कैसे कारगर होगा एमएसपी?

By: Dec 11th, 2021 12:03 am

सरकारी व्यवस्था में निजी व्यापार को प्रोत्साहन देना ज़रूरी कदम होगा, किंतु साथ ही निजी बाज़ार पर नियंत्रण रखने के लिए, बाज़ार से विपरीत चलने की व्यापारिक होशियारी और कला अपनानी होगी। यानी निजी बाज़ार एक रेंज में रहें तो सरकार को निष्क्रिय रहना चाहिए। रेंज का न्यूनतम भाव एमएसपी होगा और ऊपरी भाव ऐसा होना चाहिए, ताकि साधारण उपभोक्ता उसे खरीद पाए। यदि बाज़ार बहुत तेज़ है तो उपभोक्ता के बचाव के लिए बाज़ार में आवक बढ़ानी होगी, ताकि भाव संभल पाएं। उसी प्रकार यदि भाव बहुत घट रहे हैं तो खरीदी बढ़ाकर भाव को ऊपर उठाना होगा…

इन दिनों किसान संगठनों की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर व्यापक कानून बने और उसे सभी फसलों पर लागू किया जाए। वर्तमान में सरकार 23 फसलों पर एमएसपी घोषित करती है, किंतु मुख्य रूप से गेहूं और धान ही खरीदती है। शक्कर और कपास के लिए भी सरकारी मूल्य तय होते हैं, किंतु आमतौर पर उसे ठीक से लागू नहीं किया जाता। बाकी फसलों के लिए यह महज कागज़ी घोषणा है। इन फसलों को एमएसपी पर खरीदने के लिए न तो व्यापारी तैयार है और न ही सरकार। सरकार खुद कह रही है कि सभी फसलों के लिए एमएसपी मिलना चाहिए, पर सरकार के लिए भी यह संभव नहीं है। फसल खरीदने के लिए न उसके पास व्यवस्था है और न ही धन।

साथ ही फसल वितरण के तरीके भी व्यवस्थित नहीं हैं। यहां सवाल उठता है कि क्या हमें खोखली घोषणाओं के साथ ही जीना होगा? क्या हमारा समाज इस विचार के साथ कोशिश नहीं कर सकता कि किसानों को फसल का उचित दाम मिले, ताकि वे अपना परिवार चला पाएं, किसानी जीवन की गरिमा रख पाएं और हम सभी को प्रकृति के करीब आने तथा उसके संरक्षण का मौका मिल सके। सरकार को सभी फसलें खरीदने की आवश्यकता नहीं है। कुछ फसलें हैं जिनका निजी बाज़ार मज़बूत है, खासकर जहां मिल तक पहुंचाने की व्यवस्था निजी क्षेत्र ने पहले ही बना रखी है। इन फसलों के लिए एमएसपी एक न्यूनतम भाव, यानी मंडी में ‘फ्लोर प्राइस बन सकता है। इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं : आज हमारे यहां सोयाबीन का भाव 3500 से 6500 का है। व्यापारी मिलों के लिए सोयाबीन मंडियों से खरीद रहे हैं। एमएसपी का भाव 3900 है। मंडियों में बोली इसके नीचे नहीं लगनी चाहिए। कानून आने से मंडियों के कर्मचारी यह व्यवस्था बना सकेंगे कि किसान का माल एक निर्धारित गुणवत्ता का हो और कोई भी बोली एमएसपी के नीचे शुरू नहीं हो। ऐसी फसलों के लिए यह व्यवस्था बनाना कठिन नहीं है। एक-दो वर्षों में यह सभी की आदत में आ जाएगी। यानी कई व्यापारिक फसलें जिनका आज बाज़ार भाव एमएसपी के आसपास और ऊपर रहता है, यह नियम लागू किया जा सकता है।

इसमें सरकार को स्वयं कुछ खरीदे बिना यह नियम लागू करना और उसकी आदत बनाना होगा। वैसे भी सभी जगह खुली नीलामी के नियमों में न्यूनतम भाव की परंपरा होती है। दूसरी सूची उन फसलों की होगी जिनका कटाई के बाद भाव एमएसपी से 10 से 30 प्रतिशत नीचे रह सकता है। उदाहरण के लिए हमारे यहां मक्का का भाव 1300 से 1650 के बीच है और इसका एमएसपी 1870 है। इसमें किसी को एमएसपी प्राप्त नहीं होता और निजी बाज़ार भाव एमएसपी के नीचे ही चलता है। यानी एमएसपी कागज़ की कोरी घोषणा है। इसी प्रकार कपास का भाव 4405 से 8655 है, जबकि एमएसपी 5726 है। जाहिर है बहुत से किसानों को एमएसपी के मुताबिक दाम नहीं मिल रहा है। ऐसी फसलों की स्थिति में सरकार के लिए केवल एमएसपी के नियम को लागू करने से काम नहीं चलेगा। भाव को ऊपर खींचना होगा। इसके लिए सरकार को कई मंडियों में 10 से 30 प्रतिशत फसल खरीदने की व्यवस्था बनानी होगी और इन्हें खरीदकर अपनी खाद्य-सुरक्षा योजनाओं में वितरण की व्यवस्था लागू करनी होगी। ऐसा करने पर बाज़ार भाव एमएसपी के करीब आ जाएगा और मंडियों में न्यूनतम भाव का नियम लागू करना संभव होगा। राज्य सरकारों को यह व्यवस्था बनाने में दो से तीन वर्ष लगेंगे और उसके लिए वित्तीय सहयोग की ज़रूरत होगी। राज्य सरकारों का दूरगामी लक्ष्य होना चाहिए कि अपने राज्य में मंडी एवं भंडारण व्यवस्था को मज़बूत बनाएं ताकि निजी व्यापार को प्रोत्साहन मिले और मंडियां सरकारी नियंत्रण में चलें।

