संविधान निर्माण में नारी शक्ति का योगदान

संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे। संविधान के निर्माण में 15 नामी-गिरामी व आजादी के आंदोलन से जुड़ी महिलाओं ने दूरदर्शी व दूरगामी सुझाव देकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था।  दुर्भाग्य यह है कि नारी को वह सम्मान नहीं मिला, जिसकी वह हकदार है…

देश भर में 26 नवंबर को संविधान दिवस बड़े हर्षोल्लास से मनाया गया। 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा के अंतिम यानी 12वें अधिवेशन में संविधान अंगीकृत किया गया था।  संविधान सभा की सात सदस्यीय प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. बीआर अंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष में केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने 19 नवंबर 2015 को राजपत्र अधिसूचना की सहायता से 26 नवंबर 2015 को संविधान दिवस के रूप  में घोषित किया। तब विपक्ष ने सवाल खड़े किए थे। कांगे्रस का तर्क  था कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है तो 26 नवंबर मनाने का क्या औचित्य है। उल्लेखनीय है कि संविधान सभा ने कुल 7635 प्रस्तावों में से 2473 प्रस्तावों पर ही विचार-विमर्श किया था। संविधान सभा के परामर्शदाता बीएन राव के परामर्श  पर 60 देशों के संविधान का अध्ययन किया गया  था। इन देशों के संविधानों को निचोड़ कर भारतीय संविधान बनाया गया। संविधान सभा ने 2 साल 11 माह व 18 दिन कड़ी मेहनत करने के बाद व 63 लाख, 96 हजार रुपए खर्च करके तैयार किया। इस तरह 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया।

 संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे। संविधान के निर्माण में 15 नामी-गिरमी व आजादी के आंदोलन से जुड़ी महिलाओं ने दूरदर्शी व दूरगामी सुझाव देकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था।  दुर्भाग्य यह  है कि नारी शक्ति को कभी वह मान-सम्मान नहीं मिला, जिसकी वह हकदार है। ज्यादातर लोग तो उनके नाम भी नहीं जानते होंगे। हालांकि सभी 299 लोगों को श्रेय मिलना चाहिए। राजकुमारी अमृत कौर ने संविधान निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई। संविधान सभा में वे संयुक्त प्रांत व बरार से चुनी गई थी। हिमाचल प्रदेश से उनका विशेष रिश्ता रहा है। उन्होंने अल्पसंख्यक आरक्षण का विरोध किया था व  समान  नागरिक संहिता पर जोर दिया था। सरोजिनी  नायडू संविधान सभा में बिहार से चुनी गई। बुलबुल के नाम से मशहूर इस स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। वे लंदन में पढ़ी – लिखी व आधुनिक विचारों की विदूषी महिला थी। कई देशों का उन्होंने दौरा किया। आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लिया व जेल की हवा खाई। उनका मानना था कि शासन तंत्र में काबिल लोग होंगे तो देश  व समाज में चेतना आएगी। वे कांगे्रस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थी। देश की पहली राज्यपाल बनने का सौभाग्य भी उन्हें प्राप्त है। महिला अधिकारों की उन्होंने जोरदार पैरवी की। विधानसभा में उन्होंने अस्थायी अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद के ओजस्वी भाषणों से प्रभावित होकर शेर पढ़ा था- ‘बुलबुल को गुल मुबारक, गुल को चमन मुबारक/रंगीन ताबियां को रंगे सुखन मुबारक।’ सुचेता कृपलानी का जन्म 25 जून 1864 को अंबाला में हुआ था। संविधान सभा में वे संयुक्त प्रांत से चुनी गई। भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने भाग लिया। वे देश की पहली मुख्यमंत्री रही हैं।

