जो नीयत नेक हो तो… चिंतन के नए आयाम

By: Sep 19th, 2021 12:05 am

बल्लभ डोभाल, मो.-8826908116

यादों का जीवन है। कहते हैं कि जब कुछ नहीं रहता, तब यादें शेष रह जाती हैं। बचपन से लेकर जवानी और बुढ़ापे की यादें आखिरी दम तक आदमी का साथ देती हैं। मन को हरा-भरा रखती हैं। कितनी यादें…पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों से लेकर, मिट्टी कंकड़-पत्थर तक, आदमी का जुडऩा गांव में ही देखा है। गांव तब आड़ू-अखरोट-नींबू-नारंगी-सेब-नाशपाती और खुरमानी के पेड़ों से भरा-भरा लगता था। आसपास जंगली फलदार पेड़ों की भी कमी नहीं। बसंत की बहार जब फूल और नए पत्तों को लेकर आती तो गांव का वातावरण रंगों और खुशबुओं से महक उठता। गुलाब की पंखुडिय़ों पर ओस की बूंदें तसवीरों में देखी थी, पर मैंने उगते सूर्य की किरणों में इन बूंदों को सोना बनते देखा है। आज वैसा कुछ नहीं, सभी कुछ सिमट गया-सा लगता है। पेड़ों पर फलों का आकार छोटा पड़ गया लगता है।

लोगों का कहना है कि धरती की पैदावार घटती जा रही है, पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं, मौसमों की बहार अब बहार जैसी नहीं लगती। सभी कुछ बदलता जा रहा है। कारण जानना चाहा तो शास्त्री चाचा की याद आई, जो पहले इन्हीं गांवों में भागवद्-कथा सुनाया करते थे। पुराने राजाओं की वंश परंपरा और उनके चरित्र का बखान होता था। उस परंपरा में एक राजा ‘बेन की कथा आती है, जो बहुत कामी-क्रोधी और प्रजा पर अत्याचार करने वाला था। उसके अत्याचार के कारण धरती सिकुड़ती गई, उपज कम हो गई और अन्नकाल पड़ गया तो दुखी होकर प्रजा ने उसे सिंहासन से उतार कर उसके बेटे पृथुरश्मि को सिंहासन पर बिठा दिया। वहीं से जनतंत्र, लोकतंत्र या प्रजातंत्र की शुरुआत मानी जाती है। पृथुरश्मि जान गया कि धरती से ही जीव और जगत का जीवन है। उसने शुष्क, नीरस पड़ी धरती को जीवन दिया, उसे सुधार-संवार कर प्रजा को कृषि-कर्म के प्रति उत्साहित किया। कृषि-कर्म और पशुपालन की परंपरा राजा पृथुरश्मि के शासनकाल से ही प्रारंभ होती है। तभी से हम धरती की पूजा ‘मां के रूप में करने लगते हैं और राजा पृथु की प्रतिष्ठा में धरती ‘पृथ्वी नाम से उजागर हो आती है। किसी कुल में जब कोई महापुरुष जन्म लेता है तो कुल का नाम भी बदल जाता है। सूर्यकुल में राजा रघु के आने से सूर्यकुल रघुकुल नाम से विख्यात हो जाता है। पुराने समय में राजाओं को भगवान का अवतार मानकर उनकी भी पूजा की जाती थी। उन्हें भूपति, नृपति, महोपति, प्रजापति जैसे कई नामों से जाना जाता था। धरती से उनके आत्मीय संबंधों की कई कहानियां सुनी हैं।

इस संदर्भ में अरब देश की एक कहानी याद आती है- जहां एक राजा शिकार का पीछा करते जंगल में भटक जाता है। घने जंगल में जब उसे बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता तो घोड़े को एक पेड़ के तने से बांधकर वह पेड़ पर चढ़कर ही रात गुजार लेता है। सुबह भूख-प्यास से भटकते हुए उसे जंगल में एक अनार का बाग दिखाई देता है। बाग के अंदर जाकर वह माली से पानी मांगता है तो माली अपनी बेटी से उसे पानी देने को कहता है। बेटी फुर्ती से जाकर एक अनार का रस निकाल राजा को देती है। राजा ने रस से भरा गिलास लिया, साथ ही उसकी नजर लड़की पर पड़ी तो मन में आया… क्यों न इस खूबसूरती को साथ रखकर अपने महल की शोभा बढ़ाई जाए…। रस पीकर उसने लड़की से एक और गिलास भर लाने को कहा। लड़की रस लेने गई तो उसने माली से पूछा कि जंगल के बीच यह इतना बड़ा बागीचा किसने बनाया है? माली बोला कि हुजूर यह बागीचा मेरा है, मेरी मेहनत का ही नतीजा है। सुनकर राजा के मन में आया कि इतने बड़े बागीचे पर यदि टैक्स लगाया जाए तो इससे मेरे खजाने की आय बढ़ सकती है।

लड़की को साथ ले जाने और बागीचे पर टैक्स लगाने की बात उसके मन में घर कर गई। तभी लड़की आधा गिलास रस लेकर आ पहुंची। राजा ने आधा गिलास लाने का कारण जानना चाहा तो लड़की ने बताया कि जाने क्यों अचानक अनारों में रस की कमी आ गई है। पहले एक अनार से गिलास भर गया था, अब चार अनारों से भी उतना रस नहीं निकला। सुनकर राजा माली से बोला कि, लड़की झूठ बोल रही है। सुनकर माली परेशान हो गया। फिर सोचकर बोला, ‘हुजूर, लड़की झूठ नहीं बोल रही, मुझे लगता है कहीं आपकी नीयत में खोट आ गया है, जिसके कारण अनारों में रस की कमी आई है।Ó कहानी के नीचे अरबी भाषा में दो लाइनें लिखी थीं-
‘चू नीयत नेक बाशद बादशा रा
बजाए गुल गुहर खेद गियारा।
अर्थात यदि राजा की नीयत अच्छी हो तो कंटीली झाडिय़ों में भी फूल और पत्तों की जगह मोती लग सकते हैं। आज राजे-महाराजे नहीं रह गए। उनका शासन भी नहीं रहा। उनकी जगह नेता हैं, मंत्री हैं, महामंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और सरकार के अधिकारी गण हैं, जिनकी हैसियत राजे-महाराजाओं से कम नहीं। तब देश के अंदर फैलती असमानता, अराजकता, अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, माओवाद, नक्सलवाद जैसी आपदाएं किसकी नीयत के नतीजे हैं…। क्या देश की जनता समझ सकेगी?


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