आभासी दुनिया ने अनुभवहीन भी बनाया

By: Oct 3rd, 2021 12:06 am

कविता एक सांस्कृतिक व सामाजिक प्रक्रिया है। इस अर्थ में कि कवि जाने-अनजाने, अपने हृदय में संचित, स्थिति, स्थान और समय की क्रिया-प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त भाव-संवेदनाओं के साथ-साथ जीवन मूल्य भी प्रकट कर रहा होता है। और इस अर्थ में भी कि प्रतिभा व परंपरा के बोध से परिष्कृत भावों को अपनी सोच के धरातल से ऊपर उठाते हुए सर्वसामान्य की ज़मीन पर स्थापित कर रहा होता है। पाठक को अधिक मानवीय बनाते हुए और एक बेहतर समाज की अवधारणा देते हुए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए रचनात्मकता का विश्लेषण और मूल्यांकन जरूरी है। यथार्थ के समग्र रूपों का आकलन आधारभूत प्राथमिकता है। यदि यह आधार खिसक गया तो कवि कर्म पर प्रश्न उठेंगे।…हिमाचल प्रदेश में कविता व ग़ज़ल की सार्थक तथा प्रभावी परंपरा रही है। उसी को प्रत्यक्ष-परोक्ष, हर दृष्टि और हर कोण से खंगालने की चेष्टा यह संवाद है।… कुछ विचार बिंदुओं पर सम्मानित कवियों व समालोचकों की ज़िरह, कुम्हार का चाक/छीलते काटते/जो घड़ दे एक आकार। ‘हिमाचल की हिंदी कविता के परिप्रेक्ष्य में’ शीर्षक के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण विचार आप पढ़ेंगे। जिन साहित्यकारों ने आग्रह का मान रखा, उनके प्रति आभार। रचनाकारों के रचना-संग्रहों की अनुपलब्धता हमारी सीमा हो सकती है। कुछ नाम यदि छूटे हों तो अन्यथा न लें। यह एक प्रयास है, जो पूर्ण व अंतिम कदापि नहीं है। – अतिथि संपादक

अतिथि संपादक: चंद्ररेखा ढडवाल, मो.:  9418111108

हिमाचल की हिंदी कविता के परिप्रेक्ष्य में -4

विमर्श के बिंदु

  1. कविता के बीच हिमाचली संवेदना
  2. क्या सोशल मीडिया ने कवि को अनुभवहीन साबित किया
  3. भूमंडलीकरण से कहीं दूर पर्वत की ढलान पर कविता
  4. हिमाचली कविता में स्त्री
  5. कविता का उपभोग ज्यादा, साधना कम
  6. हिमाचल की कविता और कवि का राज्याश्रित होना
  7. कवि धैर्य का सोशल मीडिया द्वारा खंडित होना
  8. कवि के हिस्से का तूफान, कितना बाकी है
  9. हिमाचली कवयित्रियों का काल तथा स्त्री विमर्श
  10. प्रदेश में समकालीन सृजन की विधा में कविता
  11. कवि हृदय का हकीकत से संघर्ष
  12. अनुभव तथा ख्याति के बीच कविता का संसर्ग
  13. हिमाचली पाठ्यक्रम के कवि और कविता
  14. हिमाचली कविता का सांगोपांग वर्णन
  15. प्रदेश के साहित्यिक उत्थान में कविता संबोधन
  16. हिमाचली साहित्य में भाषाई प्रयोग (काव्य भाषा के प्रयोग)
  17. गीत कविताओं में बहती पर्वतीय आजादी

गणेश गनी, मो.-9736500069

साहित्य हमारे समाज के वर्तमान को शब्दों में व्यक्त करता है। ये शब्द कवि की भाषा में ढलकर पाठकों तक पहुंचते हैं और पाठक इसलिए रुचि लेता है कि उसे कवि के विचार और भाव ही नहीं, बल्कि शिल्प और शैली भी प्रभावित करती है। साहित्य की हमारे समाज में बड़ी उपयोगिता है और हमारे समाज के लिए यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किताबों की बड़ी अहमियत है। टुलीयस सिसरो के शब्द देखें, ‘यदि आपके पास एक बागीचा और पुस्तकालय है तो आपके पास वो सब कुछ है जो आपको चाहिए।’ हालांकि वर्तमान समय में सोशल मीडिया का हर तरफ बोलबाला है, जिसके कुछ नकारात्मक और सकारात्मक पक्ष हंै। पहले सकारात्मक पक्ष की बात करते हैं।

