ब्रह्मा मंदिर पुष्कर

By: Jan 22nd, 2022 12:24 am

सृष्टि के रचियता ब्रह्मा की यज्ञस्थली और ऋषियों की तपस्या स्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। यहां प्रति वर्ष विश्वविख्यात कार्तिक मेला लगता है। सर्वधर्म समभाव की नगरी अजमेर से उत्तर-पश्चिम में करीब 11 किलोमीटर दूर पुष्कर में अगस्त्य, वामदेव, जमदग्नि, भर्तृहरि इत्यादि ऋषियों के तपस्या स्थल के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में हैं। ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था, जिसकी स्मृति में अनादि काल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्माजी का मंदिर बना है। आदि शंकराचार्य ने संवत् 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारेख ने 1809 ई. में बनवाया था। यह मंदिर विश्व में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से दो हजार तीन सौ 69 फुट की ऊंचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है। तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है।

इसे धर्मशास्त्रों में पांच तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। अद्र्ध चंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है। झील के बीचोंबीच छतरी बनी है।

त्रेता और द्वापुर युग से नाता- महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। वाल्मीकि रामायण में विश्वामित्र के तप करने की बात कही गई है। यह भगवान राम के समय से अब तक बदलते इतिहास का गवाह है। इसका उल्लेख चौथी शताब्दी में आए चीनी यात्री फाह्यान ने भी किया है।

सर्वधर्म समभाव की नगरी- पुष्कर के महत्त्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सभी धर्मों के देवी-देवताओं का आगमन यहां रहा है। जगतगुरु रामचंद्राचार्य का श्रीरणछोड़ मंदिर, निम्बार्क संप्रदाय का परशुराम मंदिर, महाप्रभु की बैठक, जोधपुर के बाईजी का बिहारी मंदिर, तुलसी मानस व नवखंडीय मंदिर, गायत्री शक्तिपीठ, जैन मंदिर, गुरुद्वारा आदि दर्शनीय स्थल हैं। पुष्कर के गुलाब विश्व प्रसिद्ध-ब्रह्माजी के हाथ से भले ही कमल पुष्प यहां गिरा हो, लेकिन वर्तमान में पुष्कर के गुलाब विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां बड़ी मात्रा में गुलाब की खेती होती है। अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की पवित्र मजार पर चढ़ाने के लिए रोजाना कई क्विंटल गुलाब यहां से भेजे जाते हैं। इन गुलाब पुष्पों से बनी गुलकंद, गुलाब जल इत्यादि का निर्यात भी किया जाता है।

चार धाम की यात्रा के बाद पुष्कर स्नान जरूरी- पुष्कर महत्त्वपूर्ण तीर्थो में से एक है। इसका बनारस या प्रयाग की तरह ही महत्त्व है। जगन्नाथ, बद्रीनारायण, रामेश्वरम, द्वारका इन चार धामों की यात्रा करने वाले तीर्थयात्री की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती, जब तक वह पुष्कर के पवित्र जल में स्नान नहीं कर लेता। महाभारत में पुष्करराज के बारे में लिखा है कि तीनों लोकों में मृत्यु लोक महान है और मृत्यु लोक में देवताओं का सर्वाधिक प्रिय स्थान पुष्कर है। पुष्कर को पृथ्वी का तीसरा नेत्र भी माना जाता है।

 ब्रह्माजी के कमल पुष्प से बना पुष्कर- पद्मपुराण के अनुसार ब्रह्माजी को यज्ञ करना था। उसके लिए उपयुक्त स्थान का चयन करने के लिए उन्होंने धरा पर अपने हाथ से एक कमल पुष्प गिराया। वह पुष्प अरावली पहाडिय़ों के मध्य गिरा और लुढ़कते हुए दो स्थानों को स्पर्श करने के बाद तीसरे स्थान पर ठहर गया। जिन तीन स्थानों पर पुष्प ने धरा को स्पर्श किया, वहां जलधारा फूट पड़ी और पवित्र सरोवर बन गए। सरोवरों की रचना एक पुष्प से हुई, इसलिए इन्हें पुष्कर कहा गया। प्रथम सरोवर कनिष्ठ पुष्कर, द्वितीय सरोवर मध्यम पुष्कर कहलाया। जहां पुष्प ने विराम लिया वहां एक सरोवर बना, जिसे ज्येष्ठ पुष्कर कहा गया। ज्येष्ठ पुष्कर ही आज पुष्कर के नाम से विख्यात है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App