गीता सार का समकालीन महत्त्व

By: Nov 20th, 2021 12:23 am

भगवद्गीता के उपदेश सबसे बड़े धर्मयुद्ध महाभारत की रणभूमि कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने शिष्य अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने दिए थे जिसे हम गीता सार भी कहते हैं। आज 5 हजार साल से भी ज्यादा वक्त बीत गया है, लेकिन गीता के उपदेश आज भी हमारे जीवन में उतने ही प्रासंगिक हैं। गीता सार क्या है, यहां पाठकों के लिए ‘आस्था’ की एक पहल है…

गीता सार क्या है

एक, क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो, किससे व्यर्थ डरते हो, कौन तुम्हें मार सकता है, आत्मा न पैदा होती है, न मरती है। दो, जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिंता न करो। वर्तमान चल रहा है। तीन, तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो, तुम क्या लाए थे जो तुमने खो दिया, तुमने क्या पैदा किया था जो नाश हो गया, न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया यहीं पर दिया। जो लिया इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया। चार, खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो।

बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखों का कारण है। पांच, परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो। छह, न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा। परंतु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो? सात, तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिंता, शोक से सर्वदा मुक्त है। आठ, जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंद अनुभव करेगा।

मानव शरीर अस्थायी और आत्मा स्थायी है

गीता के श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने मनुष्य के शरीर को महज एक कपड़े का टुकड़ा बताया है। अर्थात एक ऐसा कपड़ा जिसे आत्मा हर जन्म में बदलती है। अर्थात मानव शरीर आत्मा का अस्थायी वस्त्र है, जिसे हर जन्म में बदला जाता है। इसका आशय यह है कि हमें शरीर से नहीं, उसकी आत्मा से व्यक्ति की पहचान करनी चाहिए। जो लोग मनुष्य के शरीर से आकर्षित होते हैं या फिर मनुष्य के भीतरी मन को नहीं समझते हैं, ऐसे लोगों के लिए गीता का यह उपदेश बड़ी सीख देने वाला है।

जीवन का एकमात्र सत्य है मृत्यु

गीता सार में श्री कृष्ण ने कहा है कि हर इनसान के द्वारा जन्म-मरण के चक्र को जान लेना बेहद आवश्यक है क्योंकि मनुष्य के जीवन का मात्र एक ही सत्य है और वो है मृत्यु। क्योंकि जिस इनसान ने इस दुनिया में जन्म लिया है, उसे एक दिन इस संसार को छोड़ कर जाना ही है और यही इस दुनिया का अटल सत्य है। लेकिन इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि हर इनसान अपनी मौत से भयभीत रहता है। अर्थात मनुष्य के जीवन की अटल सच्चाई से भयभीत होना, इनसान की वर्तमान खुशियों को भी खराब कर देता है। इसलिए किसी भी तरह का डर नहीं रखना चाहिए।

क्रोध से व्यक्ति का नाश हो जाता है

भगवान श्री कृष्ण ने गीता के उपदेश में कहा है कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि का विनाश होता है। वहीं जब बुद्धि काम नहीं करती है, तब तर्क नष्ट हो जाता है और व्यक्ति का नाश हो जाता है। इस तरह हर व्यक्ति को अपने गुस्से पर काबू करना चाहिए क्योंकि क्रोध भी भ्रम पैदा करता है। इनसान गुस्से में कई बार ऐसे काम करते हैं, जिससे उन्हें काफी हानि पहुंचती है।

व्यक्ति अपने कर्मों को नहीं छोड़ सकता है

श्री कृष्ण ने बताया है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्म को नहीं छोड़ सकता है अर्थात जो साधारण समझ के लोग कर्म में लगे रहते हैं, उन्हें उस मार्ग से हटाना ठीक नहीं है क्योंकि वे ज्ञानवादी नहीं बन सकते। वहीं अगर उनका कर्म भी छूट गया तो वे दोनों तरफ से भटक जाएंगे। और प्रकृति व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। जो व्यक्ति कर्म से बचना चाहता है, वह ऊपर से तो कर्म छोड़ देता है लेकिन मन ही मन उसमें डूबा रहता है। अर्थात जिस तरह व्यक्ति का स्वभाव होता है, वह उसी के अनुरूप अपने कर्म करता है।

मनुष्य को देखने का नजरिया

गीता सार में मनुष्य को देखने के नजरिए पर भी संदेश दिया गया है। इसमें लिखा गया है कि जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है। और जो अज्ञानी पुरुष होता है, उसे ज्ञान नहीं होने की वजह से वह हर किसी चीज को गलत नजरिए से देखता है।

इनसान को अपने मन को काबू में रखना चाहिए

गीता सार में उन लोगों के लिए संदेश दिया गया है जो लोग अपने मन को काबू में नहीं रखते हैं क्योंकि ऐसे लोगों का मन इधर-उधर भटकता रहता है और उनके लिए वह शत्रु के समान काम करता है। मन व्यक्ति के मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव डालता है। जब व्यक्ति का मन सही होता है तो उसका मस्तिष्क भी सही तरीके से काम करता है।

खुद का आकलन  करें

गीता सार में यह भी उपदेश दिया गया है कि मनुष्य को पहले खुद का आकलन करना चाहिए और खुद की क्षमता को जानना चाहिए क्योंकि मनुष्य को अपने आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने हृदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर देना चाहिए। जब तक मनुष्य खुद के बारे में नहीं जानेगा, तब तक उसका उद्धार नहीं हो सकता है।

अच्छे कर्म करें और फल की इच्छा न करें

जो लोग कर्म नहीं करते और पहले से ही परिणाम के बारे में सोचते हैं, ऐसे लोगों के लिए गीता सार का यह उपदेश बड़ी सीख देने वाला है। इसमें श्री कृष्ण ने कहा है कि इनसान को अपने अच्छे कर्म करते रहना चाहिए और यह नहीं सोचना चाहिए कि इसका क्या परिणाम होगा, क्योंकि कर्म का फल हर इनसान को मिलता है। इसलिए इनसान को इस तरह की चिंता को अपने मन में जगह नहीं देनी चाहिए कि उसके कर्म का फल क्या होगा या फिर किसी काम को करने के बाद वह खुश रहेंगे या नहीं।


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