आज हम चुटकियों में डिजिटल किताबों तक पहुंचने में सक्षम हैं। सोशल मीडिया द्वारा हम अपने प्राचीनतम इतिहास की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। हम जीवन के हर क्षेत्र की जानकारी एक क्लिक से हासिल कर सकते हैं। किसी भी विषय की खोजबीन और पड़ताल बेहद आसान है। विज्ञान ने हमें सोशल मीडिया दिया। हम सूचनाओं और ज्ञान के बहुत करीब हुए हैं। किताबों से हमारा संबंध अटूट है। किताबें हमें जीवन के गूढ़ रहस्य आसानी से समझा देती हैं। इन्हें बार-बार पढ़ना चाहिए। हमें अपने आसपास अच्छी किताबें और बेहतरीन दोस्त रखने चाहिए। इसके लिए कुछ भी कर गुजरना होता है।

कहते हैं कि अच्छी किताबें और सच्चे दोस्त तुरंत समझ में नहीं आते। एपीजे अब्दुल कलाम का यह विचार कितना अनमोल है, ‘एक अच्छी पुस्तक हजार दोस्तों के बराबर होती है, जबकि एक अच्छा दोस्त एक लाइब्रेरी के बराबर होता है।’ भले ही सोशल मीडिया ने हमें बहुत कुछ दिया, लेकिन इस बीच हम अपनों से दूर भी हुए हैं। मिलना-जुलना, फोन पर बात करना, पत्र लिखना, मेलों-त्योहारों में विशेष रूप से मेल-मिलाप आदि घटता जा रहा है। इस आभासी दुनिया ने कवि को भी यथार्थ से दूर तो किया ही है। हालांकि यह बात सब पर लागू तो नहीं होती, फिर भी एक कटु सच्चाई है। यात्राएं कम हुई हैं। इंटरनेट ने विश्व को गांव तो बना दिया, मगर असली गांव हमसे रूठ भी गए हैं। बहुत कुछ बदल गया। लोक अब बाजार के हाथों तबाह हो रहा है। लोक संस्कृति प्रदूषित हुई है। अब कवि सूचनाएं या समाचार पढ़कर कविताएं लिखता है।

उसका मुद्दों से कोई जुड़ाव नहीं रहा। भावों और विचारों में कल्पनाओं की अधिकता है। जनमानस की पीड़ा को महसूस ही नहीं कर पाता। वह अब उस यंत्रणा से गुजरना ही नहीं चाहता जिसे एक अंतिम आदमी झेल रहा है। यही कारण है कि कविता केवल शब्दों का ढेर है, उसमें आत्मा नहीं होती। पाठकों को यह नकली लगती है। कवि अपनी जड़ों से कटा हुआ है। उसने एक आभासी संसार रच लिया है अपने आसपास। जो जमीनी स्तर पर अनुभव मिलने थे, वे बंद कमरों में नहीं मिलते। जहां दुनिया मुट्ठी में करने के औजार तो हैं, मगर खेत नहीं हैं, किसान नहीं हैं, नदी नहीं है, गांव नहीं है।

दूसरी ओर ऐसे कवि कस्बों और महानगरों की समस्याओं को भी पकड़ नहीं पा रहे हैं। सोशल मीडिया पर यह सब नहीं मिलेगा। यह सब तो धरातल पर मिलेगा। लेकिन कवि धरातल से निरंतर विलगता जा रहा है। सोशल मीडिया उसे भाव व विचार ही नहीं दे रहा, बल्कि शैली व भाषा भी देता है। कवि सृजन नहीं कर पा रहा, उत्पाद तैयार कर रहा है। बनी-बनाई परिपाटी है। सोच की भी और अभिव्यक्ति की भी। लेखन श्रम-साध्य कार्य है। दीर्घकालिक साधना मांगता है। परंतु आज का रचनाकार अभी सोचता है, अभी लिखता है और अभी के अभी प्रतिक्रिया पाकर संतुष्ट हो जाता है। पर बहुत से कवि हैं जो सृजनात्मक मौलिकता और अभिव्यक्ति की ईमानदारी पर आंच नहीं आने देते। समाचार और सूचना की वस्तुनिष्ठ विवेचना कर पाते हैं। लोगों, स्थितियों और घटनाओं की पड़ताल करते हैं। किताबों के पन्ने पलटते हैं और अपने अनुभूत ज्ञान को समृद्ध करते हैं, बावजूद सब कुछ के। आभासी दुनिया की हर ईजाद के बाद भी वे जमीनी सच्चाई से जुड़े हुए हैं।


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