देव सूर्य मंदिर

By: Nov 20th, 2021 12:22 am

देव सूर्य मंदिर करीब 100 फुट ऊंचा है। मान्यता है कि इस सूर्य मंदिर का निर्माण त्रेता युग में भगवान विश्वकर्मा ने खुद किया था और जो भक्त यहां भगवान सूर्य की आराधना मन से करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है…

हिंदू धर्म में पंचदेवों में से सूर्य देव भी एक माने गए हैं। ज्योतिष के अनुसार सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है। सूर्य हर माह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इस तरह से बारह राशियों में सूर्य एक वर्ष में अपना चक्र पूर्ण करते हैं। सूर्य को आरोग्य का देवता माना गया है। वैसे तो देश में सूर्यदेव के कई मंदिर स्थित हैं, लेकिन औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर देश में काफी प्रसिद्ध है। देव सूर्य मंदिर काफी पौराणिक व ऐतिहासिक है।

काले पत्थरों को तराशकर बनाए गए इस मंदिर की शिल्पकला देखने लायक है।  देव सूर्य मंदिर करीब 100 फुट ऊंचा है। मान्यता है कि इस सूर्य मंदिर का निर्माण त्रेता युग में भगवान विश्वकर्मा ने खुद किया था और जो भक्त यहां भगवान सूर्य की आराधना मन से करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है। यहां के मंदिर में भगवान सूर्य तीन स्वरूपों में विरामजामन हैं। भगवान सूर्य यहां उदय काल में ब्रह्मा, मध्याह्न में विष्णु व संध्या काल में महेश के रूप में दर्शन देते हैं।

मंदिर का निर्माण- मंदिर में लगे शिलालेख से ही पता चलता है कि त्रेतायुग में राजा एल ने इसका निर्माण कराया था। वह कुष्ठ रोग से ग्रसित थे। कहा जाता है कि राजा एक बार जंगल में शिकार खेलते हुए देव पहुंचे थे। राजा को प्यास लगी, जैसे ही उन्होंने देव स्थित तालाब का जल ग्रहण किया, तो राजा के हाथ में जहां-जहां जल का स्पर्श हुआ वहां का कुष्ठ रोग ठीक हो गया।

राजा उस तालाब में कूद गए, जिस कारण उनके शरीर का कुष्ठ रोग ठीक हो गया। रात में राजा को स्वप्न आया कि जिस तालाब में उन्होंने स्नान किया है, उसमें भगवान सूर्य की तीन स्वरूपी प्रतिमा दबी पड़ी है। राजा ने जब तालाब खुदवाया तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में तीन प्रतिमाएं मिलीं। प्रतिमाओं के लिए मंदिर का निर्माण कराकर उन्हें वहां स्थापित किया गया, जो आज देव सूर्य मंदिर के रूप में देशभर में प्रसिद्ध है।

पश्चिमाभिमुख है देव सूर्य मंदिर- देव सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिमाभिमुख है। कहा जाता है कि औरंगजेब अपने शासनकाल में देश के मंदिरों को तोड़ते हुए देव पहुंचा था। जब वह सूर्य मंदिर को तोड़ने लगा, तो यहां के पुजारियों ने मना किया। तब औरंगजेब ने कहा कि अगर सूर्य मंदिर में कुछ सत्यता है, तो रातभर का समय देता हूं अगर मंदिर का द्वार पूर्व से पश्चिम हो जाएगा, तो हम मंदिर को छोड़ देंगे। रात में तेज गर्जना के साथ मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो गया। तब औरंगजेब मंदिर को नहीं तोड़ सका। माता अदिति ने भी इस मंदिर में पूजा की थी।


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