ऐसा करने पर सरकार 10 से 20 प्रतिशत खरीदी करते हुए बाज़ार भाव को एमएसपी के करीब रख पाएगी। तीसरी सूची उन फसलों की है जिनका भाव एमएसपी से बहुत दूर है। कई दशकों की मार से इन फसलों की मांग घट गई है। किसानों ने इन्हें लगभग छोड़ दिया है। इनमें मोटा अनाज शामिल है जो सबसे पौष्टिक है, पर इनका चलन बहुत कम है। उदाहरण के लिए ज्वार की स्थिति देखें। एक समय यह मुख्य अनाज होता था। वर्तमान में इसका मंडी भाव 1300 ये 1450 है, जबकि एमएसपी 2738 है। इस परिस्थिति में सरकारी खरीदी 40 से 50 प्रतिशत करनी होगी। इसका लक्ष्य होगा कि फिर से जनमानस में इसका चलन बने और इसके निजी बाज़ार को प्रोत्साहन मिले। खरीदी के साथ-साथ सरकार द्वारा मुहिम छेडऩी होगी कि इनकी गुणवत्ता को हम फिर से समझें। मधुमेह की बीमारी से लडऩे के लिए इनका उपभोग सबसे अच्छा तरीका है। ज्वार, बाजरा, जौ, रागी आदि ये सभी इसी समूह में आते हैं। इनकी खपत बढ़ाना एक ज़रूरी लक्ष्य होना चाहिए, तभी किसान इनकी खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे। इनका बाज़ार फिर से व्यापक बने, यह बड़ा लक्ष्य है। इन समूहों को देखते हुए यह बात साफ हो जाती है कि हर राज्य को अपनी-अपनी परिस्थितियों के अनुसार लक्ष्य बनाना होगा। एमएसपी का मॉडल केंद्रीय कानून हो सकता है जिसे राज्यों को अपने यहां अपनाते हुए नियम एवं योजनाओं को बनाना होगा।

इसे लागू करने के लिए क्या-क्या करना है, राज्यों को तय करना होगा। यहां किसान संगठनों की अहम भूमिका होनी चाहिए, क्योंकि मिश्रित खेती पर लौटने के लिए, किन फसलों को प्रोत्साहन देना है और कैसे राज्य अपने किसानों से चर्चा करके योजना बनाएं, यह किसान संगठन ही बता सकेंगे। यह सब करने के लिए ज़रूरी होगा कि राज्य सरकार अपनी व्यवस्था मज़बूत बनाए। उन्हें भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पर अपनी निर्भरता को कम करके अपने स्टॉक का सिस्टम बनाना होगा। खाद्य सुरक्षा की व्यवस्था एक हद तक उन्हें स्वयं संभालनी होगी। इसी से मिश्रित खेती की ओर लौटा जा सकता है। अन्यथा हम सभी गेहूं-धान के दुष्चक्र से नहीं निकल सकते। केंद्रीय कानून में राज्यों को वित्तीय सहायता देने के लिए प्रावधान होना चाहिए ताकि वे व्यवस्था बना पाएं। सरकारी व्यवस्था में निजी व्यापार को प्रोत्साहन देना ज़रूरी कदम होगा, किंतु साथ ही निजी बाज़ार पर नियंत्रण रखने के लिए, बाज़ार से विपरीत चलने की व्यापारिक होशियारी और कला अपनानी होगी। यानी निजी बाज़ार एक रेंज में रहें तो सरकार को निष्क्रिय रहना चाहिए। रेंज का न्यूनतम भाव एमएसपी होगा और ऊपरी भाव ऐसा होना चाहिए, ताकि साधारण उपभोक्ता उसे खरीद पाए। यदि बाज़ार बहुत तेज़ है तो उपभोक्ता के बचाव के लिए बाज़ार में आवक बढ़ाना होगी, ताकि भाव संभल पाएं। उसी प्रकार यदि भाव बहुत घट रहे हैं और किसानों को नुकसान होने की स्थिति बनती है तो खरीदी बढ़ाकर भाव को ऊपर उठाना होगा। सरकार का काम है बाज़ार के विपरीत चलना, ताकि व्यवस्था नियंत्रण में रहे और किसान एवं उपभोक्ता, दोनों को संरक्षण मिल पाए। सार्वजनिक हित में सरकारों को यह कला सीखने की ज़रूरत है। लक्ष्य होना चाहिए कि नियंत्रित निजी बाज़ार कारगर हो सके जो कि सार्वजनिक मंडी व्यवस्था ला सकती है। ऐसे में एमएसपी नियम का पालन करते हुए 80 से 90 प्रतिशत खरीदी निजी व्यापार द्वारा हो पाएगी।

(सप्रेस)

अरविंद सरदाना

स्वतंत्र लेखक


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