ईव टीजिंग पर उतारू सब्जी

By: Nov 29th, 2021 12:04 am

माना उसकी बीवी संुदर है, लेकिन इतनी भी नहीं कि बाजार जाने से खतरा पैदा हो, लेकिन कई दिनों से उसने पति को शिकायत कर रखी है कि वह सब्जी लेने नहीं जाएगी। उसे सब्जियों से फोबिया हो गया है। जब भी वह सब्जी बाजार जाती है, कोई न कोई सब्जी उसके साथ अश्लील व्यवहार करती है। कल तक जिस काले बैंगन को वह देखना भी पसंद नहीं करती थी, वह भी अब ग्राहक देखते ही आंख दबा देता है। हद तो यह कि छोटा सा टमाटर गृहिणियों को आंख मारने पर आमादा है। उसी की तरह कई अन्य महिलाएं भी अपने-अपने पतियों से शिकायत कर चुकी हैं। कल तक भोली सी सब्जियां आज किसी आवारा व्यक्ति की तरह आंख उठा रही हैं, तो सामने आम गृहिणियों को नज़रे झुकानी पड़ रही हैं।

पता नहीं कब सड़ा-गला आलू भी अपनी कीमत देखता हुआ अपनी आंख दबा दे। आश्चर्य तो यह कि सब्जियों के इस व्यवहार से लिंगभेद का लेना-देना नहीं। अब तो भिंड़ी तक को औरतें आंख उठा कर नहीं देखतीं। पहले जिस मूली से खेत का पता पूछा जाता था, आज वही घर की औकात पूछती है। शहर की महिलाओं ने अंततः प्रशासन से शिकायत करके बताया कि अब गली के गुंडों से कहीं अधिक डर बाजार में पहुंची सब्जी से लगता है। जिलाधीश हैरान हुए कि सब्जी अब ‘ईव टीजिंग’ करेगी तो वह करेंगे क्या। जिलाधीश ने रिपोर्ट बनाकर सरकार को भेजी कि उसके यहां सब्जियों ने पत्नियों के भीतर खौफ पैदा किया है। सब्जियों की शरारत पर सीआईडी तंत्र जब सक्रिय हुआ, तो कई सदस्यों के लिए यह अपने घर जैसा मसला बन गया। पुलिस वालों की घरवालियों से भी सब्जियां शरारत कर रही थीं। आवारगी इनके चरित्र में इस तरह समा गई है कि बाजार में किसी स्त्री को देखते ही भौंडी हरकतें करती हैं। हद तो यह कि कद्दू भी इनकी संगत में बिगड़ गया। औरतें कद्दू तक को हाथ लगाना उचित नहीं समझतीं। सरकार ने अपने विभाग व कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से कहा कि इनकी आदत पर शोध करके पता लगाएं कि सब्जियां क्यों नारी जगत में खौफ पैदा कर रही हैं।

वैज्ञानिकों ने अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए कहा, ‘हमने तो नौकरी के लिए शोध किया था, सब्जियों के व्यवहार पर नहीं। दूसरे जिन बीजों से सब्जियां उगी हैं, वे तो आयातित हैं। लिहाजा वैज्ञानिकों के बजाय मनोविज्ञानियों से मदद ली जाए।’ सरकार को पहली बार मालूम हुआ कि कृषि वैज्ञानिकों का फसलें उगाने में कोई योगदान नहीं है, फिर भी इस जांच को आगे बढ़ाया। बाकायदा मनोवैज्ञानिक बुलाए गए और उन्हें बाजार मेंे सब्जियों के बिगड़े तेवरों का पता लगाने को कहा। मनोवैज्ञानिक भी आखिर थे तो सरकारी नौकर। घर के हालात देख कर ही वे सभी सब्जियों की ओर नज़र उठाकर नहीं देख पाते थे, फिर भी हिम्मत करके उन्होंने एक-एक करके सभी से पूछा कि वे औरत ग्राहकों को देखकर क्यों आंखें दबाती हैं। सब्जियां बोली, ‘हम तो काफी समय से आंखें दिखा रही थीं, लेकिन आप सभी की बीवियों को मालूम नहीं हो रहा था कि बाजार कितना शैतान है। अंततः हमने आंखें मारनी शुरू की ताकि घर-घर पता चले कि शैतान सब्जी नहीं और न ही उसे उगाने वाला है, बल्कि बाजार ने हमारी तरह सभी खाद्य उत्पादों को चरित्रहीन बना दिया है। नेता लोग बड़े मंचों पर सब्जियों को भी राष्ट्रवाद बना देते हैं, जबकि हमें जन्म देते बीज विदेश से और यहां तक कि चीन से भी आते हैं।’ सरकार को उत्तर मिल गया था, इसलिए पहले बीजों पर देशद्रोह का आरोप लगा, फिर उगाने वाले किसानों को देशद्रोही बना दिया गया। अब किसान खुद ही उगाकर सब्जियों से डर रहा है कि कहीं बाजार उसे पकड़वा ही न दे।

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक


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