ठंड शुरू… घुमंतू गुज्जरों ने किया मैदानी इलाकों का रुख

By: Dec 6th, 2021 12:16 am

आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर, जंगल-जंगल धूम कर करते हैं जीवनयापन, सोशल मीडिया-फेसबुक-इंटरनेट-सियासत से कोई नाता नहीं

बीआर चौहान-यशवंतनगर
शीतलहर का प्रकोप होते ही घुमंतू गुज्जर समुदाय ने मैदानी क्षेत्रों का रूख कर दिया है। इस समुदाय का कोई स्थाई ठिकाना नहीं है। पहाड़ों पर बर्फ एवं अत्याधिक सर्दी आरंभ होने पर यह घुमंतू गुज्जर अपने परिवार व मवेशियों के साथ मैदानी क्षेत्रों में चले जाते हैं और गर्मियों के दौरान ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं। सबसे अहम बात यह है कि इस समुदाय के लोगों को बेघर होने का कोई खास मलाल नहीं है। आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर घुमंतू गुज्जर वर्ष भर भैंस, भेड़-बकरियों के साथ जंगल-जंगल घूमकर कठिन व संघर्षमय जीवन यापन करते हैं। बता दें कि गर्मियों के दिनों घुमंतू गुज्जर समुदाय के लोग चूड़धार, नारकंडा, चांशल पास इत्यादि जंगलों में रहते हैं, जबकि सर्दियों के दौरान नालागढ़, बददी, पांवटा, दून और सिरमौर जिला के धारटीधार क्षेत्र में चले जाते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति में इस समुदाय का कोई सारोकार नहीं है। सोशल मीडिया, फेसबुक, इंटरनेट, सियासत इत्यादि से इस समुदाय का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। यह लोग अपने सभी रीति-रिवाजों व विवाह इत्यादि सामाजिक बंधनों को जंगलों में मनाते हैं। सर्दी, बरसात, गर्मी के दौरान गुज्जर समुदाय के लोग जंगलों में रातें बिताते हैं।

बीमार होने पर अपने पारंपरिक दवाओं अर्थात जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करते हैं। मवेशियों को लेकर बददी जा रहे शेखदीन व कमलदीन गुज्जर ने बताया कि आजादी के 74 वर्ष बीत जाने पर भी किसी भी सरकार ने उनके संघर्षमय जीवन बारे विचार नहीं किया और भविष्य में उम्मीद भी नहीं है। इनका कहना है कि दो जून की रोटी कमाना उनके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है। दूध, खोया, पनीर इत्यादि बेचकर यह समुदाय रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करता है। हालांकि कुछ गुज्जरों को सरकार ने पट्टे पर जमीन अवश्य दी है, परंतु अधिकांश गुज्जर घुमंतू ही हैं। शेखदीन का कहना है कि विशेषकर बारिश होने पर खुले मैदान में बच्चों के साथ रात बिताना बहुत कठिन हो जाता है। उन्होंने बताया कि उनके बच्चे अनपढ़ रह जाते हैं। सरकार ने घुमंतू गुज्जरों के लिए मोबाइल स्कूल अवश्य खोले हैं, परंतु स्थाई ठिकाना न होने पर यह योजना भी ज्यादा लाभदायक सिद्ध नहीं हो रही है। घुमंतू गुज्जर अपने आपको मुस्लिम समुदाय का मानते हैं, परंतु इनके द्वारा कभी न ही रोजे रखे गए हैं और न ही कभी नमाज पढ़ी जाती है। कमलदीन का कहना है कि अनेकों बार जंगलों में न केवल प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि जंगली जानवरों से जान बचाना मुश्किल हो जाता है। जंगलों में बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि सुविधाएं न होने के बावजूद भी यह समुदाय अपने व्यवसाय से प्रसन्न है। (एचडीएम)


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