहीं बोल सकता है। वह मार डालेगा।

-क्रमशः


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