विश्व का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता

By: Dec 11th, 2021 12:21 am

भारतवर्ष प्राचीन काल से कई शक्तिशाली क्षत्रिय योद्धाओं की कर्मभूमि रहा है। हमारे शूरवीर योद्धाओं की महानता, पुरुषार्थ व शौर्य पराक्रम की प्रमाणिकता का इतिहास हमारे कई पौराणिक ग्रंथों में दर्ज है। सनातन संस्कृति के उन असंख्य धार्मिक ग्रंथों में ‘श्रीमद्भगवदगीता सर्वश्रेष्ठ है, बल्कि विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवादित ‘श्रीगीता विश्व के सभी धर्मों के ग्रंथों में प्रसिद्ध व सर्वोपरि ग्रंथ है। 18 अध्याय के पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता का उद्गम द्वापर युग में मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर स्वयं योगेश्वर श्रीकृष्ण जी के श्रीमुख से हुआ था। जब महाराजा ‘कुरू की तपोभूमि कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल पर 11 अक्षौहिणी कौरव सेना तथा 7 अक्षौहिणी पांडव सेना युद्ध के लिए आमने सामने खड़ी हो गई थी, तब महाभारत युद्ध के महानायक पांडव योद्धा अर्जुन ने गंगापुत्र भीष्म के ध्वज तले कौरव सेना में अपने संबधियों, गुरुओं तथा भीष्म व बाहलीक जैसे वयोवृद्ध बजुर्गों को देखकर शोकग्रस्त अवस्था में अपना धैर्य व शक्ति खोकर युद्ध लडऩे का संकल्प त्यागकर अपने अस्त्र, शस्त्र भूमि पर रख दिए थे।

उस समय युद्ध के मैदान पर अपना क्षत्रिय धर्म भूल कर वैरागी की अवस्था धारण कर चुके अर्जुन की सारी शंकाओं को दूर करने के लिए धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिव्य ज्ञान देकर उसका मार्गदर्शन किया था। अर्जुन को माध्यम बनाकर श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया वही महान उपदेश ‘श्रीमद्भगवदगीता के रूप में विश्व विख्यात हुआ। महाभारत युद्ध की पृष्ठभूमि से ही श्रीगीता जी का शुभारंभ हुआ था। उपदेश, ज्ञान व शिक्षा का आदर्श शिक्षार्थी ग्रहण कर सकता है, जिसमें सीखने के गुण तथा आचरण में शक्ति के साथ सहनशीलता व विन्रमता भी शामिल हो। श्रीकृष्ण के उपदेश से उत्सर्जित ऊर्जा व प्रेरक शक्ति से सशक्त होकर ही अर्जुन का आत्मविश्वास बढ़ा तत्पश्चात अर्जुन ने अपने ‘देवदत्त नामक शंख से महाभारत युद्ध का शंखनाद किया था। उस दिव्य ज्ञान की अग्नि से शुद्ध होकर अर्जुन ने अपने क्षत्रिय धर्म व शक्तियों का महत्त्व समझकर उनका प्रयोग करके महाभारत के घोर संग्राम में कई शक्तिशाली योद्धाओं का संहार करके युद्ध की तस्वीर बदल कर अपने विजयी लक्ष्य को हासिल किया था।