 उन्होंने 1963-67 तक उत्तर प्रदेश के विकास की नींव  रखी।  उनके पति जीवतराम भगवान दास कृपलानी 1947 में कांगे्रस के अध्यक्ष थे। नई दिल्ली से वे सांसद चुनी गई थी। मालती चौधरी का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) मंे हुआ था। उनके पति नाबकृष्ण चौधरी ओडि़शा के मुख्यमंत्री रहे हैं। नमक सत्याग्रह में उन्होेंने भाग लिया था।  महात्मा गंाधी उन्हें तूफानी व रविंद्रनाथ टैगोर उन्हें मीनू कहकर बुलाते थे। उन्होंने महिला शिक्षा पर जोर दिया। कमला चौधरी भी एक पढ़ी-लिखी व विदूषी महिला थी। 22 फरवरी 1908 को लखनऊ में जन्मी कमला लोकसभा की सदस्य भी रहीं। दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को आंध्रप्रदेश के  राजामुंदरी मंे हुआ। महज 12 साल की उम्र में ही वे असहयोग आंदोलन व बाद में नमक सत्याग्रह में कूद पड़ी। उन्होंने न्यायाधीशों व राज्यपालों की नियुक्ति में पारदर्शिता पर जोर दिया। बाद में वे सांसद भी रहीं। 1975 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया। जवाहर  लाल नेहरू की छोटी बहन विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को इलाहाबाद में हुआ। संविधान सभा में वे संयुक्त पं्रात से चुनी गई। अल्पसंख्यकों के लिए उन्होंने बराबर अधिकारों की वकालत की। वे कई बार जेल भी गई। बाद में वे विधायक व मंत्री पद पर सुशोभित हुईं। राज्यपाल बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ व बाद में रूस में भारत की राजदूत भी रही। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ की 8वीं अध्यक्ष चुनी गईं। लीला राय का जन्म असम के गोलपाड़ा में 2 अक्तूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता अधिकारी थे। 1921 में उन्होंने बीए पास की। जयंती पत्रिका का संपादन भी किया। सुभाषचंद्र बोस की सहयोगी रहीं। बेगम एजाज रसूल का जन्म 2 अप्रैल 1909 को हुआ।

 संविधान सभा के लिए वे संयुक्त प्रांत  से चुनी गईं। 1937 में उन्होंने पर्दा प्रथा का परित्याग कर दिया। अल्पसंख्यक आरक्षण का उन्होंने विरोध किया था। संविधान सभा में वे एकमात्र मुस्लिम महिला थी। बाद में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। आईएएस अधिकारी सतीश चंद्र राय व कांगे्रस नेत्री चारुलता राय के घर जन्मी रेणुका राय संविधान सभा में बंगाल से चुनी गई थी। गांधीवादी हंसा जीवराज मेहता ने 1919 में ब्रिटेन से पत्रकारिता व समाजशास्त्र का अध्ययन किया। संविधान सभा में वे बांबे से चुनी गई। आरक्षण का विरोध व महिला समानता की पैरवी की। बड़ौदा के दीवान नंद शंकर मेहता के घर 3 जुलाई 1887 को जन्मी हंसा मेहता ने गुजराती में बच्चों के लिए पुस्तकें भी लिखी। पृथक निर्वाचन क्षेत्रों का उन्होंने विरोध किया व समान नागरिक संहिता की पैरवी की। अम्मू स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट में आनाकारा में 22 अप्रैल 1894 को हुआ।  1946 में वे मद्रास से संविधान सभा में चुनी गईं। उनका सुझाव था कि  संविधान इतना छोटा होना चाहिए कि इसे जेब या पर्स में रखा जा सके। एनी मास्कारेन का जन्म केरल के तिरुअनंतपुरम में हुआ। त्रावणकोर से वे संविधान सभा के लिए निर्वाचित हुईं। उन्होंने केंद्र व राज्यों के बीच शक्तिसंतुलन पर बल दिया। पूर्णिमा बनर्जी संयुक्त प्रांत से संविधान सभा के लिए चुनी गई। दक्षयानी वेलायुदन पहली दलित स्नातक थी। मद्रास क्षेत्र से वे संविधान सभा में सबसे कम उम्र 34 साल में चुनी गई। वे कोचिन के पुलास समाज से थी। उन्होेंने छुआछूत व जबरन मजदूरी का विरोध किया।

बलराज सकलानी

लेखक सरकाघाट से हैं


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