पौराणिक मान्यता है कि श्रीकृष्ण व अर्जुन के बीच ‘श्रीगीता का संवाद कुरुक्षेत्र में ‘ज्योतिसर नामक पावनस्थली पर ‘अक्षय वट के नीचे हुआ था। महाभारत युद्ध का साक्षी हजारों वर्ष पुराना आस्था का प्रतीक वही अक्षय वट आज भी ज्योतिसर में मौजूद है। महाभारत युद्ध के 13वें दिन ‘त्रिगर्त (कांगड़ा) रियासत के कटोच वंशीय शासक सुशर्म चंद ने युद्धभूमि में क्षत्रिय धर्म के नियम विजय या वीरगति से प्रतिबद्ध होकर अपनी सेना के साथ कुरुक्षेत्र की समरभूमि पर गांडीवधारी धनुर्धर अर्जुन को युद्ध के लिए ललकार दिया था। ‘नंदीघोष रथ पर सवार महारथी अर्जुन के सारथी स्वंय द्वारिकाधीश श्री कृष्ण थे। अर्जुन व सुशर्मा के बीच हुए युद्ध के दौरान ही कौरव पक्ष के योद्धाओं ने गुरुद्रोण द्वारा रचित चक्रव्यूह को भेद चुके महाभारत युद्ध के सबसे पराक्रमी व साहसी योद्धा वीर ‘अभिमन्यु का वध करके युद्ध में शांति व समझौते जैसे विकल्पों पर विराम लगा दिया था। प्राचीन काल में क्षत्रियों के लिए युद्ध लडऩा आत्म सम्मान का विषय था, जब युद्ध प्रतिष्ठा व स्वाभिमान के लिए लड़ा जाए, तो रणक्षेत्र में अंजाम के कोई मायने नहीं होते। 18 अक्षौहिणी सेनाओं के बीच 18 दिनों तक चले महाभारत युद्ध के 18 पर्वों में श्रीमद्भगवदगीता ‘भीष्म पर्व का अंग है।

भारतीय वायुसेना का आदर्श वाक्य ”नभ: स्पृश: दीप्तम अर्थात आकाश को स्पर्श करने वाला देदीप्यान। गीता के 11वें अध्याय के 24वें श्लोक का भाग है। श्रीगीता जी की प्रांसगिता से प्रभावित होकर अंग्रेज अधिकारी ‘चालर्स विलकिंस ने सन् 1875 में श्रीगीता का संस्कृत से अंग्रेजी में अनुवाद करके इसे कई देशों में पहुंचा दिया था। इंडोनेशिया की राजधानी जर्काता में विशाल ‘अर्जुन विजय स्मारक स्थापित किया गया है, जो कि अपने वचनों का मूल्य चुकाने में प्रतिबंद्ध महर्षि परशुराम के श्रेष्ठ शिष्य पितामाह भीष्म व सूर्यपुत्र अंगराज कर्ण जैसे महान योद्धाओं की महागाथाओं से भरे महाकाव्य महाभारत तथा श्रीगीता जी के गौरवशाली इतिहास को विदेशी भूमि पर दर्शाता हैं। ज्ञान का भंडार श्रीगीता के तथ्यों का आधुनिक विज्ञान भी लोहा मानता है। आधुनिक युग के भौतिकतावादी वातावरण में अवसाद, चिंता व कई मानसिक उलझनों के शोकसागर में डूब चुके लोग यदि श्रीगीता जी की शरण में जाकर इसमें समाहित 700 श्लोकों के सर्वव्यापी ज्ञान का अध्ययन करें, तो श्रीगीता जी के उच्च विचारों की शक्ति समस्त समस्याओं का निवारण करने में सक्षम है।

भक्तिज्ञान से लेकर कर्तव्य पालन तथा हमेशा धर्म व सच्चाई के मार्ग पर अडिग रहने का संदेश देने वाली श्रीगीता सनातन संस्कृति व संस्कारों का सबसे बड़ा स्रोत है। अज्ञान का अंधकार मिटा कर जीवन का रहस्य व सद्कर्मों का महत्त्व बताने वाला सर्वशास्त्र श्रीगीता मुरलीधर श्रीकृष्ण जी की साक्षात वाणी है। सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश की पूरी श्रंृखला श्रीमद्भगवदगीता के अनुसार ‘अहिंसा परमो धर्म, धर्म हिंसा तदैव च अर्थात अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है। किंतु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है। बहरहाल रणभूमि में विशाल संख्या के लाव लश्कर पर एक योग्य व कुशल सलाहकार तथा उसके शक्तिशाली कूटनीतिक विचार हमेशा भारी पड़ते हैं। जब गीता पर हाथ रखकर शपथ दिलाई जाती है तो विश्व के इस सर्वोपरि ग्रंथ को राष्ट्रीय सम्मान भी मिलना चाहिए।

-प्रताप सिंह पटियाल


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